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अणुओगदाराई इसी प्रकार आसुरोक्त शब्द भी अनेक परिवर्तित रूपों में मिलता है। व्यवहारभाष्य में 'आसुरक्ख' पाठ मिलता है। मलयगिरी ने उसका अर्थ आशुवृक्ष किया है। गोम्मटसार में आसुरक्ष का अर्थ हिंसाशास्त्र किया गया है। हमने 'आसुरुत्त' पाठ स्वीकार किया है । इस 'आसुरोक्त' के लिए भी हिंसाशास्त्र या युद्धशास्त्र की कल्पना की जा सकती है। १४. कौटलीय अर्थशास्त्र (कोडिल्लयं)
महामात्य कौटिल्य द्वारा निर्मित राजनीतिशास्त्र या अर्थशास्त्र । १५. घोटमुख (घोडमुह)
वात्स्यायन के पूर्वज घोटकमुख द्वारा रचित कामसूत्र । १६. कनकसप्तति (कणगसत्तरी)
यह ग्रन्थ षष्टितन्त्र के आधार पर लिखा हुआ है। इसके लेखक आचार्य ईश्वरकृष्ण सांख्यदर्शन के लोकप्रिय आचार्य हुए हैं। इनका समय ईसा पूर्व दूसरी सदी माना जाता है। ईसवी सन् ५४६ में बौद्ध विद्वान परमार्थ ने इस ग्रन्थ का अनुवाद चीनी भाषा में किया जो आज भी प्राप्त है। वहां इसका नाम सुवर्णसप्तति है।
___सांख्यकारिका, सांख्यसप्तति, सुवर्णसप्तति आदि नामों से भी इस ग्रन्थ की पहचान होती है। १७. वैशिक (वेसियं)
यह कामशास्त्र प्रतीत होता है। सूत्रकृताङ्ग में 'स्त्रीवेद' नामक कामशास्त्र का उल्लेख है। चूणिकार ने स्त्रीवेद की व्याख्या में वैशिक तंत्र का उल्लेख किया है।' १८. वैशेषिक (वइसेसियं)
कणाद ऋषि द्वारा प्रणीत वैशेषिक सूत्र । १६. बुद्धवचन (बुद्धवयणं)
बुद्धवचन --पिटक । २०. कापिल (काविलं)
सांख्यसूत्र। २१. षष्टितन्त्र (सट्टितंतं)
यह ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है । इसके रचयिता वार्षगण्य के नाम से प्रसिद्ध हैं। वे एक प्रभावशाली सांख्य आचार्य के नाम से प्रसिद्ध थे । तुलना के लिए द्रष्टव्य-भगवती भाष्य २।२४ । २२. माठर (माढरं)
माठर कनक-सप्तति की टीकाओं में से एक है। रचयिता के नाम पर उस टीका का नाम भी माठर हो गया, ऐसा प्रतीत होता है। माठर सम्राट कनिष्क (प्रथम सदी) के समसामयिक माने जाते हैं। २३. पुराण (पुराणं)
इसमें वैदिक साहित्य के व्यास रचित १८ पुराणों का समावेश किया गया है। २४. व्याकरण (वागरणं)
यहां पाणिनी आदि वैयाकरणों की ओर इंगित किया गया प्रतीत होता है। २५. नाटक (नाडगादि)
इसका संकेत भरत के नाट्य शास्त्र की ओर किया गया है ऐसा प्रतीत होता है। २६. बहत्तरकलाएं (बावतरिकलाओ)
देखें-समवाओ ७२।७।
१ सूचू पृ. १३८,१३९ वैशिकतन्त्रेप्युक्तं 'एता हसं ति च रुदंति च अर्थहेतोः विश्वासयंति च नरं न च विश्वसं ति।' स्त्रियः कृतार्थाः पुरुषं निरर्थकं, निष्पीलितालक्तकवत् त्यजति ।
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