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दूसरा प्रकरण: सूत्र ३५-४३
-अहो नं इमेणं सरीरसमुस्सएणं जिणदिट्ठेणं भावेणं सुए सि पयं आघवियं पण्णवियं परूवियं दंसियं नियंतियं उपयंतियं जहा को दिट्ठतो ? अयं महुकुंभे आसी, अयं घयकुंभे आसी । से तं जाणगसरीरव्ययं ॥
३८. से किं तं भवियसरीरदव्वसुयं ? भवियसरीरदव्य सूर्य जे जीवे जोणीजम्मणनिक्खते इमेण चेव आदत एवं सरीरसमुस्सएणं जिण दिट्ठेणं भावणं सुए त्ति पयं सेयकाले सिक्खिस्सइ, न ताव सिक्लइ जहा को दितो ? अयं महकुंभे भविस्सइ, अयं घयकुंभे भविस्स से तं भवियसरीर दव्वसुयं ॥
३६. से किं तं जाणगसरीर भवियसरीर वतिरित्तं दव्वसुयं ? जाणगसरीर भवियसरीर वतिरित्तं दव्वसुयं - पत्तय-पोत्थय लिहियं ॥ ४०. अहवा सुयं पंचविहं पण्णत्तं तं जहा - अंडयं बोंडयं कीडयं वालयं वक्कयं ॥
४१. से कि तं अंडयं ? अवयंगभाइ । से तं अंडयं ॥
४२. से कि तं बॉडयं ? बॉड फलिहमाइ । से तं बोंडयं ॥
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-हंस
४३. से कि तं कडवं ? कीड पंचविहं पण्णसं तं जहा पट्टे मलए अंसुए चोणंसुए किमिरागे । से तं
कीडयं ॥
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अनेन शरीरसमुचयेण जिनविष्टेन भावे भूतमिति पदम् आयात प्रज्ञापितं प्ररूपितं दर्शितं निर्दाशतम् उपदशितम्। यथा कः पृष्टान्तः ? अर्थ मधुकुम्भः आसीत्, अयं घृतकुम्भः आसीत् । तदेतद् नशरीरद्रव्यधुतम् ।
अथ किं तद् भव्यशरीरद्रव्यश्रुतम् ? यसरी
३८. वह भव्यशरीर द्रव्यश्रुत क्या है ? यो जीवो योनिजन्मनिष्क्रान्तः अनेन चैव आयतन शरीरसमुद्वेष जिनविष्टेन भावेन श्रुतमिति पदम् एष्यत्काले शिक्षिष्यते, न तावत् शिक्षते । यथा कः दृष्टान्तः ? अयं मधुकुम्भः भविव्यति, अयं घृतकुम्भः भविष्यति 1 तदेतद्व्यशरीरद्रव्यभुतम् ।
अथ तद् शरीर बध्यतरीरव्यतिरिक्त द्रव्यश्रुतम् ? ज्ञशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्त' द्रव्यश्रुतंपत्रक - पुस्तक - लिखितम् ।
अथवा सूत्रं पञ्चविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा - अण्डजं बोण्डजं कोटजं वालजं वल्कजम् ।
अथ किं तद् अण्डजम् ? अण्डजं - हंसगर्भादि तदेत अण्डजम् ॥
अथ किं तद् बोण्डजम् ? बोण्डजं -'फलिह' आदि । तदेतद् बोण्डजम् ।
अथ किं तत् कीटजम् ? कीटजं पञ्चविधं प्रज्ञप्तं ताप मलयः अंशुकं चीनांशुकं कृमिरागः । तदेतत् कोराजम् ।
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आश्चर्य है ! इस पौद्गलिक शरीर ने जिन द्वारा उपदिष्ट भाव के अनुसार श्रुत इस पद का आख्यान, प्रज्ञापन, प्ररूपण, दर्शन, निदर्शन और उपदर्शन किया है। जैसे कोई दृष्टान्त है ? (आचार्य ने कहा - इसका दृष्टान्त यह है ) यह मधुघट था, यह घृतघट था। वह ज्ञशरीर द्रव्यश्रुत है ।
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भव्यशरीर द्रव्यश्रुत-गर्भ की पूर्णावधि से निकला हुआ जो जीव इस प्राप्त पौद्गलिक शरीर से श्रुत इस पद को जिन द्वारा उपदिष्ट भाव के अनुसार भविष्य में सीखेगा, वर्तमान में नहीं सीखता है तब तक वह भव्यशरीर द्रव्यश्रुत है । जैसे कोई दृष्टान्त है ? (आचार्य ने कहा - इसका दृष्टान्त यह है) यह मधुघट होगा, यह पुतपट होगा। वह भव्यशरीर द्रव्यश्रुत है ।
३९. वह ज्ञशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्यश्रुत क्या है ? जशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्यभुत पत्र और पुस्तकों में लिखित त ज्ञशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त दव्यश्रुत है ।
४०. अथवा सूत्र' के पांच प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे
१. अण्डज
२. बोंडज
३. कीटज
४, बालज
५. वल्कन ।
४१. वह अण्डज सूत्र क्या है ?
अण्डज - हंस- गर्भ आदि से उत्पन्न सूत्र अण्डज है ।
४२. वह बोंडज सूत्र क्या है ?
बोंडज-कपास आदि से उत्पन्न सूत्र बोंड है।
४३. वह कीटज सूत्र क्या है ? कीटज ' के पांच प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसेसूत्र पट्टसूत्र, मलसूत्र, अंधुकसूत्र चीनांशुकसूत्र' और कृमिरायसूत्र" यह कीटजसूत्र है ।
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