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________________ ३३२ अणुओगदाराई ४. चौथी परिभाषा इस प्रकार है-जघन्य असंख्यात-असंख्यात को जघन्य असंख्यात-असंख्यात बार वगित-संवगित करना चाहिए। उससे प्राप्त राशि को उतनी बार वगित-संवगित करना चाहिए उससे जो राशि प्राप्त हो उसको उतनी बार वगितसंवगित करना चाहिए। इस प्रकार प्राप्त राशि में पूर्वोक्त ६ राशियों को मिलाना चाहिये । इस राशि को पून: शलाका त्रयनिष्ठापनविधि से वगित-संवर्गित करना चाहिये । इस प्रकार प्राप्त राशि में पूर्वोक्त चार राशियों को मिलाना चाहिए। इससे प्राप्त राशि को पुनः शलाका त्रयनिष्ठापन विधि से वगित-संवगित करना चाहिए। इस प्रकार उत्पन्न राशि में से एक घटाने पर उत्कृष्ट असंख्यातअसंख्यात का मान प्राप्त होता है।' सूत्र ५९६-६०३ १२. (सूत्र ५६६-६०३) अनन्त-- अनन्त परीत युक्त अनन्त जघन्य मध्यम उत्कृष्ट जघन्य मध्यम उत्कृष्ट जघन्य मध्यम उत्कृष्ट १. जघन्य परीत अनन्त -जघन्य असंख्यात-असंख्यात राशि को जघन्य असंख्यात-असंख्यात राशि से अभ्यसित (गुणा) करने से प्राप्त परिपूर्ण संख्या जघन्य परीत-अनन्त का मान होता है। जघन्य परीत-अनन्त-(जघन्य असंख्यात-असंख्यात) (जघन्य असंख्यात-असंख्यात) अथवा उत्कृष्ट असंख्यात-असंख्यात में एक मिलाने से जघन्य परीत-अनन्त का मान होता है। गणित की भाषा में जघन्य परीत-अनन्त (उत्कृष्ट असंख्यात-असंख्यात+१) २. मध्यम परीत-अनन्त --जघन्य परीत-अनन्त और उत्कृष्ट परीत-अनन्त के बीच की सारी संख्याएं मध्यम परीत- अनन्त का मान होता है। मध्यम परीत-अनन्त=(जघन्य परीत-अनन्त+१) से (उत्कृष्ट परीत-अनन्त-१) ३. उत्कृष्ट परीत-अनन्त-जघन्य परीत-अनन्त राशि को जघन्य परीत-अनन्त से अभ्यसित (गुणा) करके उसमें से एक कम करने से उत्कृष्ट परीत-अनन्त का प्रमाण होता है। उत्कृष्ट परीत-अनन्त-[(जघन्य परीत-अनन्त) (जघन्य परित-अनन्त)-१] ४. जघन्य युक्त-अनन्त जघन्य परीत-अनन्त राशि को जघन्य परीत-अनन्त से अभ्यसित (गुणा) करने से प्राप्त प्रतिपूर्ण संख्या जघन्य युक्त-अनन्त संख्या होती है। जघन्य युक्त-अनन्त =(जघन्य परीत-अनन्त) (जघन्य परीत-अनन्त) अथवा उत्कृष्ट परीत-अनन्त मे एक मिलाने से जघन्य युक्त-अनन्त की राशि होती है। जघन्य युक्त-अनन्त= उत्कृष्ट परीत-अनन्त+१ अभवसिद्धिक (अभव्य) जीव भी जघन्य युक्त-अनन्त जितने ही होते हैं। ५. मध्यम युक्त-अनन्त-जघन्य युक्त-अनन्त और उत्कृष्ट युक्त-अनन्त के बीच की सारी संख्याएं मध्यम युक्त-अनन्त की होती हैं। मध्यम युक्त-अनन्त-(जघन्य यूक्त-अनन्त+१) से (उत्कष्ट यूक्त-अनन्त-१) १. (क) विप्र.पृ. २८१-२८६ । जघन्य परीत-अनन्त (ख) तिप. ४।३११ । = उत्कृष्ट असंख्यात-असंख्यात+१ (ग) त्रिसा. गा. ३८-४५ । (जघन्य असंख्यात-असंख्यात) २. इस परिभाषा में 'उत्कृष्ट असंख्यात-असंख्यात' का मान =[(जघन्य असंख्यात-असंख्यात) - १]+१ जो पूर्व परिभाषा (१) से प्राप्त है रखने पर इसकी (जघन्य असंख्यात-असंख्यात) =(जघन्य असंख्यात-असंख्यात) वैकल्पिक परिभाषा इस प्रकार बनेगी, जो ऊपर दी गई Jain Education Intemational For Private & Personal use only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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