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________________ भणुओगदाराई ३४४ एत्थ संगहणिगाहा अत्र सङ्ग्रहणीगाथाकोहे माणे माया, क्रोधः मान: माया, लोभे रागे य मोहणिज्जे य । लोभः रागश्च मोहनीच्यच । पगडी भावे जीवे, प्रकृतिः भावः जीवः, जीवत्थिय सव्वदव्वा य ॥१॥ जीवास्तिकः सर्वद्रव्याणि च ॥ -से तं भावसमोयारे। से तं -स एष भावसमवतारः। स एष समोयारे । से तं उवक्कमे। समवतारः । स एष उपक्रमः। (उपक्रम इति प्रथमं द्वारं समति- (उपक्रम इति प्रथमं द्वारं समतिक्रान्तम् । )॥ क्रान्तम् ।) यहां संग्रहणी गाथा है क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, मोहनीय कर्म, कर्म प्रकृति, भाव, जीव, जीवास्तिकाय और सब द्रव्य - पूर्ववती उत्तरवर्ती में समवतरित हैं। वह भाव समवतार है । वह समवतार है । वह उपक्रम है। [उपक्रम प्रथम द्वार समाप्त ।] Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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