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निर्यातित किया था। यह समाचार पाकर यवनराज ने मथुरा में अवस्थापित अपने सैन्यदल की सुरक्षा के लिये पलायन किया था।
पंक्ति ८-९: यति [खारवेळ] ने पल्लवभार कल्पवृक्ष को हय, गज
और रथादि सहित स्वदेश लाकर प्रत्येक गृह और आवासों में आवंटित किया था। विजयलव्ध धन सबका ग्रहणीय है यही प्रतिपादित करने के लिये उन्होंने ब्राह्मणों को दान दिये।
पंक्ति ९-१०: नौवें वर्ष में उन्होंने अष्टात्रिंशत मुद्राओं के व्यय से महाविजय प्रासाद नामक एक राज-निवास का निर्माण किया था। दशम वर्ष में दण्ड, संधि और साममय [खारवेळ] ने भारतवर्ष विजय के लिये सैन्य प्रेषण किया था।
पंक्ति १०-११ : एदादश वर्ष में उन्हें पलायन करते शत्रुओं से अनेक मणि रत्नादि प्राप्त हुए। उन्होंने कलिङ्ग के पूर्ववर्ती राजाओं के द्वारा प्रतिष्ठित पिथुड को गर्दभ संयोजित लांगल से कर्षित किया था। इसके अतिरिक्त वे तेरह सौ वर्षों से संगठित तामिल राष्ट्रसंघ को तोड़ने में सफल हुए थे।
पंक्ति ११-१२ : द्वादश वर्ष में उन्होंने एक लाख सैन्य बल लेकर उत्तरापथ के राजाओं को संत्रस्त किया। उन्होंने हाथियों को गंगा में जलपान कराते समय मगधवासियों के मनमें अपार भय संचारित किया था। मगधराज वहसतिमित [वृहष्पति मित्र] ने उनकी पद-वंदना की थी। तत्पश्चात उन्होंने नंदराजा के द्वारा लिया गया कालिंगजिन के सहित अंग और मगध राज्यों से अनेक संपदा ले आए थे।
पंक्ति १३ : उन्होंने [सत विसिकन] दो हजार [?] मुद्रा के व्यय से सुदृढ तथा सुंदर गोपुर और शिखरों का निर्माण किया था।
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