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प्र० १३, सू०७१३, टि० १६
३८३ १९. कियच्चिरम्-सामायिक की स्थिति कितनी है ?
सम्यक्त्व सामायिक और श्रुत सामायिक की लब्धि की दृष्टि से उत्कृष्ट स्थिति ६६ सागरोपम से कुछ अधिक है । देशविरति सामायिक व सर्वविरति सामायिक की उत्कृष्ट स्थिति देशोनपूर्वकोटि है। सम्यक्त्व सामायिक, श्रुत सामायिक तथा देशविरति सामायिक की लब्धि की दृष्टि से जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त तथा सर्वविरति सामायिक की एक समय है।
उपयोग की अपेक्षा से सब सामायिकों की स्थिति अन्तर्मुहूर्त है।' २०. कति–सामायिक के प्रतिपत्ता कितने होते हैं ?
सम्यक्त्व सामायिक व देशविरति सामायिक के प्रतिपत्ता एक काल में उत्कृष्टत: क्षेत्र पल्योपम के असंख्येय भाग में जितने आकाश प्रदेश होते हैं उतने होते हैं। देशविरत सामायिक के प्रतिपत्ता से सम्यक्त्व सामायिक के प्रतिपत्ता असंख्येय गुण अधिक होते हैं । जघन्यतः एक अथवा दो प्रतिपत्ता उपलब्ध होते हैं।
श्रुत सामायिक के प्रतिपत्ता श्रेणी के असंख्यातवें भाग में जितने आकाश प्रदेश होते हैं उत्कृष्टतः उतने होते हैं । जघन्यतः एक अथवा दो होते हैं। सर्वविरति के प्रतिपत्ता उत्कृष्टत: सहस्रपृथक् (दो से नौ हजार) तथा जघन्यतः एक अथवा दो होते हैं । विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य विशेषावश्यक भाष्य गाथा २७६४ से २७७४ ।
२१. अन्तर–सामायिक की पुनः प्राप्ति में कितना काल व्यवधान बनता है ?
श्रुत सामायिक के प्रतिपत्ता का अन्तरकाल जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्टतः अनन्तकाल है। शेष तीन सामायिक के प्रतिपत्ता का अन्तरकाल जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्टत: देशोन अपार्ध पुद्गलपरावर्तन है।'
२२. अविरहित-सम्यक्त्व सामायिक, श्रुत सामायिक और देशविरति के प्रतिपत्ता आवलिका के असंख्येय भाग समयों तक निरन्तर एक दो आदि मिलते हैं। तत्पश्चात् उनका विरहकाल प्रारम्भ हो जाता है। चारित्र सामायिक के प्रतिपत्ता का अविरहकाल आठ समय तक होता है। उस अवधि में एक, दो आदि प्रतिपत्ता मिलते हैं। तत्पश्चात् उनका विरहकाल प्रारंभ हो जाता है। जघन्यतः सामायिक चतुष्क का अविरहकाल दो समय का होता है।'
२३. भव--सम्यक्त्व सामायिक और श्रुत सामायिक के प्रतिपत्ता क्षेत्र पल्योपम के असंख्यातवें भाग में जितने आकाश प्रदेश होते हैं उत्कृष्टतः उतने भव करते हैं तथा जघन्यतः एक भव करते हैं। तत्पश्चात् मुक्त हो जाते हैं। चारित्र सामायिक का प्रतिपत्ता उत्कृष्टतः आठ भव तथा जघन्यतः एक भव करता है। श्रुत सामायिक का प्रतिपत्ता उत्कृष्टतः अनन्त भव तथा जघन्यतः एक भव करता है।
२४. आकर्ष-एक या अनेक भवों में सामायिक कितनी बार उपलब्ध हो सकता है ?
सम्यक्त्व सामायिक, श्रुत सामायिक और देशविरति सामायिक का एक भव में सहस्र पृथक्त्व (२ से ९ हजार) बार तक आकर्ष (उपलब्धि) हो सकता है। सर्वविरति सामायिक का आकर्ष एक भव में शत पृथक्त्व (२०० से ९००) बार तक हो सकता है। यह उत्कृष्ट आकर्ष का उल्लेख है। न्यूनतम आकर्ष एक भव में एक बार होता है।
सम्यक्त्व सामायिक और देश विरति सामायिक का नाना भवों में उत्कृष्टतः असंख्येय हजार बार आकर्ष होता है। २५. स्पर्श-सामायिक करने वाला कितने क्षेत्र का स्पर्श करता है ?
सम्यक्त्व सामायिक और सर्वविरति सामायिक से सम्पन्न जीव केवली समुद्घात के समय सम्पूर्ण लोक का स्पर्श करता है। श्रुत सामायिक और सर्वविरति सामायिक से सम्पन्न जीव इलिका गति से अनुत्तर विमान में उत्पन्न होता है तब वह लोक के सप्तचतुर्दश (१२) भाग का स्पर्श करता है। सम्यक्त्व सामायिक और श्रुत सामायिक से सम्पन्न जीव छट्ठी नारकी में इलिका गति से उत्पन्न होता है। तब वह लोक के पञ्चचतुर्दश (५५) भाग का स्पर्श करता है। देशविरति सामायिक से सम्पन्न जीव यदि इलिका गति से अच्युत देवलोक में उत्पन्न होता है तो वह पञ्चचतुर्दश (१४) भाग का स्पर्श करता है।
इसका दूसरा विकल्प यह है -यदि अन्य देवलोकों में उत्पन्न होता है तो द्विचतुर्दश (२४) आदि भागों का स्पर्श होता है।' २६. निरुक्त सामायिक के निरुक्त कितने होते हैं ? सम्यक्त्व सामायिक के निरुक्त सम्यग् दृष्टि, अमोह, शोधि, सद्भाव दर्शन, बोधि, अविपर्यय, सुदृष्टि आदि हैं । श्रुत
१. विभा, २७६१,२७६३ । २. वही, २७७५। ३. वही, २७७७। ४. वही, २७७९ तथा उसको वृत्ति ।
५. वही, २७८० । ६. वही, २७८१। ७. वही, २७८२॥
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