________________
पहला प्रकरण : सूत्र ५-१३ ८. से कि तं आवस्सयं ? आवस्सयं अथ कि तद् आवश्यकम् ?
चउन्विहं पण्णत्तं, तं जहा-नामा- आवश्यकं चतुर्विधं प्रज्ञप्तम्, वस्सयं ठवणावस्सयं दवावस्सय तद्यथा - नामावश्यकम स्थापनावश्यभावावस्सयं ॥
कम् द्रव्यावश्यकम् भावावश्यकम् ॥
८. वह आवश्यक क्या है ? आवश्यक के चार प्रकार प्रप्जत हैं, जैसे-नाम आवश्यक स्थापना आवश्यक, द्रव्य आवश्यक, भाव आवश्यक।
६. से कि तं नामावस्सयं? नामा- अथ कि तत् नामावश्यकम् ? वस्सयं-जस्स णं जीवस्स वा नामावश्यकं यस्य जीवस्य वा अजोवस्स वा जीवाण वा अजीवाण अजीवस्य वा जीवानां वा अजीवानां वा तभयस्स वा तदुभयाण वा वा तदुभयस्य वा तदुभयेषां वा आवस्सए त्ति नामं कज्जइ। से तं आवश्यकमिति नाम क्रियते । तदेतत् नामावस्सय॥
नामावश्यकम् ।
९. वह नाम आवश्यक' क्या हैं ? नाम---
आवश्यक-जिस जीव या अजीव का, जीवों या अजीवों का, जीव-अजीव दोनों का, जीवों अजीवों दोनों का आवश्यक यह नाम किया जाता है । वह नाम आवश्यक है।
१०.से कि तं ठवणावस्सयं ?
अथ कि तत् स्थापनावश्यकम् ? १०. वह स्थापना आवश्यक' क्या है ? स्थापना ठवणावस्सयं-जण्णं कट्टकम्मे स्थापनावश्यकम् - यत् काष्ठकर्मणि आवश्यक-काष्ठाकृति, चित्राकृति, पुस्तक वा चित्तकम्मे वा पोत्थकम्मे वा चित्रकर्मणि वा पुस्तकर्मणि वा में अंकित चित्र, या लेप्याकृति में गूंथकर, वा लेप्पकम्मे वा गंथिमे वा लेप्यकर्मणि वा ग्रन्थिमे वा वेष्टिमे वेष्टित कर, भरकर या जोड़कर बनाई हुई वेदिमे वा परिमे वा संघाइमे वा वा परिमे वा संघातिमे वा अक्षे वा पुतली में, अक्ष या कौड़ी में एक या अनेक अक्खे वा वराडए वा एगो वा वराटके वा एको वा अनेके वा सद्भाव-स्थापना [वास्तविक-आकृति] अथवा अणेगा वा सब्भावठवणाए वा सद्भावस्थापनया वा असद्भावस्थाप- असद्भाव स्थापना काल्पनिक आरोपण] के असम्भावठवणाए वा आवस्सए नया वा आवश्यकम् इति स्थापना द्वारा आवश्यक [आवश्यक क्रिया करते हुए त्ति ठवणा ठविज्जइ। से तं स्थाप्यते । तदेतत् स्थापनाऽऽवश्यकम् । व्यक्ति का जो रूपांकन या कल्पना की ठवणावस्सयं ॥
जाती है । वह स्थापना आवश्यक है।
११. नाम-ट्रवणाणं को पइविसेसो ?
नामस्थापनयोः कः प्रतिविशेषः? ११. नाम और स्थापना में क्या अन्तर है ? नाम नामं आवकहियं, ठवणा इत्तरिया नाम यावत्कथिकम्, स्थापना इत्वरिका यावज्जीवन होता है, स्थापना अल्पकालिक वा होज्जा आवकहिया वा ॥ वा भवेत् यावत्कथिका वा।
भी होती है और यावज्जीवन भी।'
१२. से कि तं दव्वावस्सयं? दवावस्सयं दुविहं पण्णत्तं, तं जहाआगमओ य नोआगमओ य॥
अय कि तत् द्रव्यावश्यकम् ? द्रव्यावश्यकं द्विविधं प्रज्ञप्तम्, तद्यथाआगमतश्च नोआगमतश्च ।।
१२. वह द्रव्य-आवश्यक' क्या है ? द्रव्य-आवश्यक
के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे - आगमतः [जान की अपेक्षा से] और नोआगमतः | ज्ञानाभाव और क्रिया की अपेक्षा से] ।
१३. से कि तं आगमओ दवावस्सयं?
अथ कि तद आगमतो द्रव्या- १३. वह आगमतः द्रव्य आवश्यक क्या है ? आगमओ दवावस्सयं जस्स णं वश्यकम् ? आगमतो द्रव्यावश्यकम्- जिसने आवश्यक यह पद सीख लिया, स्थिर आवस्सए त्ति पदं सिक्खियं ठियं यस्य आवश्यकम् इति पदं शिक्षित कर लिया, चित [स्मृति-योग्य] कर लिया, जियं मियं परिजियं नामसमं स्थितं चितं मितं परिचितं नामसमं मित [श्लोक आदि की संख्या से निर्धारित घोससम अहीणक्खरं अणच्चक्खर घोषसमम् अहीनाक्षरम् अनत्यक्षरम् कर लिया] परिचित कर लिया, नाम-सम अव्वाइद्धक्खरं अक्खलियं अमि- अव्याविद्वाक्षरम् अस्खलितम् [अपने नाम के समान] कर लिया, घोष-सम लियं अवच्चामेलियं पडिपुणं अमीलितम अव्यत्यादंडितं प्रतिपूर्ण [सही उच्चारण युक्त कर लिया, जिसे वह पडिपुण्णघोसं कंठो?विप्पमुक्कं प्रतिपूर्णघोष कण्ठोष्ठविप्रमुक्तं हीन, अधिक और विपर्यस्त-अक्षर रहित, गुरुवायणोवगयं, से णं तत्थ गरुवाचनोपगतं तत् वाचनया अस्खलित, अन्य वर्गों से अमिश्रित, अन्य ग्रंथवायणाए पुच्छणाए परियट्टणाए प्रच्छनया परिवर्तनया धर्मकथया, नो वाक्यों से अमिश्रित, प्रतिपूर्ण, प्रतिपूर्णघोषधम्मकहाए, नो अणुप्पेहाए। अनुप्रेक्षया। कस्मात् ? अनुपयोगो युक्त, कण्ठ और होठ से निकला हुआ तथा जिसे
Jain Education Intemational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org