________________
२१
प्र० १, सू० १०-१२, टि०६ रहता है, जब तक उससे सम्बद्ध द्रव्य का अस्तित्व है। स्थापना अल्पकालिक भी होती है और द्रव्य के अस्तित्व के साथ जुड़ी हुई भी है। आज जो अक्ष आवश्यक क्रिया करते हुए साधु के लिए स्थापित हो सकता है कालान्तर में वह अन्य किसी के लिए भी हो सकता है। जबकि नाम में इस प्रकार बदलाव नहीं होता। दूसरा कारण यह भी है कि नाम निराकार होता है पर स्थापना में कोई न कोई आकार होता है।'
नाम और स्थापना की चर्चा में एक प्रश्न यह उपस्थित होता है कि स्थापना की भांति नाम भी परिवर्तित हो सकता है फिर इसे यावज्जीवन क्यों माना गया ? नाम के दो रूप हैं-नक्षत्र के आधार पर निर्धारित नाम और बोलचाल का नाम । नक्षत्र से सम्बन्धित नाम अपरिवर्तनीय होता है। व्यक्ति के जीवन की अनेक बातों का निर्णय इसी नाम के आधार पर किया जाता है। जो नाम बदला जाता है वह उपनाम होता है। कुछ व्यक्तियों के नाम एक से अधिक भी होते हैं। आगमों में भगवान महावीर के अनेक नामों का उल्लेख है। यहां उपनामों और पर्यायवाची नामों की विवक्षा नहीं है।
नाम यावत्कथिक अर्थात् स्थायी होता है । स्थापना अल्पकालिक व स्थायी दोनों प्रकार की होती है। सूत्रकार ने इस भेद का उल्लेख किया है।
नाम निक्षेप का आधार है-सद्भाव सामान्य और सादृश्य सामान्य । स्थापना निक्षेप का आधार है सादृश्य सामान्य । कषाय पाहड में नाम और स्थापना का भेद इसी आधार पर किया गया है।'
विशेषावश्यक भाष्य के अनुसार नाम मूल अर्थ से निरपेक्ष और यादच्छिक-इच्छानुसार संकेतित होता है। स्थापना मूल पदार्थ के अभिप्राय से आरोपित होती है।
जिनभद्र ने यावत्कथिक को प्रायिक माना है।' मलधारी हेमचन्द्र ने इसकी व्याख्या में लिखा है कि मेरु, द्वीप, समुद्र आदि के नाम यावत् द्रव्यभावी होते हैं । देवदत्त आदि नामों का परिवर्तन भी होता है।'
सूत्रकार ने नाम को यावत्कथिक बतलाया है। इस विषय में हेमचन्द्र का मत है कि यह जनपद आदि की प्रतिनियत संज्ञा की विवक्षा से निर्दिष्ट है जैसे-उत्तरकुरु आदि ।'
सूत्र १२ ६. द्रव्यावश्यक (दव्वावस्सयं)
द्रव्य निक्षेप तत्पर्यायपरिणत और तत्पदार्थोपयुक्त नहीं होता इसलिए वह वर्तमान पर्याय से शून्य व ज्ञान पर्याय से शून्य है । द्रव्य शब्द के अनेक अर्थ होते हैं । प्रस्तुत प्रकरण में द्रव्य का अर्थ है योग्य । जिसमें भूतकालीन पर्याय की योग्यता थी, भविष्यकालीन पर्याय की योग्यता होगी, उसका नाम है द्रव्य । उदाहरणस्वरूप जिस घट में घी था और वर्तमान में वह खाली है वह भूतकालीन पर्याय की अपेक्षा घृतघट है। जो भविष्य में घृत का आधार बनेगा, अभी खाली है, वह भविष्यकालीन पर्याय की अपेक्षा घृतघट है।
द्रव्य निक्षेप पर आगम और नोआगम-दो दृष्टिकोणों से विचार किया गया है। एक पुरुष मंगल शब्द के अर्थ को १. अहावृ. पृ.८:
४. विभा. २६: कालकतोऽत्थ विसेसो, णामं ता धरति जाव तं दव्वं ।
जं पुण तयत्थसुन्नं तयभिप्पाएण तारिसागारं । ठवणा दुहा य इयरा यावकहा इत्तरा इणमो ॥२॥
कीरइ व निरागारं इत्तरमियरं व सा ठवणा ॥ इह जो ठवणिदकओ अक्खो सो पुण ठविज्जए राया।
५. विभा. २५ : एवित्तर आवकहा कलसादी जा विमाणेसु ॥३॥ ६. विभा. २५ को वृत्ति : प्रायेणेति मेरुद्वीपसमुद्रादिकं नाम अहव विसेसो भण्णति अभिधाणं वत्थुणो णिरागारं ।
प्रभूतं यावद्व्यमावि दृश्यते, किञ्चित् त्वन्यथाऽपि ठवणाओ आगारो सो वि य णामस्स णिरवेक्खो ॥४।। समीक्ष्यते, देवदत्तादिनामवाच्यानां द्रव्याणां विद्यमानाना२. नसुअ. ११ : नामं आवकहियं, ठवणा इत्तरिया वा होज्जा, मप्यपरापरनामपरावर्तस्य लोके दर्शनात् । आवकहिया वा।
७. वही, सिद्धान्तेऽपि यदुक्तम्- 'नामं आवकहियं त्ति' नाम ३. कपा. पृ. २५९ : जेण णामणिक्खे वो तब्भाव सारिच्छ
यावत्कथिकमिति तत् प्रतिनियतजनपदादि संज्ञामेवाऽङ गीसामण्णमवलंबिय द्विदो, टुवणाणिक्खेवो वि सारिच्छ- कृत्य, यथोत्तराः कुरव इत्यादि । लक्खणसामण्णमवलंबिय टिदो।
८. विभा. २८ : दवए दुयए दोरवयवो विगारो गुणाण संदावो। दव्वं भवं भावस्स भूअभावं च जं जोग्गं ॥
Jain Education Interational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org