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________________ अणुओगदाराई वत्थाइयाई दवावस्सयाई काउं द्रव्यावश्यकानि कृत्वा ततः पश्चात् तओ पच्छा रायकुलं वा देवकुलं राजकुलं वा देवकुलं वा आरामं वा वा आरामं वा उज्जाणं वा सभं उद्यानं वा सभां वा प्रपा वा वा पवं वा गच्छति । से तं लोइयं गच्छन्ति । तदेतत् लौकिकं द्रव्यादव्वावस्सयं ॥ वश्यकम् । धूप करते हैं, फूल, माला, गन्ध, ताम्बूल, वस्त्र आदि का प्रयोग करते हैं। वे इन द्रव्य आवश्यक-क्रियाओं को सम्पन्न कर राजकुल, देवकुल, आराम, उद्यान, सभा अथवा प्रपा में जाते हैं। वह लौकिक-द्रव्यआवश्यक है। २०. से कि तं कुप्पावयणियं दवा- अथ किं तत् कुप्रावचनिकं द्रव्या- २०. वह कुप्रावनिक-द्रव्य-आवश्यक क्या है ? वस्सयं? कृपावयणियं दव्वा- वश्यकम् ? कुप्रावनिक द्रव्यावश्यकम्- कुप्रावचनिक-द्रव्य-आवश्यक ---उषा काल में वस्सयं-जे इमे चरग-चीरिय- ये इमे चरक-चीरिक-चर्मखण्डिक- पौ फटने पर और रात्रि के निर्मल होने पर चम्मखंडिय - भिक्खोंड - पंडुरंग- भिक्षोण्ड-पाण्डुरांग-गौतम -गोव्रतिक- प्रफुल्लित उत्पल और अर्ध विकसित कोमल गोयम-गोव्वइय - गिहिधम्म-धम्म- गृहिधर्म-धर्मचिन्तक-अविरुद्ध- विरुद्ध- कमल वाले पीत आभा वाले अरुणिम प्रभात चितग- अविरुद्ध- विरुद्ध- वुड्डसाव- वृद्धधावकप्रभृतयः पाषण्डस्थाः कल्यं में लाल अशोक की दीप्ति, पलाश, तोते के गप्पभिडओ पासंडत्या कल्लं- प्रादुष्प्रभातायां रजन्यां सुविमलायां मुख और गुजार्ध के समान रंग वाले, जलापाउप्पभायाए रयणीए सुविमलाए फुल्लोत्पलकमलकोमलोन्मीलिते यथा- शयगत नलिनी वन के उद्बोधक, सहस्ररश्मि, फुल्लुप्पल- कमल - कोमलुम्मिलि- पाण्डुरे प्रभाते रक्ताशोकप्रकाश- दिनकर, सूर्य के उदित और तेज से देदीप्ययम्मि अहपंडरे पभाए रत्तासो- किंशुक - शुकमुख - गुजार्द्धरागसदृशे मान होने पर जो चरक, चीरिक, चर्मखण्डिक, गप्पगासकिसुय-सुयमुह-गुंजद्धराग- कमलाकर-नलिनीषण्डबोधके उत्थिते भिक्षाजीवी, शैव, गौतम, गोव्रती, गृहधर्मी, सरिसे कमलागर-नलिणिसंडबोहए सूर्ये सहस्ररश्मौ दिनकरे तेजसा धर्मचिन्तक, अविरुद्ध, विरुद्ध और वृद्धश्रावक उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि ज्वलति इन्द्रस्य वा स्कन्दस्य वा आदि विभिन्न पाषण्डों [धर्म सम्प्रदायों के दिणयरे तेयसा जलंते इंदस्स वा रुद्रस्य वा शिवस्य वा वैश्रवणस्य वा अनुयायी, इन्द्र, कार्तिकेय, रुद्र, शिव, वैश्रवण, खंदस्स वा रुद्दस्स वा सिवस्स वा देवस्य वा नागस्य वा यक्षस्य वा देव, नाग, यक्ष, भूत, बलदेव, आर्या और वेसमणस्स वा देवस्स वा नागस्स भूतस्य वा मुकुन्दस्य वा आर्यायाः कोट्टक्रिया के [मन्दिर में] उपलेपन, संमार्जन वा जक्खस्स वा भूयस्स वा मुगु- वा कोट्टक्रियायाः वा उपलेपन सिंचन, धूप, फूल, गन्ध ओर माला आदि दस्स वा अज्जाए वा कोट्टकिरि- सम्मार्जन-आवर्षण धूप-पुष्प-गंध- द्रव्य-संबंधी-आवश्यक-क्रियाओं को सम्पन्न याए वा उवलेवण-सम्मज्जण- माल्यादिकानि द्रव्यावश्यकानि करते हैं। वह कुप्रावनिक-द्रव्य आवश्यक आवरिसण-धूव-पुष्फ-गंध-मल्लाइ- कुर्वन्ति । तदेतत् कुप्रावचनिक द्रव्यायाई दव्वावस्सयाई करति । से तं वश्यकम् । कुप्पावयणियं दव्वावस्सयं ॥ २१. से कि तं लोगुत्तरियं दव्वावस्सयं? अथ किं तत् लोकोत्तरिक द्रव्या- २१. वह लोकोत्तरिक-द्रव्य-आवश्यक क्या है ? लोगृत्तरियं दब्वावस्सयं-जे इमे वश्यकम् ? लोकोत्तरिक द्रव्या- लोकोत्तरिक द्रव्य-आवश्यक-जो श्रमण समणगुणमुक्कजोगी छक्कायनिर- वश्यकम् --ये इमे श्रमणगुणमुक्त- श्रमण के गुणों से शून्य प्रवृत्ति वाले, छहकाय णकंपा हया इव उद्दामा गया योगिनः षट्कायनिरनुकम्पाः हयाः के जीवों के प्रति अनुकम्पा-रहित, घोड़े की इव निरंकुसा घट्ठा मट्ठा इव उद्दामाः गजाः इव निरंशाः भांति उद्दाम, हाथी की भांति निरंकुश, शरीर तुप्पोट्टा पंडुरपाउरणा जिणाणं घृष्टाः मृष्टाः तुप्पोष्ठाः पाण्डर- का घर्षण और तेल आदि से मर्दन करने अणाणाए सच्छंदं विहरिऊणं प्रावरणाः जिनानाम् अनाज्ञया स्वच्छन्दं वाले, चुपड़े होठ वाले, उजले वस्त्र पहनने उभओकालं आवस्सयस्स विहृत्य उभयकालम् आवश्यकाय वाले, तीर्थंकरों की आज्ञा से बाहर स्वच्छंद उवठंति। से तं लोगुत्तरियं उपतिष्ठन्ते। तदेतत् लोकोत्तरिक विहार कर जो दोनों समय आवश्यक के लिए दवावस्सयं । से तं जाणगसरीर- द्रव्यावश्यकम् । तदेतत् ज्ञशरीर-भव्य- उपस्थित होते हैं। वह लोकोत्तरिक-द्रव्यभवियसरीरवतिरित्तं दवावस्स। शरीर-व्यतिरिक्तं द्रव्यावश्यकम् । आवश्यक है। वह ज्ञ-शरीर-भव्य-शरीरसे तं नोआगमओ दवावस्सयं । से तदेतत् नोआगमतो द्रव्यावश्यकम् । व्यतिरिक्त-द्रव्य-आवश्यक है । वह नोआगमतः तं दवावस्सयं ॥ तदेतत् द्रव्यावश्यकम् । द्रव्य-आवश्यक है । वह द्रव्य-आवश्यक है। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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