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प्र० १३, सू० ७०८-७१३, टि० १०-१६
सूत्र ७०९
१२. सूत्रालायक निष्यन्न निक्षेप (सुत्तालागनिष्कष्णे निवे
सूत्रालापक निष्पन्न निक्षेप का अर्थ है- सूत्रोच्चारण पूर्वक सूत्रगत प्रत्येक पद का नाम यह निक्षेप तभी होता है जब सामने सूत्र का पाठ हो। प्रस्तुत प्रकरण में सूत्र पाठ का अभाव है। नहीं हो सकता । सूत्र का उल्लेख सूत्रानुगम में है। यहां सूत्रालापक निष्पन्न निक्षेप की चर्चा निक्षेप सूत्रालापक एक निक्षेप है। यह निक्षेप द्वार है इसलिए यह चर्चा अस्वाभाविक नहीं है ।
सूत्र ७१०,७११
१४. ( सूत्र ७१०, ७११ )
अनुगम अनुयोगद्वार के दो प्रकार निर्दिष्ट हैं
१. सूत्रानुगमसूत्र का कथन करना ।
२. निर्युक्त्यनुगम-निर्युक्ति का अर्थ है -सूत्र के साथ अर्थ का एकात्मभाव से सम्बद्ध होना । इस रूप में सूत्र का सम्बन्ध अर्थ के साथ होता है क्योंकि वह उससे अविच्छिन्न है। निर्युक्त- अर्थ । युक्ति-स्पष्ट रूप से प्रतिपादन । मध्यवर्ती युक्त शब्द कालोप होने से नियुक्ति शब्द निष्पन्न होता है। नियुक्ति का एक अर्थ है निश्चित युक्ति' अनुगम का अर्थ है व्याख्या निर्मुक्त्यनुगम अर्थात् सूप से संपृक्त अर्थ का प्रतिपादन करना। इसके तीन प्रकार है निशेष निकायनुगम, उपोद्घात निर्मुक्त्यनुगम और स्पणिक निर्युमत्यनुगम
सूत्र ७१२
१५. निक्षेप निर्युक्ति अनुगम (निक्खेव निज्जुत्तिअणुगमे )
नाम, स्थापना, द्रव्य आदि के भेद से प्रस्तुत विषय को स्पष्ट करने के लिए किया जाने वाला अनुगम ( व्याख्या) ।
सूत्र ७१३
१६. उपोद्घातनियुक्ति अनुगम (उबन्धायनिज्जुत्तिअणुगमे )
१. उद्देश – सामान्य रूप से नाम कथन करना, जैसे अध्ययन ।
२. निर्देश - विशेष नाम का निर्देश करना, जैसे-सामायिक ।
व्याख्येय सूत्र को व्याख्या विधि के निकट लाना, जिस सूत्र की जिस प्रसंग में जो व्याख्या करनी हो उसकी पृष्ठभूमि तैयार करना उपोद्घात कहलाता है । उपोद्घात के अर्थ का कथन उपोद्घात निर्युक्त्यनुगम है। इस नियुक्त्यनुगम के २६ द्वार हैं
१.वि.मा. १४०५ की वृति निश्चितोक्तिनिर्मुक्तिः । २. विभा ३३४३ ।
३८१
स्थापना आदि के क्रम से न्यास । इसलिए यहां उसका निक्षेप भी मात्र की समानता से की गई है।
३. निर्गम मूल स्रोत की खोज करना, जैसे सामायिक का निर्गमन महावीर से हुआ।
४. क्षेत्र - वर्तमान कालखण्ड में महासेन वन नामक उद्यान में सामायिक की उत्पत्ति हुई ।
५. काल
- सम्यक्त्व सामायिक और श्रुत सामायिक की प्रतिपत्ति सुषम-सुषमा, सुषमा आदि छहों कालखण्डों (अंशों) में होती है । देशविरति सामायिक व सर्वविरति सामायिक की प्रतिपत्ति उत्सर्पिणी के दुःषम-सुषमा और सुषम दुःषमा तथा अवसर्पिणी के सुषम दुःषमा, दुःषम- सुषमा और दुःषमा कालखण्डों में होती है । "
६. पुरुष - व्यवहार दृष्टि में सामायिक का प्रतिपादन तीर्थङ्कर और गणधरों ने किया। निश्चयनय के अनुसार सामायिक काकर्ता है सामायिक का अनुष्ठान करने वाला ।
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७. कारण - किस कारण से गौतम आदि ने महावीर के समक्ष सामायिक का श्रवण किया ?
समता धर्म को सूत्रात्मक शैली में जनता तक पहुंचाने के लिए गौतम आदि गणधरों ने महावीर के समक्ष सामायिक का श्रवण किया ।
८. प्रत्यय - किस प्रत्यय ( मूलकारण ) से भगवान ने सामायिक का प्रतिपादन किया ?
३. वही, २७०८ ।
४. वही ३३८२, ३३८३ ।
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