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________________ ३७२ अणुओगदाराइ ७००.से कि तं आगमओ दव्वसामा- अथ कि त आगमतो द्रव्यसामा- ७००. वह आगमत: द्रव्य सामायिक क्या है ? इए? आगमओ दव्वसामाइए- यिकम् ? आगमतो द्रव्यसामायिकम् - आगमतः द्रव्य सामायिक-जिसने सामाजस्स णं सामाइए ति पदं यस्य सामायिकम् इति पदं शिक्षितं यिक यह पद सीख लिया, स्थिर कर लिया, सिक्खियं ठियं जियं मियं परिजियं स्थित चितं मितं परिचितं नामसमं चित कर लिया, मित कर लिया, परिचित कर नामसमं घोससमं अहीणक्खरं घोषसमम् अहीनाक्षरम् अनत्यक्षरम् लिया, नामसम कर लिया, घोषसम कर अणच्चक्खरं अध्वाइद्धक्खरं अक्ख- अध्याविद्धाक्षरम् अस्खलितम् लिया, जिसे वह होन, अधिक या विपर्यस्त लियं अमिलियं अवच्चामेलियं अमीलितम् अध्यत्यानेडितं प्रतिपूर्ण अक्षर रहित, अस्खलित, अन्य वर्णों से पडिपुण्णं पडिपुण्णघोसं कंठोट- प्रतिपूर्णघोषं कण्ठोष्ठविप्रमुक्तं गुरु- अमिश्रित, अन्य ग्रन्थों के वाक्यों से अमिश्रित, विप्पमुक्कं गुरुवायणोवगयं, से णं वाचनोपगतं, तत्वाचनया प्रतिपूर्ण, प्रतिपूर्ण घोषयुक्त, कण्ठ और होठ से वायणाए पुच्छणाए परियट्ट- प्रच्छनया परिवर्तनया धर्मकथया, नो निकला हुआ तथा गुरु की वाचना से प्राप्त है। णाए धम्मकहाए, नो अणुप्पेहाए। अनुप्रेक्षया। कस्मात् ? अनुपयोगो वह उस [सामायिक पद] के अध्यापन, प्रश्न, कम्हा? अणुवओगो दवमिति द्रव्यमिति कृत्वा। परावर्तन और धर्म कथा में प्रवृत्त आगमतः कटु ॥ द्रव्य सामायिक है । वह अनुप्रेक्षा में प्रवृत्त नहीं होता क्योंकि द्रव्य निक्षेप अनुपयोग होता ७०१. नेगमस्स एगो अणुवउत्तो आग- नैगमस्य एको अनुपयुक्तः आगमतः ७०१. नैगमनय की अपेक्षा एक अनुपयुक्त व्यक्ति मओ एगे दव्वसामाइए, दोणि एक द्रव्यसामायिकम्, द्वौ अनुपयुक्ती आगमतः एक द्रव्य सामायिक है, दो अनुपयुक्त अणव उत्ता आगमओ दोण्णि दव्व- आगमतो द्वे द्रव्यसामायिके, त्रयः व्यक्ति आगमत: दो द्रव्य सामायिक हैं, तीन सामाइयाई, तिणि अणुव उत्ता अनुपयुक्ता: आगमत: त्रीणि द्रव्य- अनुपयुक्त व्यक्ति आगमत: तीन द्रव्य सामायिक आगमओ तिणि दव्वसामाइयाई, सामायिकानि । एवं यावन्ता अनुप- हैं। इस प्रकार जितने अनुपयुक्त व्यक्ति हैं एवं जावइया अणुवउत्ता तावइयाई युक्ताः तावन्ति तानि नैगमस्य नैगमनय की अपेक्षा उतने ही आगमत: द्रव्य ताई नेगमस्स आगमओ दव्वसामा- आगमतो द्रव्यसामायिकानि । एवमेव सामायिक हैं। इयाई। एवमेव ववहारस्स वि। व्यवहारस्यापि । संग्रहस्य एकः वा इसी प्रकार व्यवहारनय की अपेक्षा भी संगहस्स एगो वा अणंगा वा अणु- अनेके वा अनुपयुक्तः वा अनुपयुक्ताः जितने अनुपयुक्त व्यक्ति हैं उतने ही आगमतः वउत्तो वा अणुवउत्ता वा आगमओ वा आगमतो द्रव्यसामायिकं वा द्रव्य द्रव्य सामायिक हैं। दव्वसामाइए वा दव्वसामाइयाणि सामायिकानि वा तद् एकं द्रव्य- ___ संग्रहनय की अपेक्षा एक अनुपयुक्त व्यक्ति वा से एगे दव्वसामाइए। उज्जु- सामायिकम् । ऋजुसूत्रस्य एकः है अथवा अनेक अनुपयुक्त व्यक्ति हैं, आगमतः सुयस्स एगो अणुवउत्तो आगमओ अनुपयुक्तः आगमतः एक द्रव्यसामा- एक द्रव्य सामायिक है, अथवा अनेक द्रव्य एगे दव्वसामाइए, पुहत्तं नेच्छइ। यिक, पृथक्त्वं नेच्छति । त्रयाणां सामायिक हैं, वह एक द्रव्य सामायिक है। तिण्हं सद्दनयाणं जाणए अणवउत्ते शब्दनयानां ज्ञः अनुपयुक्तः अवस्तु । ऋजुसूत्रनय की अपेक्षा एक अनुपयुक्त अवत्थ । कम्हा? जइ जाणए कस्मात् ? यदिशः अनुपयुक्तः न व्यक्ति आगमतः एक द्रव्य सामायिक है। अणुवउत्ते न भवइ। से तं आग- भवति । तदेतद् आगमतो द्रव्यसामा भिन्नता उसे इष्ट नहीं है। मओ दव्वसामाइए। तीन शब्दनयों [शब्द, समभिरूढ़, एवंभूत] की अपेक्षा अनुपयुक्त ज्ञाता अवस्तु है, क्योंकि यदि कोई ज्ञाता है तो वह अनुपयुक्त नहीं होता। वह आगमतः द्रव्य सामायिक है। यिकम् । ७०२. से कि तं नोआगमओ देव- अथ कि तद् नोआगमतो द्रव्य- ७०२. वह नोआगमत: द्रव्य सामायिक क्या है ? सामाइए? नोआगमओ दव्व- सामायिकम् ? नोआगमतो द्रव्य- नोआगमतः द्रव्य सामायिक के तीन प्रकार सामाइए तिविहे पण्णत्ते, तं सामायिकं त्रिविधं प्राप्तं, तद्यथा- प्रज्ञप्त हैं, जैसे-ज्ञशरीर द्रव्य सामायिक, जहा-जाणगसरीरदब्वसामाइए शरीराव्यसामायिकं भव्यशरीर- भव्यशरीर द्रव्य सामायिक, शशरीर-भव्य Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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