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________________ ३७३ तेरहवां प्रकरण : ७००-७०५ भवियसरीरदब्वसामाइए जाणग- द्रव्यसामायिकं ज्ञशरीर-भव्यशरीरसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ते दवा व्यतिरिक्त द्रव्यसामायिकम् । सामाइए ॥ शरीर व्यतिरिक्त द्रव्य सामायिक । ७०३. से कि तं जाणगसरीरदव्व- अथ कि तद् ज्ञशरीरद्रव्यसामायि- ७०३. वह ज्ञशरीर द्रव्य सामायिक क्या है ? सामाइए? जाणगसरीरदव- कम् ? ज्ञशरीरद्रव्यसामायिकम् ---- ज्ञशरीर द्रव्य सामायिक-सामायिक इस सामाइए सामाइए त्ति पयत्था- सामायिकम् इति पदार्थाधिकारज्ञस्य पद के अर्थाधिकार को जानने वाले व्यक्ति का हिगारजाणगस्स जं सरीरयं यत् शरीरकं व्यपगत-स्युत-च्यावित- जो शरीर, अचेतन, प्राण से च्युत, किसी ववगय-चय-चाविय-चत्तदेहं जोव- स्यक्तदेहं जीवविहीणं शय्यागतं वा निमित्त से प्राण च्युत किया हुआ, उपचय रहित विप्पजढं सेज्जागयं वा संथारगयं संस्तारगतं वा निषीधिकागतं वा और जीव विप्रमुक्त है । उसे शय्या, बिछौने, वा निसीहियागयं वा सिद्धसिला- सिद्धशिलातलगतं वा दृष्ट्वा कोऽपि श्मशानभूमि या सिद्धशिलातल पर देखकर तलगयं वा पासित्ता णं कोइ वदेत् - अहो अनेन शरीरसमुच्छयेण कोई कहे आश्चर्य है इस पौद्गलिक शरीर वएज्जा अहो णं इमेणं सरीर- जिनदिष्टेन भावेन सामायिकम् इति ने जिन द्वारा उपदिष्ट भाव के अनुसार समुस्सएणं जिणदिठेणं भावेणं पदम् आख्यातं प्रज्ञापितं प्ररूपितं सामायिक इस पद का आख्यान, प्रज्ञापन, सामाइए त्ति पयं आवियं पण्ण- दर्शित निदर्शितम उपदशितम् । यथा प्ररूपण, दर्शन, निदर्शन और उपदर्शन किया वियं परूवियं दंसियं निदंसियं को दृष्टान्त: ? अयं मधुकुम्भ: है। जैसे कोई दृष्टान्त है ? [आचार्य ने उवदंसियं। जहा को दिठ्ठतो? आसीत्, अयं घृतकुम्भः आसीत् । कहा ---इसका दृष्टान्त यह है] यह मधुघट अयं महकमे आसी, अयं घयकभे तदेतद् ज्ञशरीरद्रव्यसामायिकम् । था, यह घृतघट था। वह ज्ञशरीर द्रव्य आसी। से तं जाणगसरीरदब्व सामायिक है। सामाइए॥ ७०४. से कि तं भवियसरीरदब्व- अथ कि तद् भव्यशरीरद्रव्यसामा- ७०४. वह भव्यशरीर द्रव्य सामायिक क्या है ? सामाइए ? भवियसरीरदब्वया- यिकम् ? भव्यशरीरद्रव्यसामायिकम्- भव्यशरीर द्रव्य सामायिक-गर्भ की सामाइए-जे जीवे जोणिजम्मण- यो जीवो योनिजन्मनिष्क्रान्तः अनेन चैव पूर्णावधि से निकला हुआ जो जीव इस प्राप्त निक्खते इमेणं चेव आदत्तएणं आदत्तकेन शरीरसमुच्छ्येण जिनदिष्टेन पौद्गलिक शरीर से सामायिक इस पद को सरीरसमुस्सएणं जिणदिलैणं ___ भावेन सामायिकम् इति पदम् एष्यत्- जिन द्वारा उपदिष्ट भाव के अनुसार से भावेगं सामाइए त्ति पयं सेयकाले ___ काले शिक्षिष्यते, न तावत् शिक्षते। भविष्य में सीखेगा, वर्तमान में नहीं सीखता है सिक्खिस्सइ, न ताव सिक्खइ। यथा को दृष्टान्तः ? अयं मधुकुम्मः तब तक वह भव्यशरीर द्रव्य सामायिक है । जहा को दिळंतो? अयं महकमे भविष्यति, अयं घृतकुम्भः भविष्यति । जैसे-कोई दृष्टान्त है ? [आचार्य ने कहाभविस्सइ, अयं घयकंभे भविस्सह। तदेतद् भव्यशरीरद्रव्यसामायिकम् । इसका दृष्टान्त यह है] यह मधुघट होगा, यह से तं भवियसरीरदव्वसामाइए। घृतघट होगा। यह भव्यशरीर द्रव्य सामायिक है। ७०५. से कि तं जाणगसरीर-भविय अथ किं तद् शशरीर-भव्यशरीर- ७०५. वह ज्ञशरीर भव्पशरीर व्यतिरिक्त द्रव्य सरीर-वतिरित्ते दव्वसामाइए? व्यतिरिक्तं द्रव्यसामायिकम् ? सामायिक क्या है ? जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ते ज्ञशरीर-भव्यशरीर-व्यतिरिक्तं द्रव्य ज्ञशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्य दव्वसामाइए-पत्तय-पोत्थय सामायिकम् - पत्रक - पुस्तक-लिखि- सामायिक --पत्र और पुस्तकों में लिखित लिहियं से तं जाणगसरीर-भविय- तम् । तदेतद् ज्ञशरीर-भव्यशरीर- सामायिक । वह ज्ञशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त सरीर-वतिरित्ते दव्वसामाइए। व्यतिरिक्तं द्रव्यसामायिकम् । तदेतद् द्रव्य सामायिक है। वह नोआगमत: द्रव्य से तं नोआगमओ दव्वसामाइए। नोआगमतो द्रव्यसामायिकम् । तदेतद् सामायिक है। वह द्रव्य सामायिक है। से तं दव्वसामाइए। द्रव्यसामायिकम्। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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