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अणुओगदाराई
सूत्र १८ कुप्रावनिक
यह एक सापेक्ष वर्गीकरण है। इसमें आवश्यक क्रिया करने वाले व्यक्तियों को तीन वर्गों में संगृहीत किया गया है। प्रथम वर्ग लौकिक या सामाजिक है । शेष दो वर्ग धर्म की आराधना करने वाले व्यक्तियों के हैं । जैन दृष्टि के अनुसार एकान्तवाद को कुप्रवचन माना जाता है। इस दृष्टि से चरक, चीरिक आदि का कुप्रावनिक वर्ग में संग्रह किया गया है। इन्हें लोकोत्तर वर्ग में भी सम्मिलित किया जा सकता है किन्तु उसमें अनेकांत प्रवचन का ही संग्रह किया गया है इस अपेक्षा से 'कुप्रावचनिक'-इस स्वतन्त्र वर्ग की विवक्षा की गई है।
सूत्र १९ राजा, युवराज
चूर्णिकार और दोनों टीकाकारों के अनुसार चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव और महामाण्डलिक राजा कहलाता है।' कल्पसूत्र टिप्पनकम् में केवल माण्डलिक को राजा बतलाया गया है। षट्खण्डागम के अनुसार जो नम्रीभूत अठारह श्रेणियों का अधिपति हो, मुकुट को धारण करने वाला हो और सेवा करने वालों के लिए कल्पतरु के समान हो, उसे राजा कहा गया है।'
अठ रह श्रेणियों में घोड़ा, हाथी और रथ के अधिपति, सेनापति, मन्त्री, श्रेष्ठी, दण्डपति, शूद्र, क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य, महत्तर, गणराज, अमात्य, तलवर, पुरोहित, स्वाभिमानी महामात्य और पैदल सेना को लिया गया है।
ईश्वर युवराज, अमात्य आदि को कहा जाता है। ऐश्वर्य युक्त व्यक्ति को भी ईश्वर कहा जाता है। ग्राम का पट्टधारक अधिपति भी ईश्वर कहलाता है।' तलवर
राजा प्रसन्न होकर जिसके सिर पर रत्नखचित सोने का पट्ट बांधता है उसे तलवर कहते हैं। राजा के समान ही ऐश्वर्यसम्पन्न व्यक्ति को तलवर कहते हैं केवल उसके पास चामर नहीं होता।
तमिल भाषा में तलवर शब्द का प्रयोग होता है। उसका अर्थ है-अध्यक्ष या प्रधान । संभव है यह तलवर शब्द ही तलवर के रूप में परिवर्तित होकर प्रयुक्त हुआ हो ।
यशस्तिलक में तलवार धारण करने वाले व्यक्ति के लिए तलवर शब्द का प्रयोग हुआ है । एक प्रसंग में तलवर चोर को पकड़कर राजदरबार में उपस्थित होता है। इस प्रकरण के अनुसार तलवर शब्द कोतवाल का वाचक होना चाहिए।
१. (क) अचू. पृ. ११ : रायत्ति-चक्कवट्टी वासुदेवो बलदेवो
महामंडलीओ वा। (ख) अहाव. पृ. १९ तत्र राजा-चक्रवादिमहा
माण्डलिकान्तः। (ग) अमवृ. प. २१ । २. कटि. पृ.९: राजानः माण्डलिकाः। ३.ध. १११,१,१, गा. ३६१५७ : अष्टादशसंख्यानां श्रेणीनामधिपतिविनम्राणाम् ।
राजा स्यान्मुकुटधरः कल्पतरुः सेवमानानाम् ॥ ४. वही ११,१,१, गा. ३७,३८।५७ : हय-हत्थि-रहाणहिवा-सेणावइ-मंति-सेट्ठि-दण्डवई । सुद्दक्खत्तिय-बम्हण-वइसा-तह-महयरा चेव ॥ गणरायमच्च-तलवर-पुरोहिया-दप्पियामहामत्ता। अट्ठारह सेणीओ पयाइणा मीलिया होंति ॥
५. (क) अचू. पृ. ११ : जुवराया अमच्चादिया ईसरा, अहवा
ईसरविव ऐश्वर्ययुक्त ईश्वरः । (ख) अहावृ. पृ. १६ । (ग) अमवृ. प. २१ ।
(घ) कटि. पृ. ९ : ईश्वराः युवराजाः । ६. निचू.२ पृ. २६७ : सोय गामभोतियादिपट्टबंधा। ७. (क) अचू. पृ. ११ : राइणा तुह्रण चामीकरपट्टो रयण
खइतो सिरसि बद्धो यस्स सो तलवरो भण्णति । (ख) अहावृ.पृ. १६ । (ग) अमवृ. प. २१ । (घ) कटि. पृ. ९ : तलवरा:-नरपति-प्रदत्तपट्टबन्ध
विभूषिता राजस्थानीयाः। ८. निचू. २ पृ. २६७ : रायप्रतिमो चामरविरहिता। ९. यसांअ. पृ. २०६।
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