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प्र० १ सू० १५-२१, टि०१२
माsम्बिक
मडम्ब के अधिपति का नाम माडम्बिक है ।' टीकाकार हेमचन्द्र के अनुसार जिसके आसपास कोई ग्राम, नगर न हो वह विजन स्थान मडम्ब कहलाता है। तमिल में धार्मिक स्थान को मडम्ब कहते हैं उसके अधिपति माडम्बिक कहलाते हैं । बृहत्कल्पभाष्य की वृत्ति में मडम्ब उसे कहा गया है जिसके आसपास ढाई गव्यूत (दो कोस का एक गव्यूत होता है) या ढाई योजन तक कोई ग्राम आदि न हो ।'
कौटुम्बिक
इभ्य
माण्डलिक राजा को कौटुम्बिक कहते हैं। टीकाकारों के अभिमत से कुछ कुटुम्बों के स्वामी का नाम कौटुम्बिक है।
इम का अर्थ है हाथी । जिस व्यक्ति के पास हाथी के प्रमाण जितना या इससे उसे इभ्य कहते हैं - यह चूर्णिकार का अभिमत है। टीकाकारों के अनुसार जिसकी हाथी भी दिखाई न दे, इतनी या इससे अधिक द्रव्यराशि के स्वामी को इभ्य कहते हैं। या व्यापारी ।"
श्रेष्ठी
अभिषेक करती हुई लक्ष्मीदेवी का चित्र जिसमें अंकित हो, वैसा वेष्टन बांधने वाला और सब वणिजों का अधिपति श्रेष्ठी कहलाता है । यह तमिल भाषा के चेट्टि शब्द का परिवर्तित रूप है। विशेष जानकारी के लिए देखें- दसवेआलियं प्रथम चूलिका टि० १९ ।
सेनापति
३१
चतुरंगिणी सेना के अधिपति को सेनापति कहते हैं ।" चतुरंगिणी सेना में हाथी, घोड़ा, रथ और पदाति-सेमा के ये चार अंग होते हैं । इन सबका नेतृत्व सेनापति के द्वारा किया जाता है। हरिभद्रसूरि ने इन चार अंगों के अतिरिक्त ऊंट की सेना का उल्लेख भी किया है ।"
सार्थवाह
१. (क) अ.. ११ मंडवाहियो मंडी।
(ख) हा पू. १६ ।
(ग) कटि. पृ. २१ ।
२. अमवृ. प. ११ : यस्य पार्श्वतः आसन्नमपरं ग्रामनगरादिकं नास्ति तत्सर्वतन्नायविशेषरूपं मम्यते ।
सार्थ के नायक का नाम सार्थवाह है। जो राजा की आज्ञा से गण्य (जो गिनकर दिया जाए, जैसे-सुपारी, नारियल आदि), धायें (जो तौलकर दिया जाए, जैसे- मिश्री आदि), मेव (जो मापकर दिया जाए, पी, चावल आदि) और परिच्छेद्य (जो परीक्षा करके दिया जाए, जैसे-रत्न, मोती आदि ) - इन चार प्रकार के द्रव्यसमूह को लेकर विशेष लाभ पाने के लिए व्यापारार्थ
३. बृभा. २, पृ. ३४२ : मडम्बं नाम यत् सर्वतः सर्वासु दिक्षु छिन्नं, अर्धतृतीयगव्यूतं मर्यादायामविद्यमानमिति भावः । अन्ये तु व्याचक्षते यस्य पारतोयोजनान्तरप्रामादिकं न प्राप्यते तत् मडम्बम् ।
४. अचू. पृ. ११ : जे मंडलिया राई ते कोडंबी ।
५. (क) अहावू. पू. १६ : कौटुम्बिकः कतिपयकुटुम्ब प्रभुः । (ख) अमवृ. प. २१ ।
६. अचू. पृ. ११ : इभो हत्थी तप्यमाणो हिरण्ण सुवण्णादिपूंजो जस्स अत्थि अधिकतरो वा सो इब्भो ।
भी अधिक सोने चांदी आदि का पुंज होता है पूंजीकृत रत्न आदि की राशि में छिपा हुआ इब्भ देशी शब्द भी है इसका अर्थ है वणिक्
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७. (क) अहावृ. पृ. १६ : इभ्यः, अर्थवान् - स च किल य पंजीकृत रत्नराज्यन्तरितो हस्त्यपि नोपलभ्यते इत्येति ।
(ख) अमवृ. प. २१ ।
८. देशको पृ. ४२ ।
९. ( क ) अच्. पृ. ११ : अभिषिच्यमानश्रीवेष्टनकबद्धः सव्ववयाहियो सेट्ठी ।
(ख) अहाबु प १६ श्रीदेवताध्यासितसौवर्णपट्टविभूषितो तमाङ्गः पुरज्येष्ठो वणिक् ।
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(ग) अमवृ. प. २१ ।
१०. अ. पू. ११ चउरंगिणीए गाए अहियो सेना ११. अहावृ. पृ. १६ सेनापतिः - नरपतिनिरूपितोष्ट्र हस्त्यश्वरथपदातिसमुदायलक्षणायाः सेनायाः प्रभुरित्यर्थः ।
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