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पंक्ति - ३-४ : अभिषेक के प्रथम वर्ष में उन्होंने वात्याविध्वस्त कलिङ्ग नगरी के दुर्ग, प्राकार, गोपुर, और अट्टालिकाओं का संस्कार किया । साथ ही शीतल पुष्करिणियों के सोपानों का निर्माण कर उपवनों को फिरसे सजाया था । उन सभी कार्यों के लिये पंचत्रिशत लक्ष मुद्रा के व्यय से प्रजारंजन किया था. ।
पंक्ति - ४-५ : द्वितीय वर्ष में उन्होंने सातकर्णी की उपेक्षा कर अश्व, गज, पदातिक और रथ सहित विशाल सेना पश्चिम की और प्रेषित किया था ।
तृतीय वर्ष में उन गांधर्ववेद- प्रवीण महाराजा ने दप, नृत्य, गीत, वाद्य सहित भिन्न भिन्न उत्सव समाजों का अनुष्ठान करवाया। फलस्वरूप कलिङ्ग नगरी फिर से क्रीडा मुखरित हो उठी।
पंक्ति ५-६ : चौथे वर्ष उन्होंने कलिङ्ग के पूर्व राजाओं के द्वारा संगठित अजेय विद्याधर राज्य... ( अभिलेख में यह अंश अस्पष्ट है) । राष्ट्रिक और भोजक राज्यों के राजाओं ने भग्नमुकुट होकर राजछत्र और लांछन का त्याग कर मणि, रत्न, संपदा, के समर्पण से उनकी पद - वंदना की थी ।
पंक्ति ६-७ : राजत्व के पांचवे वर्ष में उन्होंने तीन सौ वर्ष पूर्व नंद राजा के द्वारा खुदाई गयी जल- प्रणाली का तनसुली के पथ से कलिङ्ग नगरी तक विस्तार किया था ।
छठे वर्ष उन्होंने राजैश्वर्य का प्रदर्शन स्वरूप पौर और जनपदों के
कर और अनुग्रह छोड़ने की घोषणा की थी ।
राजत्व के सातवें वर्ष वजिरघरराणी को मातृत्व प्राप्त हुआ ।
पंक्ति ७-८: आठवें वर्ष विशाल सेना लेकर उन्होंने सुदृढ़ गोरथ गिरि दुर्ग को विध्वंसित किया था, तथा राजगृह [ मगध ] वासियों को
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