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________________ मूल पाठ नाण-पदं १. नाणं णितं तं जहा आभिणिबोहियनाणं सुयनाणं ओहिनाणं मणवज्जवनाणं केवलनाणं ॥ आवस्यअणु-पर्व २. तत्व बतारि नागाई ठप्पाई ठवणिज्जाईनो उद्दिस्संति, नो समुद्दिस्संति नो अणुण्णविज्जंति, सुयनाणस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्त ॥ ३. जइ सुवनाणस्स उद्देसो समुद्देसो अण्णा अणुओगो य पवत्तइ, कि अंगपविटुस्स उद्देसो समुहसो अणुष्णा अणुओगो व पवत्त ? अंगवाहिरस्स उद्देसो समुद्देसो अणुष्णा अणुओगो य पवई ? अंगपट्ठिस्स वि उद्देसो समुद्देतो अणुष्णा अणुओगो प अंगबाहिरस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओोगो व पवई । इमं पुष पुण पट्टवणं पटुवणं पटुच्च अंगबाहिरस्स उद्देसो समुद्देसो अण्णा अणुओगो य पवत्तई ॥ ४. जइ अंगबाहिरस्स उद्देसो समुद्देसो अण्णा अणओगोय पवत कि कालियस उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगोप पावत ? उनकालि यस्स उद्देसो समुद्देसो अगुण्णा अणुओगो य पवत्तइ ? कालियरस विउसो समुदेसो अणुष्णा अणुओगो य पवत्त, उक्कालियस्स Jain Education International पहला प्रकरण संस्कृत छाया ज्ञान-पदम् प्रज्ञप्तम्, ज्ञानं पञ्चविधं तद्यथा - आभिनिबोधिकज्ञानं श्रुतज्ञानं अवधिज्ञानं मनः पर्यवज्ञानं केवलज्ञानम् ॥ आवश्यक अनुयोग-पदम् तत्र चत्वारि ज्ञानानि स्थाप्यानि स्थापनीयानि-नो उद्दिश्यन्ते नो समुद्दिश्यन्ते नो अनुज्ञायन्ते, श्रुतज्ञानस्य उद्देश : समुद्देशः अनुज्ञा अनुयोगश्च प्रवर्तते । यदि ज्ञानस्य उद्देशः समुद्देशः अनुज्ञा अनुयोगश्च प्रवर्तते, किम प्रविष्टस्य उद्देशः समुद्देशः अनुज्ञा अनुयोगश्च प्रवर्त्तते ? अङ्गबाह्यस्य उद्देशः समुद्देश: अनुज्ञा अनुयोगश्च प्रवर्तते ? अवस्य अपि उद्देश समुद्देशः अनुशा अनुयोगच प्रवर्तते अवाह्यस्य अपि उद्देशः समुद्देशः अनुज्ञा अनुयोगश्च प्रवर्तते । इमां पुनः प्रस्थापनां प्रतीत्य अङ्गबाह्यस्य उद्देशः समुद्देशः अनुसा अनुयोगव प्रवर्तते । यदि अङ्गबाह्यस्य उद्देश : समुद्देश: अनुजा अनुयोगश्च प्रवर्तते, कि कालिकस्य उद्देशः समुद्देशः अनुज्ञा अनुचरकालिकस्य उद्देश : समुद्देशः अनुज्ञा अनुयोगव प्रवर्तते ? कालिकस्य अपि उद्देश : समुद्देशः अनुज्ञा अनुयोगच प्रवर्तते उत्कालिकस्य अपि उद्देशः समुद्देशः For Private & Personal Use Only हिन्दी अनुवाद ज्ञान-पद १ १. ज्ञान के पांच प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसेआभिनिवोधिज्ञान श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान मनः पर्यवज्ञान, केवलज्ञान । आवश्यक अनुयोग पद २. उनमें चार ज्ञान (प्रतिपादन में अक्षम होने के कारण) स्वाप्य (असभ्यवहार्य) है अतएव स्वापनीय है।' उनके उद्देश, समुद्देश और अनुज्ञा नहीं होती, श्रुतज्ञान का उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग (व्याख्या) प्रवृत्त होता है।' ३. यदि श्रुतज्ञान का उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग प्रवृत्त होता है, तो क्या अंग-प्रविष्ट त का उद्देश, समुद्देश, अनुशा और अनुयोग प्रवृत्त होता है ? अथवा अंगबाह्य श्रुत का उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग प्रवृत्त होता है ? अंग प्रविष्ट श्रुत का भी उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग प्रवृत्त होता है, बंग बाह्य श्रुत का भी उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग प्रवृत्त होता है। प्रस्तुत प्रस्थापना की दृष्टि से अंगबाह्य श्रुत का उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग प्रवृत्त होता है। ४. यदि अंगवा धूत का उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग प्रवृत्त होता है, तो क्या श्रुत का उद्देश, समुद्देश, अनुशा और अनुयोग प्रवृत्त होता है ? अथवा उत्कालिक श्रुत का उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग प्रवृत्त होता है । कालिक श्रुत का भी उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग प्रवृत्त होता है. www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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