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अणुओगदाराई वा वेढिमे वा पूरिमे वा संघाइमे लेप्यकर्मणि वा प्रन्थिमे वा वेष्टिमे कर, भरकर या जोड़कर बनाई हुई पुतली में, वा अक्खे वा वराडए वा एगो वा वा पूरिमे वा संघातिमे वा अक्षे वा अक्ष या कौड़ी में एक या अनेक सद्भाव अणेगावा सब्भावठवणाए वा अस- वराटके वा एको वा अनेके वा स्थापना अथवा असद्भावस्थापना के द्वारा ब्भावठवणाए वा खंध त्ति ठवणा सद्भावस्थापनया वा असद्भावस्थाप- स्कन्ध का जो रूपांकन या कल्पना की जाती ठविज्जइ । से तं ठवणाखंधे।
नया वा स्कन्धः इति स्थापना है । वह स्थापनास्कन्ध है।
स्थाप्यते । स एष स्थापनास्कन्धः । ५५. नाम-ढवणाणं को पइविसेसो ? नामस्थापनयोः कः प्रतिविशेषः ? ५५. नाम और स्थापना में क्या अन्तर है ?
नाम आवकहियं, ठवणा इत्तरिया नाम यावत्कथिकम्, स्थापना इत्व- नाम यावज्जीवन होता है तथा स्थापना वा होज्जा आवकहिया वा। रिका वा भवेत् यावत्कथिका वा। स्वल्पकालिक भी होती है और यावज्जीवन
५६. से कि तं दव्वखंधे ? दव्वखंधे अथ कि स द्रव्यस्कन्धः ? द्रव्य- ५६. वह द्रव्यस्कन्ध क्या है ?
दुविहे पण्णत्ते, तं जहा- आगमओ स्कन्धः द्विविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा -- द्रव्यस्कन्ध के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसेय नोआगमओ य॥ आगमतश्च नोआगमतश्च ॥
आगमत: और नोआगमतः ।
५७. से कितं आगमओ दब्वखंधे? अथ किं स आगमतो द्रव्यस्कन्धः?
आगमओ दब्वखंधे -जस्स णं खंध आगमतो द्रव्यस्कन्धः-यस्य स्कन्धः त्ति पदं सिक्खियं ठियं जियं मियं इति पदं शिक्षितं स्थितं चितं मितं परिजियं नामसमं घोससमं अहीण- परिचितं नामसमं घोषसमम् अहीक्खरं अणचक्खरं अव्वाइद्धक्खरं नाक्षरम् अनत्यक्षरम् अव्याविद्धाक्षरम् अक्ख लियं अमिलियं अवच्चा- अस्खलितम् अमीलितम् अव्यत्यानेमेलियं पडिपुण्णं पडिपुण्णधोसं डितं प्रतिपूर्ण प्रतिपूर्णघोष कण्ठोष्ठकंठोडविप्पमुक्कं गुरुवायणोवगयं, विप्रमुक्तं गुरुवाचनोपगतं स वाचनया से णं तत्थ वायणाए पुच्छणाए प्रच्छनया परिवर्तनया धर्मकथया, नो परियट्टणाए धम्मकहाए, नो अणु- अनुप्रेक्षया। कस्मात् ? अनुपयोगो प्पेहाए । कम्हा? अणुवओगो द्रव्यम् इति कृत्वा । दवमिति कटट ।
५७. वह आगमतः द्रव्यस्कन्ध क्या है ?
आगमतः द्रव्यस्कन्ध-जिसने स्कन्ध यह पद सीख लिया, स्थिर कर लिया, चित कर लिया, मित कर लिया, परिचित कर लिया, नामसम कर लिया, घोषसम कर लिया, जिसे वह हीन, अधिक और विपर्यस्त अक्षर रहित, अस्खलित, अन्य वर्गों से अमिश्रित, अन्य ग्रन्थ वाक्यों से अमिश्रित, प्रतिपूर्ण, प्रतिपूर्ण घोष युक्त, कण्ठ और होठ से निकला हुआ तथा गुरु की वाचना से प्राप्त है। वह उस [स्कन्ध पद] के अध्यापन, प्रश्न, परावर्तन और धर्मकथा में प्रवृत्त होता है तब आगमतः द्रव्यस्कन्ध है। वह अनुप्रेक्षा में प्रवत नहीं होता क्योंकि द्रव्य निक्षेप अनुपयोग (चित्त की प्रवृत्ति से शून्य) होता है।
५८. नेगमस्स एगो अणुवउत्तो आगमओ नैगमस्य एकः अनुपयुक्तः आग- ५८. नैगमनय की अपेक्षा एक अनुपयुक्त व्यक्ति एगे दव्वखंधे, दोणि अणुवउत्ता मतः एकः द्रव्यस्कन्धः, द्वौ अनुपयुक्तो
आगमतः एक द्रव्यस्कन्ध है। दो अनुपयुक्त आगमओदोणि दध्वखंधाई, तिणि आगमतो द्वौ द्रव्यस्कन्धौ, त्रयः अनुप- व्यक्ति आगमतः दो द्रव्यस्कन्ध हैं। तीन अणव उत्ता आगमओ तिणि युक्ताः आगमतः त्रयः द्रव्यस्कन्धाः, अनुपयुक्त व्यक्ति आगमत: तीन द्रव्यस्कन्ध दव्वखंधाई, एवं जावइया अणु- एवं यावन्तः अनुपयुक्ताः तावन्तः ते हैं। इस प्रकार जितने अनुपयुक्त व्यक्ति हैं वउत्ता तावइयाई ताई नेगमस्स नंगमस्य आगमतो द्रव्यस्कन्धाः । नैगमनय की अपेक्षा उतने ही आगमत: द्रव्यआगमओ दव्वखंधाई। एवमेव एवमेव व्यवहारस्यापि । संग्रहस्य एको स्कन्ध हैं। ववहारस्स वि । संगहस्स एगो वा वा अनेके वा अनुपयुक्तो वा अनुपयुक्ताः इसी प्रकार व्यवहारनय की अपेक्षा से भी अणेगा वा अणुवउत्तो वा अणु- वा आगमतो द्रध्यस्कन्धः वा द्रव्य- जितने अनुपयुक्त व्यक्ति हैं उतने ही आगमत: वउत्ता वा आगमओ दव्वखंधे वा स्कन्धा: वा, स एकः द्रव्यस्कन्धः । द्रव्यस्कन्ध हैं। दब्वखंधाणि वा, से एगे दव्वखंधे। ऋजुसूत्रस्य एकः अनुपयुक्तः आगमतः संग्रहनय की अपेक्षा एक अनुपयुक्त व्यक्ति
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