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अणुओगदाराई से णं तत्थ वायणाए पुच्छणाए तद् वाचनया प्रच्छनया परिवर्तनया युक्त, कण्ठ और होठ से निकला हुआ तथा परियट्टणाए धम्मकहाए, नो अणु- धर्मकथया, नो अनुप्रेक्षया। कस्मात् ? गुरु की वाचना से प्राप्त है, वह उस श्रुत पद प्पेहाए। कम्हा? अणुवओगो अनुपयोगो द्रव्यमिति कृत्वा ।
के अध्यापन, प्रश्न, परावर्तन और धर्मकथा दव्वमिति कट्ठ ॥
में प्रवृत्त होता है तब आगमत: द्रव्यश्रुत है। वह अनुप्रेक्षा में प्रवृत्त नहीं होता, क्योंकि द्रव्य निक्षेप अनुपयोग (चित्त की प्रवृत्ति से शून्य)
होता है। ३५. नेगमस्स एगो अणुवउत्तो आगमओ नेगमस्य एकः अनुपयुक्तः आग- ३५. नैगमनय की अपेक्षा एक अनुपयुक्त व्यक्ति
एग दव्वसुयं, दोणि अणुवउत्ता मतः एक द्रव्यश्रुतं, द्वौ अनुपयुक्ती आगमत: एक द्रव्यश्रत है। दो अनुपयुक्त आगमओ दोण्णि दव्वसुयाई, तिणि आगमतो द्वे द्रव्यश्रुते, त्रयः अनुपयुक्ताः व्यक्ति आगमतः दो द्रव्यश्रुत हैं । तीन अनुपअणवउत्ता आगमओ तिण्णि दव- आगमतः त्रीणि द्रव्यश्रुतानि, एवं युक्त व्यक्ति आगमत: तीन द्रव्यश्रुत हैं। इस सुयाई, एवं जावइया अणुवउत्ता यावन्तः अनुपयुक्ताः तावन्ति तानि प्रकार जितने अनुपयुक्त व्यक्ति हैं नैगमनय तावइयाइं ताई नेगमस्त आगमओ नेगमस्य आगमतो द्रव्यश्रुतानि । एव- की अपेक्षा उतने ही आगमत: द्रव्यश्रुत हैं। दव्वसुयाई। एवमेव ववहारस्स मेव व्यवहारस्यापि । संग्रहस्य एको इसी प्रकार व्यवहारनय की अपेक्षा से भी वि। संगहस्स एगो वा अणेगा वा वा अनेके वा अनुपयुक्तो वा अनुप- जितने अनुपयुक्त व्यक्ति हैं, उतने ही आगमतः अणुवउत्तो वा अणुवउत्ता वा युक्ताः वा आगमतो द्रव्यश्रुतं वा
द्रव्यश्रुत हैं। आगमओ दव्वसुयं वा दव्वसुयाणि द्रव्यश्रुतानि वा, तदेकं द्रव्यश्रुतम् । संग्रहनय की अपेक्षा एक अनुपयुक्त व्यक्ति है वा, से एगे दव्वसुए। उज्जुसुयस्स ऋजुसूत्रस्य एकः अनुपयुक्तः आगमतः अथवा अनेक अनुपयुक्त व्यक्ति हैं, आगमतः एगो अणुवउत्तो आगमओ एगं एक द्रव्यश्रुतं, पृथक्त्वं नेच्छति । एक द्रव्यश्रुत है अथवा अनेक द्रव्यश्रुत हैं वह दव्वसुयं, पुहत्तं नेच्छइ । तिण्हं सद्द- त्रयाणां शब्दनयानां ज्ञः अनुपयुक्तः । एक द्रव्यश्रुत है। नयाणं जाणए अणुवउत्ते अवत्थू। अवस्तु । कस्मात् ? यदि ज्ञः अनुप- ऋजुसूत्रनय की अपेक्षा एक अनुपयुक्त कम्हा? जइ जाणए अणुवउत्तेन युक्तो न भवति । तदेतद् आगमतो
व्यक्ति आगमत: एक द्रव्यश्रुत है, भिन्नता उसे भवइ । सेतं आगमओ दव्वसुयं ।। द्रव्यश्रुतम् ।
इष्ट नहीं है।
तीन शब्द नयों (शब्द, समभिरूढ़ एवंभूत) की अपेक्षा अनुपयुक्त ज्ञाता अवस्तु है । क्योंकि यदि कोई ज्ञाता है तो वह अनुपयुक्त नहीं होता। वह आगमत: द्रव्यश्रुत है ।
३६. से कि तं नोआगमओ दव्वसुयं? अथ किं तद् नोआगमतो द्रव्य- ३६. वह नोआगमतः द्रव्यश्रुत क्या है ? नोआगमओ दव्वसुयं तिविहं श्रुतम्। नोआगमतो द्रव्यश्रुतं त्रिविधं नोआगमत: द्रव्यश्रुत के तीन प्रकार पण्णत्तं, तं जहा जाणगसरीर- प्रज्ञप्तं, तद्यथा -- ज्ञशरीरद्रव्यश्रुतं प्रज्ञप्त हैं, जैसे-ज्ञशरीर द्रव्यश्रुत, भव्यदव्वसुयं भवियसरीरदव्वसुयं भव्यशरीरद्रव्यश्रुतं ज्ञशरीरभव्य
शरीर द्रव्यश्रुत और ज्ञशरीर भव्य शरीर जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्तं शरीरव्यतिरिक्तद्रव्यश्रुतम् ।
व्यतिरिक्त द्रव्यश्रुत । दव्वसुयं ॥ ३७. से कि तं जाणगसरीरदव्वसुयं? अथ किं तद् ज्ञशरीरद्रव्यश्रुतम् ? ३७. वह ज्ञशरीर द्रव्यश्रुत क्या है ?
जाणगसरीरदव्वसुयं-सुए त्ति ज्ञशरीरद्रव्यश्रुतं-- श्रुतमिति पदार्था- ज्ञशरीर द्रव्यश्रुत-'श्रुत' इस पद के अर्थापयत्थाहिगारजाणगस्स जं सरीरयं धिकारज्ञस्य यत् शरीरक धिकार को जानने वाले व्यक्ति का जो शरीर ववगय-चुय-चाविय-चत्तदेहं जीव- व्यपगतच्युतच्यावितत्यक्तदेहं जीव- अचेतन, प्राण से च्युत. किसी निमित्त से प्राणविप्पजढं सेज्जागयं वा संथारगयं विप्रहीणं शय्यागतं वा संस्तारगतं
च्युत किया हुआ, उपचय रहित. जीवविप्रमुक्त वा निसीहियागयं वा सिद्धसिला- वा निषीधिकागतं वा सिद्ध शिलातल- है, उसे शय्या, बिछौने, श्मशानभूमि या तलगयं वा पासित्ताणं कोइ वएज्जा गतं वा दृष्ट्वा कोऽपि वदेत् -अहो! सिद्धशिलातल पर देखकर कोई कहे--
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