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२६
या
अणुओगवाराई
आनन्दपुर में यक्ष पूजा का प्रचलन था।' लाट देश में वर्षा ऋतु में गिरि यज्ञ का प्रचलन था।
इन सब प्रसंगों से ऐसा ज्ञात होता है कि भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में नाना अवसरों पर अलग-अलग देवताओं और यक्षों की पूजा की जाती थी व उत्सव मनाए जाते थे।
सूत्र २२-२७ १३. (सू० २२-२७)
वर्तमान पर्याय से उपलक्षित द्रव्य भाव कहलाता है। भाव निक्षेप पर भी आगम और नोआगम इन दो दृष्टिकोणों से विचार किया गया है। जो आवश्यक को जानता है और उसमें उपयुक्त (दत्तचित्त) है वह ज्ञानात्मक पर्याय की अपेक्षा भाव आवश्यक है। इसी प्रकार जो मंगल शब्द के अर्थ को जानता है तथा उसके अर्थ में उपयुक्त है वह ज्ञानात्मक पर्याय की अपेक्षा भाव मंगल है । इस विमर्श के अनुसार घट शब्द के अर्थ को जानने वाला और उसमें उपयुक्त पुरुष भाव घट कहलाता है। घट के तीन रूप बनते हैं
१. घटद्रव्य जो मिट्टी से बना हुआ है। २. घटशब्द जो घट द्रव्य का वाचक है। ३. घट का ज्ञान ज्ञाता घट को जानने के लिए घट पर्याय के साथ कथंचित् तन्मय नहीं बनता तब तक उसे घट का ज्ञान
नहीं होता । विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य-विभा० गा० ४९ । आर्यरक्षित ने नोआगमत: भाव निक्षेप के तीन प्रकार किए हैं'१. लौकिक २. कुप्रावनिक
३. लोकोत्तर जिनभद्र ने नोआगमतः भाव निक्षेप का अर्थ क्षायिक आदि भाव किया है। कषायपाहुड़ में नोआगमतः भाव निक्षेप के दो भेद बतलाये हैं
१. प्रशस्त नोआगम भाव
२. अप्रशस्त नोआगम भाव शब्द विमर्श
सूत्र २५ लौकिक भाव आवश्यक
वैदिक, सामयिक और लौकिक-ये तीन धाराएं प्रसिद्ध रही हैं। धर्म की दृष्टि से दो धाराएं प्रचलित हैं-वैदिक और सामयिक । वैदिक धर्म में वेद, पुराण ब्राह्मण, आदि ग्रन्थों की मान्यता रही है और सामयिक धारा में आगम, पिटक आदि ग्रन्थ स्वीकृत रहे हैं । रामायण, महाभारत आदि लोक गीतों और लोक कथाओं की भांति लोकग्रन्थों के रूप में प्रचलित थे। कालान्तर में वैदिक पण्डितों ने रामायण, महाभारत आदि ग्रन्थों को अपना लिया और उन्हें अपना बनाकर जनता के सामने प्रस्तुत किया किन्तु प्रस्तुत ग्रन्थ के आधार पर यह कहा जा सकता है कि महाभारत और रामायण मूलतः लौकिक धारा के ग्रन्थ थे ।
सूत्र २६ देव-पूजा, अञ्जलि
इज्या अर्थात् देव पूजा । गायत्री आदि मंत्रों के द्वारा उभय संध्या में की जाने वाली देवपूजा का नाम इज्या है। इष्ट देवता के प्रति नकुलाकार हाथों की अवस्था का नाम अञ्जलि है।" १. जैआसागु. पृ. १९।
५. कपा. पृ. २९४ : णोआगमदो भावपाहुडं दुविहं-पसत्थ२. वही, पृ. १६०।
मप्पसत्यं । ३. नसुअ. २४॥
६. अचू. पृ. १३ : देवपूया वा इज्जा तं गायच्या आदिक्रियया ४. विभा. ४९ :
उभयस्स सोहणा करेंति दोवि करा नउलसंठिया तं इट्ठमंगलसुयउवउत्तो आगमओ भावमंगलं होइ । देवताए अंजलि करेंति, अण्णे भणंति-इज्जा इति माता नोआगमओ भावो सुविसुद्धो खाइयाईओ।
तीए गठभस्स णिग्गच्छतो जो करतलाणं आगारो तारिसं देवताए अंजलि करेंति ।
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