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________________ पहला प्रकरण : सूत्र २०-२७ २२. से कि तं भावावस्सयं? भावा- अथ किं तद् भावावश्यकम् ? वस्सयं दुविहं पण्णत्तं, तं जहा - भावाश्यक द्विविधं प्रजप्तम्, तद्यथाआगमओ य नोआगमओ य॥ आगमतश्च नोआगमतश्च । २२. वह भाव-आवश्यक क्या है ? आवश्यक के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे-आगमतः और नोआगमतः । २३. से कि तं आगमओ भावावस्सयं? अथ कि तद् आगमतो भावा- २३. वह आगमता-भाव-आवश्यक क्या है? आगमओ भावावस्सयं-- जाणए वश्यकम् ? आगमतो भावावश्यकम्- आगमत: भाव आवश्यक-जो आवश्यक को उवउत्ते । से तं आगमओ भावा- ज्ञः उपयुक्तः । तदेतत् आगमतो जानता है और उसमें उपयुक्त [दत्तचित्त है वस्सयं ॥ भावावश्यकम् । वह आगमत:-भाव-आवश्यक है। २४. से कि तं नोआगमओ भावा- अथ कि तद् नोआगमतो भावा- २४. वह नोआगमत:-भाव-आवश्यक क्या है ? बस्सयं? नोआगमओ भावा- वश्यकम ? नोआगमतो भावावश्यक नोआगमतः भाव आवश्यक के तीन प्रकार वस्सयं तिविहं पण्णत्तं, तं जहा- त्रिविधं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा-लौकिक प्रज्ञप्त हैं, जैसे-लौकिक, कुप्रावनिक और लोइयं कुप्पावणियं लोगुत्तरियं ॥ कुप्रावचनिकं लोकोत्तरिकम् । लोकोत्तरिक । २५. से कि तं लोइयं भावावस्सयं? अथ कि तद लौकिकं भावा- २५. वह लौकिक-भाव-आवश्यक क्या है ? लोइयं भावावस्सयं-पुवण्हे वश्यकम् ? लौकिकं भावावश्यकम् - लौकिक-भाव-आवश्यक-[वक्ता और श्रोता] भारहं, अवरण्हे रामायणं । से तं पूर्वाह्न भारतम्, अपराह्न पूर्वाल्ल में भारत और अपराल में रामायण लोइयं भावावस्सयं ॥ रामायणम् । तदेतत् लौकिकं भावा- के पाठ में उपयुक्त होते हैं । वह लौकिक भाव वश्यकम् । आवश्यक है। २६. से कि तं कुप्पावयणियं भावा- अथ कि तत् कप्रावनिक भावा- २६. वह कुप्रावनिक-भाव-आवश्यक क्या है ? वस्सयं? कुप्पावणियं भावा- वश्यक ? कुप्रावनिकं भावा- कुप्रावनिक-भाव-आवश्यक-जो चरक, वस्सयं-जे इमे चरग-चीरिय- वश्यकम् -ये इमे चरक-चीरिक-चर्म- चीरिक, चर्मखण्डिक, भिक्षाजीवी, शैव, चम्मखंडिय - भिक्खोंड - पंडुरंग - खण्डिक-भिक्षोण्ड-पाण्डुरांग - गौतम गौतम, गोव्रती, गृहधर्मी, धर्मचिन्तक, अविरुद्ध, गोयम-गोव्व इय-गिहिधम्म - धम्म- गोवतिक-गहिधर्म-धर्मचिंतक-अविरुद्ध विरुद्ध और बुद्ध-श्रावक आदि विभिन्न पाषण्डों चित्तग-अविरुद्ध-विरूद्ध - वुड्डसाव- विरुद्ध वृद्धश्रावकप्रभृतयः पाषडस्थाः [धर्म-सम्प्रदायों] के अनुयायी, देव-पूजा, गप्पभिइओ पासंडत्या इज्जंजलि- इज्याञ्जलि-होम-जप- 'उंदुरुक्क'-- अञ्जलि, होम, जप, देव आदि के सामने होम-जप-उंदुरुक्क-नमोक्कारमाइ- नमस्कारादिकानि भावावश्यकानि बैल की तरह रंभाना और नमस्कार आदि याइं करेति । से तं कुप्पावयणियं कुर्वन्ति । तदेतत् कुप्रावनिक भाव युक्त आवश्यक क्रियाओं को संपन्न करते भावावस्सयं ॥ भावावश्यकम् । हैं, वह कुप्रावनिक-भाव-आवश्यक है। २७. से कि तं लोगुत्तरियं भावावस्सयं? अथ कि तत् लोकोत्तरिकं भावा- २७. वह लोकोतरिक-भाव-आवश्यक क्या है? लोगृत्तरियं भावावस्सयं-जण्णं वश्यकम ? लोकोतरिकं भावावश्यक- लोकोत्तरिक - भाव - आवश्यक -जो साधु, इमं समणे वा समणी वा सावए यत् इदं श्रमणः वा श्रमणी वा श्रावका साध्वी, श्रावक और श्राविका आवश्यक में वा साविया वा तच्चित्ते तम्मणे वा श्राविका वा तच्चित्तः तम्मनाः एक चित्त, एक मन, एक लेश्या और एक तल्लेसे तदझवसिए तत्तिव्वज्झ- तल्लेश्यः तदध्यवसित. ततीव्राध्यव- अध्यवसाय वाले, उसी में तीव्र अध्यवसाय वसाणे तबट्टोवउत्ते तदप्पियकरणे- सानः तदर्थोपयुक्तः तपित-करण: वाले, उसके अर्थ में उपयुक्त, उसके लिए सब तब्भावणाभाविए अण्णत्थ कत्थइ तद्भावनाभावितः अन्यत्र कुत्रचित् इन्द्रियों को समर्पित करने वाले, उसकी मणं अकरेमाणे उभओ कालं मनः अकुर्वन् उभयकालम् आवश्यक भावना से भावित अन्यत्र कहीं भी मन की आवस्सयं करेति। से तं __ करोति । तदेतद लोकोत्तरिक भावा- प्रवृत्ति नहीं करते हुए दोनों समय (प्रातः लोगुत्तरियं भावावस्सयं। से तं वश्यकम् । तदेतत् नोआगमतो और सायं) आवश्यक करते हैं। वह लोकोनोआगमओ भावावस्सयं। से तं भावावश्यकम् । तदेतत् भावा- तरिक-भाव-आवश्यक है। वह नोआगमत:भावावस्सयं ॥ वश्यकम् । भाव-आवश्यक है। वह भाव-आवश्यक है।" www.jainelibrary.org Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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