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________________ अणुओगदाराइ सूत्र १५-२१ १२. (सू० १५-२१) नोआगम के आधार पर द्रव्य निक्षेप के तीन प्रकार होते हैं१. ज्ञशरीर द्रव्यावश्यक-जो शरीर निर्दिष्ट विषय को जानता था, पर वर्तमान में ज्ञान शून्य है। २. भव्यशरीर द्रव्यावश्यक-जो शरीर भविष्य में निर्दिष्ट विषय को जानेगा, पर वर्तमान में ज्ञानशून्य है। ३. तद्व्यतिरिक्त द्रव्यावश्यक-आर्यरक्षित ने तद्व्यतिरिक्त द्रव्यावश्यक के तीन प्रकार बतलाए हैं' १. लौकिक २. कुप्रावनिक ३. लोकोत्तर ये उदाहरण के रूप में प्रस्तुत हैं किन्तु तद्व्यतिरिक्त के अर्थ की सीमा करने वाले नहीं हैं। तद्व्यतिरिक्त के अन्यान्य प्रसंगों में अन्य भेद भी उपलब्ध होते हैं । कषायपाहड़ में 'पेज्ज' के तद्व्यतिरिक्त द्रव्य निक्षेप के दो प्रकार किए गए हैं।-- १. कर्मपेज्ज तद्व्यतिरिक्त द्रव्य निक्षेप। २. नोकर्मपेज्ज तद्व्यतिरिक्त द्रव्य निक्षेप । जिनभद्रगणि ने भी कषाय के प्रसंग में तद्व्यतिरिक्त द्रव्य निक्षेप के ये ही दो प्रकार बतलाये हैं।' तद्व्यतिरिक्त कर्मद्रव्य को उन्होंने राग के उदाहरण के द्वारा परिभाषित किया है। कर्मद्रव्य की चार अवस्थाएं हैं १. योग्य बंधपरिणामाभिमुख अवस्था । २. बध्यमान - जिसकी बंधक्रिया प्रारम्भ हो चुकी है । ३ बद्ध- जिसकी बंधक्रिया सम्पन्न हो चुकी है। ४ उदीरणावलिका प्राप्त - जो उदीरणावलिका में प्रविष्ट हो चुका है। नार्मद्रव्य की दो अवस्थाएं निर्दिष्ट हैं:१ प्रायोगिक-कुसुम्भे का रंग । २. वैससिक-संध्या का रंग । शब्द विमर्श सूत्र १६ व्यपगतच्युतच्यावितत्यक्तदेह व्यपगत, च्युत, च्यावित और त्यक्तदेह-ये चारों शरीर के विशेषण हैं - ० व्यपगत चैतन्य पर्याय से मुक्त होकर अचैतन्य पर्याय को प्राप्त । • च्युत-प्राणशक्ति से च्युत । आयुष्य पूर्ण होने पर जो शरीर स्वतः छूट जाता है वह च्युत शरीर है। १. नसुअ. १८। ६. (क) अचू. पृ. ९ : ववगतं सरीरं जीवातो जीवो वा २. कपा. पृ. २७० : तव्वदिरित्त णोआगमदव्वपेज्जं दुविहं सरीरातो, एवं तु तावइयावि चत्तं जीवेण देहं चत्तो कम्मपेज्ज णोकम्मपेज्ज चेदि । देहेण वा जीवो। ३.विभा. २९८१: (ख) अहावृ. पृ. १४ : व्यपगतं-ओघतश्चेतनापर्यायाददुविहो दबकसाओ कम्मदव्वे व नो य कम्मम्मि । चेतनत्वं प्राप्तं, च्युतं-देवादिभ्यो भ्रष्टं, च्यावितंकम्मदव्वकसाओ चउव्हिा पोग्गलाणुइआ । तेभ्य एवायुःक्षयेण भ्रंशितं, त्यक्तदेहं-जीवसंसर्गसमु४. विभा. २९६२ त्थशक्तिजनिताहारादिपरिणामप्रभवपरित्यक्तोपच यं ॥ जोग्गा बद्धा बझंतया य पत्ता उईरणावलियं । (ग) अमवृ. प. १८। अह कम्मदव्वराओ चउब्विहा पुग्गला हुंति ॥ ५. विभा. २९६३ : नोकम्मदव्वराओ पओगओ सो कुसुंभरागाई। बीओ य वीससाए नेओ संझन्मरागाई। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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