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________________ दूसरा प्रकरण : सूत्र ५५-६१ उज्जुसुयस्स एगो अणुवउत्तो आग- एकः द्रव्यस्कन्धः, पृथक्त्वं नेच्छति।। है अथवा अनेक अनुपयुक्त व्यक्ति हैं, आगमतः मओ एगे दव्वखंधे, पुहत्तं नेच्छइ। त्रयाणां शब्दनयानां ज्ञः अनुपयुक्तः एक द्रव्यस्कन्ध है अथवा अनेक द्रव्यस्कन्ध तिण्हं सद्दनयाणं जाणए अणवउत्ते अवस्तु । कस्मात् ? यदि ज्ञ. अनुप- हैं, वह एक द्रव्यस्कन्ध है। अवत्थू । कम्हा? जइ जाणए युक्तो न भवति । स एष आगमतो ऋजुसूत्रनय की अपेक्षा एक अनुपयुक्त अणउवत्तं न भवइ। से तं आग- द्रव्यस्कन्धः । व्यक्ति एक द्रव्यस्कन्ध है, भिन्नता उसे इष्ट मओ दव्वखंधे ॥ नहीं है। तीन शब्द नयों [शब्द, समभिरूढ़, एवंभूत] की अपेक्षा अनुपयुक्त ज्ञाता अवस्तु है क्योंकि यदि कोई ज्ञाता है तो वह अनुपयुक्त नहीं होता। वह आगमतः द्रव्यस्कन्ध है। ५६. से कि तं नोआगमओ दव्वखंधे ? अथ किं स नोआगमतो द्रव्य- ५९. वह नोआगमत: द्रव्यस्कन्ध क्या है ? नोआगमओ दव्वखंधे तिविहे स्कन्धः ? नोआगमतो द्रव्यस्कन्धः नोआगमत: द्रव्यस्कन्ध के तीन प्रकार पण्णते, तं जहा -जाणगसरीर- त्रिविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-शरीर- प्रज्ञप्त हैं, जैसे-ज्ञशरीर द्रव्यस्कन्ध, भव्यशरीर दव्वखंधे भवियसरीरदव्वखंध द्रव्यस्कन्धः भव्यशरीरद्रव्यस्कन्धः द्रव्यस्कन्ध और ज्ञशरीर भव्य शरीर व्यतिरिक्त जाणगसरीर-भवियसरीर-बतिरित्त ज्ञशरीरमध्यशरीरव्यतिरिक्तः द्रव्य- द्रव्यस्कन्ध । दव्वखंधे ॥ स्कन्धः। ६०. से कि तं जाणगसरीरदव्वखंधे ? अथ किं स ज्ञशरीरद्रध्यस्कन्धः? ६०. वह ज्ञशरीर द्रव्यस्कन्ध क्या है ? जाणगसरीरदव्वखंधे-खंधेत्ति पय- ज्ञशरीरद्रव्यस्कन्धः-स्कन्ध इति ज्ञशरीर द्रव्यस्कन्ध–'स्कन्ध' इस पद के स्थाहिगारजाणगस्स जं सरीरयं पदार्थाधिकारज्ञस्य यत् शरीरकं अर्थाधिकार को जानने वाले व्यक्ति का जो ववगय-चय-चाविय-चत्तदेहं जीव- व्यपगतच्युतच्यावितत्यक्तदेहं जीवविप्र- शरीर अचेतन, प्राण से च्युत, किसी निमित्त विप्पजढं सेज्जागयं वा संथारगयं हीणं शय्यागतं वा संस्तारगतं वा से प्राणच्युत किया हुआ, उपचय रहित वा निसीहियागयं वा सिद्धसिला- निषीधिकागतं वा सिद्ध शिलातलगतं जीव-विषमुक्त है, उसे शय्या, बिछौने, श्मशानतलगयं वा पासित्ताणं कोइ वएज्जा वा दृष्ट्वा कोऽपि वदेत् --अहो ! भूमि या सिद्ध शिलातल पर देखकर कोई कहे -अहो णं इमेणं सरीरसमुस्सएणं अनेन शरीरसमुच्छयेण जिनदिष्टेन -आश्चर्य है, इस पौद्गलिक शरीर ने जिन जिणदिठेणं भावेणं खंधे त्ति पयं भावेन स्कन्ध इति पदं आख्यातं द्वारा उपदिष्ट भाव के अनुसार स्कन्ध इस आघवियं पण्णवियं परूवियं दंसियं प्रज्ञापितं प्ररूपितं दर्शितं निदर्शितम् । पद का आख्यान, प्रज्ञापन, प्ररूपण, दर्शन, निदंसियं उवदंसियं । जहा को उपदर्शितम् । यथा क: दृष्टान्तः ? निदर्शन और उपदर्शन किया है। जैसे-कोई दिळंतो? अयं महकुंभे आसी, अयं मधुकुम्भः आसीत्, अयं घृत- दृष्टान्त है ? [आचार्य ने कहा, इसका अयं घयकुंभे आसी । से तं जाणग- कुम्भः आसीत् । स एष ज्ञशरीर- दृष्टान्त यह है] यह मधुघट था, यह घृतघट सरीरदव्वखंधे ॥ द्रव्यस्कन्धः। था । वह ज्ञशरीर द्रव्यस्कन्ध है। ६१. से कि तं भवियसरीरदव्वखंधे? अथ कि स भव्यशरीरद्रव्य- ६१. वह भव्यशरीर द्रव्यस्कन्ध क्या है ? भवियसरीरदब्वखंधे-जे जीवे स्कन्धः ? भव्यशरीरद्रव्यस्कन्धः-- भव्यशरीर द्रव्यस्कन्ध -गर्भ की पूर्णाजोणिजम्मणनिक्खंते इमेणं चेव यः जीवः योनिजन्मनिष्क्रान्त अनेन वधि से निकला हुआ जो जीव इस प्राप्त आदत्तएणं सरीरसमुस्सएणं जिण- चैव आदत्तकेन शरीरसमुच्छयेण जिन- पौद्गलिक शरीर से स्कन्ध इस पद को जिनदिट्टेणं भावेणं खंधे त्ति पयं सेय- दिष्टेन भावेन स्कन्धः इति पदम् द्वारा उपदिष्ट भाव के अनुसार भविष्य में काले सिक्खिस्सइ, न ताव सिक्खइ। एष्यत काले शिक्षिष्यते, न तावत् सीखेगा, वर्तमान में नहीं सीखता है, तब तक जहा को दिळंतो? अयं महुकुंभे शिक्षते । यथा कः दृष्टान्तः ? अयं वह भव्यशरीर द्रव्यस्कन्ध है। जैसे कोई भविस्सइ, अयं घयकुंभे भविस्सइ। मधुकुम्भः भविष्यति, अयं घृतकुम्भः दृष्टान्त है ? [आचार्य ने कहा, इसका www.jainelibrary.org Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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