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वि उद्देसो समुद्देतो अणुण्णा अनुज्ञा अनुयोगश्च प्रवर्तते। इमां अणुओगो य पवत्तइ, इमं पुण पुनः प्रस्थापना प्रतीत्य उत्कालिकस्य पट्टवणं पडुच्च उक्कालियस्स उद्देशः समुद्देशः अनुज्ञा अनुयोगश्च उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो प्रवर्तते। य पवत्तइ॥
अणुओगदाराई उत्कालिक श्रुत का भी उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग प्रवृत्त होता है। प्रस्तुत प्रस्थापना की दृष्टि से उत्कालिक श्रुत का उद्देश, समुद्दे श, अनुज्ञा और अनुयोग प्रवृत्त
५. जइ उक्कालियस्स उद्देसो यदि उत्कालिकस्य उद्देशः समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य समुद्देशः अनुज्ञा अनुयोगश्च प्रवर्तते, पवत्तइ, कि आवस्सयस्स उद्देसो किम् आवश्यकस्य उद्देशः समुद्देशः समुद्देसो अणण्णा अणुओगो य अनुज्ञा अनुयोगश्च प्रवर्तते ? आवपवत्तइ? आवस्सयवतिरित्तस्स श्यकव्यतिरिक्तस्य उद्देशः समुद्देशः उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो अनुज्ञा अनुयोगश्च प्रवर्तते ? आवय पवत्तइ ? आवस्सयस्स वि श्यकस्य अपि उद्देशः समुद्देशः अनुज्ञा उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो अनुयोगश्च प्रवर्तते, आवश्यकव्यतिय पवत्तइ, आवस्सयवतिरित्तस्स रिक्तस्यापि उद्देशः समुद्देशः अनुज्ञा वि उद्देसो समुद्देसो अणण्णा अनुयोगश्च प्रवर्तते। इमां पुनः अणओगो य पवत्तइ। इमं पुण प्रस्थापनां प्रतीत्य आवश्यकस्य पटवणं पडुच्च आवस्सयस्स अनुयोगः । अणुओगो॥
५. यदि उत्कालिक श्रुत का उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग प्रवृत्त होता है तो क्या आवश्यक श्रुत का उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग प्रवृत्त होता है ? अथवा आवश्यक-व्यतिरिक्त श्रुत का उद्देश, समुद्देश अनुज्ञा और अनुयोग प्रवृत्त होता है ?
आवश्यक श्रुत का भी उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग प्रवृत्त होता है । आवश्यक-व्यतिरिक्त श्रुत का भी उद्देश, समुद्देश अनुज्ञा और अनुयोग प्रवृत्त होता है।
प्रस्तुत प्रस्थापना की दृष्टि से आवश्यक श्रुत का अनुयोग प्रवृत्त है।'
आवस्सय-सरूव-पदं
आवश्यक-स्वरूप-पदम् ६. जइ आवस्सयस्स अणुओगो, यदि आवश्यकस्य अनुयोगः,
आवस्सयण्णं कि अंग? अंगाई? आवश्यक किम् अङ्गम् ? अङ्गानि ? सुयखंधो? सुयखंधा? अज्झयण? श्रुतस्कन्धः ? श्रुतस्कन्धाः ? अज्झयणाई? उद्देसो? उद्देसा? अध्ययनम् ? अध्ययनानि ? उद्देशः आवस्सयण्णं नो अंगं नो अंगाई, उद्देशाः ? आवश्यकं नो अङ्ग नो सुयखंधो नो सुयखंधा, नो अज्झयणं अङ्गानि, श्रुतस्कन्धः नो श्रुतस्कन्धाः, अज्झयणाई, नो उद्देसो नो नो अध्ययनम् अध्ययनानि, नो उद्देसा॥
उद्दशः नो उद्देशाः॥
आवश्यक-स्वरूप-पद ६. यदि आवश्यक श्रुत का अनुयोग प्रवृत्त होता है, क्या आवश्यक एक अंग है ? अथवा अनेक अंग हैं ? एक श्रुतस्कन्ध है ? अथवा अनेक श्रुतस्कन्ध हैं ? एक अध्ययन है ? अथवा अनेक अध्ययन हैं ? एक उद्देशक है ? अथवा अनेक उद्देशक हैं ? आवश्यक एक अंग नहीं है और अनेक अंग भी नहीं हैं। एक श्रतस्कन्ध है, अनेक श्रुतस्कन्ध नहीं हैं। एक अध्ययन नहीं है, अनेक अध्ययन हैं । एक उद्देशक नहीं है और अनेक उद्देशक भी नहीं हैं।
आवस्सय-निक्खेव-पदं
आवश्यक-निक्षेप-पदम् ७. तम्हा आवस्सयं निक्खिविस्सामि, तस्मात् आवश्यक निक्षेप्स्यामि, सुयं निक्खिविस्सामि, खंधं निक्खि- श्रुतं निक्षेप्स्यामि, स्कन्धं निक्षेप्स्यामि, विस्सामि, अज्झयणं निक्खि- अध्ययनं निक्षेप्स्यामि । विस्सामि। जत्थ य ज जाणेज्जा,
यत्र च यं जानीयात्, निक्खेवं निक्खिवे निरवसेसं। निक्षेपं निक्षिपेत् निरवशेषम् । जत्थ वि य न जाणेज्जा, यत्रापि च न जानीयात्, चउक्कयं निक्खिवे तत्थ ॥१॥ चतुष्ककं निक्षिपेत् तत्र ॥१॥
आवश्यक-निक्षेप-पद ७. इसलिए मैं आवश्यक का निक्षेप करूंगा, श्रुत का निक्षेप करूंगा, स्कन्ध का निक्षेप करूंगा, अध्ययन का निक्षेप करूंगा।
जहां जितने निक्षेप ज्ञात हों वहां उन सभी (निक्षेपों) का न्यास किया जाए। जहां बहुत निक्षेप ज्ञात न हों, वहां कम से कम निक्षेप-चतुष्टय (नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव) का न्यास किया जाए।
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