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अणुओगदाराई ४. चौथी परिभाषा इस प्रकार है-जघन्य असंख्यात-असंख्यात को जघन्य असंख्यात-असंख्यात बार वगित-संवगित करना चाहिए। उससे प्राप्त राशि को उतनी बार वगित-संवगित करना चाहिए उससे जो राशि प्राप्त हो उसको उतनी बार वगितसंवगित करना चाहिए। इस प्रकार प्राप्त राशि में पूर्वोक्त ६ राशियों को मिलाना चाहिये । इस राशि को पून: शलाका त्रयनिष्ठापनविधि से वगित-संवर्गित करना चाहिये । इस प्रकार प्राप्त राशि में पूर्वोक्त चार राशियों को मिलाना चाहिए। इससे प्राप्त राशि को पुनः शलाका त्रयनिष्ठापन विधि से वगित-संवगित करना चाहिए। इस प्रकार उत्पन्न राशि में से एक घटाने पर उत्कृष्ट असंख्यातअसंख्यात का मान प्राप्त होता है।'
सूत्र ५९६-६०३ १२. (सूत्र ५६६-६०३) अनन्त--
अनन्त
परीत
युक्त
अनन्त
जघन्य मध्यम उत्कृष्ट जघन्य मध्यम उत्कृष्ट जघन्य मध्यम उत्कृष्ट
१. जघन्य परीत अनन्त -जघन्य असंख्यात-असंख्यात राशि को जघन्य असंख्यात-असंख्यात राशि से अभ्यसित (गुणा) करने से प्राप्त परिपूर्ण संख्या जघन्य परीत-अनन्त का मान होता है।
जघन्य परीत-अनन्त-(जघन्य असंख्यात-असंख्यात) (जघन्य असंख्यात-असंख्यात) अथवा उत्कृष्ट असंख्यात-असंख्यात में एक मिलाने से जघन्य परीत-अनन्त का मान होता है। गणित की भाषा में
जघन्य परीत-अनन्त (उत्कृष्ट असंख्यात-असंख्यात+१)
२. मध्यम परीत-अनन्त --जघन्य परीत-अनन्त और उत्कृष्ट परीत-अनन्त के बीच की सारी संख्याएं मध्यम परीत- अनन्त का मान होता है।
मध्यम परीत-अनन्त=(जघन्य परीत-अनन्त+१) से (उत्कृष्ट परीत-अनन्त-१)
३. उत्कृष्ट परीत-अनन्त-जघन्य परीत-अनन्त राशि को जघन्य परीत-अनन्त से अभ्यसित (गुणा) करके उसमें से एक कम करने से उत्कृष्ट परीत-अनन्त का प्रमाण होता है।
उत्कृष्ट परीत-अनन्त-[(जघन्य परीत-अनन्त) (जघन्य परित-अनन्त)-१]
४. जघन्य युक्त-अनन्त जघन्य परीत-अनन्त राशि को जघन्य परीत-अनन्त से अभ्यसित (गुणा) करने से प्राप्त प्रतिपूर्ण संख्या जघन्य युक्त-अनन्त संख्या होती है।
जघन्य युक्त-अनन्त =(जघन्य परीत-अनन्त) (जघन्य परीत-अनन्त) अथवा उत्कृष्ट परीत-अनन्त मे एक मिलाने से जघन्य युक्त-अनन्त की राशि होती है।
जघन्य युक्त-अनन्त= उत्कृष्ट परीत-अनन्त+१ अभवसिद्धिक (अभव्य) जीव भी जघन्य युक्त-अनन्त जितने ही होते हैं।
५. मध्यम युक्त-अनन्त-जघन्य युक्त-अनन्त और उत्कृष्ट युक्त-अनन्त के बीच की सारी संख्याएं मध्यम युक्त-अनन्त की होती हैं।
मध्यम युक्त-अनन्त-(जघन्य यूक्त-अनन्त+१) से (उत्कष्ट यूक्त-अनन्त-१) १. (क) विप्र.पृ. २८१-२८६ ।
जघन्य परीत-अनन्त (ख) तिप. ४।३११ ।
= उत्कृष्ट असंख्यात-असंख्यात+१ (ग) त्रिसा. गा. ३८-४५ ।
(जघन्य असंख्यात-असंख्यात) २. इस परिभाषा में 'उत्कृष्ट असंख्यात-असंख्यात' का मान
=[(जघन्य असंख्यात-असंख्यात)
- १]+१ जो पूर्व परिभाषा (१) से प्राप्त है रखने पर इसकी
(जघन्य असंख्यात-असंख्यात)
=(जघन्य असंख्यात-असंख्यात) वैकल्पिक परिभाषा इस प्रकार बनेगी, जो ऊपर दी गई
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