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प्र० १, सू० ५, टि० ५
१७ न्यास किया जाता है। उदाहरण के लिए आवश्यक सूत्र को प्रस्तुत किया जा सकता है।
आचार्य ने शिष्य से कहा-आवश्यक को बुलाओ। वह आचार्य की विवक्षा को नहीं समझ सका। इधर उधर गया। अलमारी की ओर दृष्टि डाली । एक पुस्तक देखी-'आवश्यक' । उसे ले आया । आचार्य ने कहा-यह क्या लाए हो? शिष्य ने कहा-यह आवश्यक है।
आचार्य-मैंने कहा था--आवश्यक को बुलाओ, तुम पुस्तक ले आए।
तुम विवक्षा को नहीं जानते । लो, मैं तुम्हें विवक्षा का सिद्धांत समझाता हूं। नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव-कम से कम इन चार विवक्षाओं से वस्तु का बोध हो सकता है।
सबसे पहले वस्तु का नामकरण होता है, जैसे-इस आगम का नाम आवश्यक है। किसी अन्य व्यक्ति या वस्तु का भी 'आवश्यक' नाम दिया जा सकता है । स्थापना का अर्थ है-किसी आकार या प्रतीक में वस्तु का आरोपण करना। आवश्यक की किसी आकृति या प्रतीक को भी आवश्यक कहा जाता है । किन्तु मैं जिस व्यक्ति को बुलाना चाहता हूं उसका सम्बन्ध नाम या स्थापना से नहीं है।
___मैं जिस व्यक्ति को बुलाना चाहता हूं, वह आवश्यक आगम को जानने वाला और उसकी स्मृति में उपयुक्त होना चाहिए अथवा वह आवश्यक आगम को जानने वाला और उसकी क्रिया में संलग्न होना चाहिए। क्योंकि मैं भाव आवश्यक को बुलाना चाहता हं । तुम मेरी विवक्षा को नहीं समझ सके । अब भी तुम सावधान रहना ।
तुम आवश्यक को बुलाने जाओगे। रास्ते में कोई मृतशरीर मिल सकता है। तुम पूछोगे --यह कौन है ? उत्तर मिलेगायह आवश्यक है । उत्तर अयथार्थ भी नहीं है । क्योंकि यह आवश्यक के ज्ञाता का शरीर है । भूत (अतीत) पर्याय की अपेक्षा से यह उत्तर सही है । इसे ज्ञ-शरीर-द्रव्य आवश्यक कहा जा सकता है। पर उसे बुलाना तुम्हें अभीष्ट नहीं है।
तुम आगे चलोगे। तुम्हें फिर कोई मिल सकता है। उसके बारे में पूछताछ करने पर तुम्हें उत्तर मिलेगा यह आवश्यक है । वह आवश्यक का ज्ञाता बनेगा, इस अपेक्षा से वह भावी (भव्य) शरीर द्रव्य आवश्यक है। पर तुम्हें उसे भी नहीं बुलाना है।
तुम आगे बढ़ोगे । तुम्हें प्रातःकाल दतौन करने वाले लोगों के बीच 'अवश्य करो' 'अवश्य करो' की गूंज सुनायी देगी। आवश्यक क्रिया करने वाले भी आवश्यक है। पर वे तद्व्यतिरिक्त-भूत और भावी पर्याय से अतिरिक्त केवल क्रियाकारी आवश्यक है । उनसे भी तुम्हारा प्रयोजन सिद्ध नहीं होगा। तुम्हें न तो ज्ञान-शून्य आवश्यक को बुलाना है न क्रिया-शून्य आवश्यक
को।
तुम्हें दो प्रकार के व्यक्तियों को बुलाना है-- • जो आवश्यक का अर्थ जानता है और उसके अनुकूल क्रियात्मक-रूप में आवश्यक का प्रयोग कर रहा है। • जो आवश्यक की क्रिया नहीं कर रहा है पर उसके अर्थ को जानता है और उसके अर्थ में उपयुक्त है-वहां अपनी स्मृति ___ का नियोजन किए हुए है।
क्षेत्र, काल आदि अनेक धर्म हैं। उनमें वस्तु का आरोपण किया जाता है । इसलिए निक्षेप अनेक बनते हैं । वस्तु के आंतरिक और बाह्य जितने धर्म हैं उतने ही निक्षेप हो सकते हैं। इसीलिए सूत्रकार ने बताया-निक्षेप संख्यातीत हैं। कम से कम चार निक्षेपों का प्रयोग अवश्य किया जाए । नाम और स्थापना (रूप, संस्थान अथवा आकृति) के बिना वस्तु की पहचान नहीं होती। ये वस्तु की पहचान के प्रारम्भिक तत्त्व हैं।
द्रव्य और भाव -ये दोनों वस्तु की अवस्थाएं हैं । वस्तु की जानकारी के लिए वर्तमान पर्याय में उसका निक्षेपण आवश्यक है। भूत और भावी पर्याय भी उस आवश्यकता की पूर्ति करते हैं। इस प्रकार नाम, रूप और अवस्था में वस्तु का निक्षेपण यह न्यूनतम अपेक्षा है। उतराध्ययन नियुक्ति में 'उत्तर' शब्द के पन्द्रह निक्षेप किए गए हैं। आचारांग नियुक्ति तथा कषाय पाहुड़ में 'कषाय' शब्द के आठ निक्षेप किए गए हैं। १. उवृवृनि. १:
(ख) कपा. पृ. २३४ : कसाओ ताव णिक्खिवियवो णामनाम ठवणा दविए खित्त दिसा तावखित्त पन्नवए ।
कसाओ ठवणकसाओ दव्वकसाओ पच्चयकसाओ पइकालसंचयपहाणनाणकमगणणओ भावे ॥
समुत्पत्तिकसाओ आदेसकसाओ रसकसाओ भाव२. (क) आसू. पृ. ६१ आनि १९० :
कसाओ चेदि । णामं ठवणा दविए उप्पत्ती पच्चए य आएसो। रसभावकसाए या तेण य कोहाइया चउरो ।।
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