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________________ तेरहवां प्रकरण : सूत्र ६८५-६६६ ३७१ ६६१. से कि तं भावझवणा? भाव- अथ कि सा भावक्षपणा ? भाव- ६९१. वह भाव क्षपणा क्या है ? झवणा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा- क्षपणा द्विविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा -- भाव क्षपणा के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसेआगमओ य नोआगमओ य॥ आगमतश्च नोआगमतश्च । आगमतः और नोआगमत.। ६६२. से कि तं आगमओ भाव- अथ कि सा आगमतो भाव- ६९२. वह आगमतः भाव क्षपणा क्या है ? झवणा? आगमओ भावज्भवणाक्षपणा ? आगमतो भावक्षपणा-शः आगमतः भाव क्षपणा - जो जानता है -जाणए उवउत्ते। से तं उपयुक्तः । सा एषा आगमतो भाव- और उसके अर्थ में उपयुक्त है। वह आगमतः आगमओ भावझवणा॥ क्षपणा। भाव क्षपणा है। ६६३. से कि तं नोआगमओ भाव- अथ कि सा नोआगमतो भाव- ६९३. वह नोआगमतः भाव क्षपणा क्या है ? ज्झवणा? नोआगमओ भाव. क्षपणा ? नोआगमतो भावक्षपणा नोआगमतः भाव क्षपणा के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे-प्रशस्त और अप्रशस्त । द्विविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा- प्रशस्ता ज्झवणा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा च अप्रशस्ता च । पसत्था य अपसत्था य ॥ ६६४. से कि तं पसत्था ? पसत्था अथ कि सा प्रशस्ता? प्रशस्ता ६९४. वह प्रशस्त भाव क्षपणा क्या है ? चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा चतुविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा- क्रोध- प्रशस्त भाव क्षपणा के चार प्रकार प्रज्ञप्त कोहझवणा माणझवणा माय- क्षपणा मानक्षपणा मायाक्षपणा हैं, जैसे---क्रोध को क्षीण करना, मान को ज्झवणा लोभज्झवणा। से तं लोभक्षपणा । सा एषा प्रशस्ता। क्षीण करना, माया को क्षीण करना और लोभ पसत्था ।। को क्षीण करना । वह प्रशस्त भाव क्षपणा है। ६६५. से कि तं अपसत्था? अपसत्था अथ कि सा अप्रशस्ता? ६९५. वह अप्रशस्त भाव क्षपणा क्या है ? तिविहा पण्णत्ता, तं जहा नाण- अप्रशस्ता त्रिविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा - अप्रशस्त भाव क्षपणा के तीन प्रकार प्रज्ञप्त ज्झवणा सणझवणा चरित्त- ज्ञानक्षपणा दर्शनक्षपणा चरित्र- हैं, जैसे-ज्ञान को क्षीण करना, दर्शन को झवणा। से तं अपसत्था। से तं क्षपणा । सा एषा अप्रशस्ता । सा क्षीण करना और चारित्र को क्षीण करना। नोआगमओ भावझवणा। से तं एषा नोआगमतो भावक्षपणा। सा वह अप्रशस्त भाव क्षपणा है। वह नोआगमतः भावझवणा। से तं झवणा । से एषा भावक्षपणा । सा एषा क्षपणा। भाव क्षपणा है। वह भाव क्षपणा है। वह तं ओहनिप्फण्णे ॥ स एष ओघनिष्पन्नः । क्षपणा है । वह ओघ निष्पन्न निक्षेप है। निक्खेवाणुओगदारे नामनिप्फण्ण-पदं निक्षेपानुयोगद्वारे नामनिष्पन्न- निक्षेप अनुयोगद्वार नामनिष्पन्न-पद पदम् ६६६. से कि तं नामनिष्फण्णे? नाम- अथ किस नामनिष्पन्नः ? नाम- ६९६. वह नाम निष्पन्न निक्षेप क्या है ? निप्फणे-सामाइए। निष्पन्न: - सामायिकम् । नाम निष्पन्न निक्षेप-सामायिक यह नाम निष्पन्न निक्षेप है। ६६७. से समासओ चउविहे पण्णत्ते, तत् समासतश्चतुर्विधं प्रज्ञप्त, ६९७. संक्षेप में उसके चार प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे तं जहा नामसामाइए ठवण- तद्यथा- नामसामायिकं स्थापना- -नाम सामायिक, स्थापना सामायिक, द्रव्य सामाइए दव्वसामाइए भावसामा- सामायिकं द्रव्यसामायिकं भावसामा- सामायिक और भाव सामायिक । यिकम् । ६६८. नाम-ट्ठवणाओ गयाओ। नाम-स्थापने गते । ६९८, नाम स्थापना पूर्ववत् ज्ञातव्य हैं । [देखें, सू. ६६६. से किं तं दव्वसामाइए ? दव सामाइए दुविहे पण्णत्ते, तं जहाआगमओ य नोआगमओ य॥ अथ कि तद् द्रव्यसामायिकम् ? द्रव्यसामायिकं द्विविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा--आगमतश्च नोआगमतश्च । ६९९. वह द्रव्य सामायिक क्या है ? द्रव्य सामायिक के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे -- आगमतः द्रव्य सामायिक और नोआगमतः द्रव्य सामायिक। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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