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________________ प्र० ६, सू० २११-२५९४०३, मान होता है।' ( जघन्य असंख्यात असंख्यात ) - १] उत्कृष्ट असंख्यात असंख्यात - [ ( जघन्य असंख्यात असंख्यात ) २. जघन्य असंख्यात असंख्यात का वर्ग करने से जो राशि प्राप्त हो, उसका पुनः वर्ग किया जाता है । लब्ध राशि का वर्ग करने से जो राशि प्राप्त हो उसमें निम्न असंख्यात मान वाली दस राशियां जोड़कर पुनः उक्त प्रकार से तीन बार वर्ग किया जाता है । लब्ध राशि में से एक घटाने पर उत्कृष्ट असंख्यात असंख्यात का मान प्राप्त होता है। जोड़ी जानेवाली राशियां ये हैं १. लोकाकाश के प्रदेश | २. धर्मास्तिकाय के प्रदेश । ३. अधर्मास्तिकाय के प्रदेश । ४. एक जीव के प्रदेश । ५. द्रव्यार्थिक निगोद । ६. अनन्तकाय को छोड़कर शेष प्रत्येकशरीरी जीव । ७. स्थिति बंध के कारणभूत अध्यवसाय स्थान | ८. अनुभाग बंध के कारणभूत अध्यवसाय स्थान । ९. मनोयोग, वचनयोग और काययोग के अविभाज्य विभाग । १०. उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल के समय । ३. तीसरी परिभाषा इस प्रकार हैं - जघन्य असंख्यात असंख्यात को तीन बार वर्गित संवर्गित करने से जो राशि प्राप्त हो उनमें इन छह राशियों को मिलाना चाहिए। १. धर्मं द्रव्य के प्रदेश । २. अधर्म द्रव्य के प्रदेश । ३. लोकाकाश के प्रदेश । ४. एक जीव के प्रदेश । ५. अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति जीव । ६. प्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति जीव । इन छह राशियों को मिलाने के बाद उसको पुनः तीन बार वर्गित संवर्गित करना चाहिए। इस प्रकार प्राप्त हुई राशि में इन चार राशियों को मिलाना चाहिए। १. उत्सर्पिणी अवसर्पिणी के समय । २. स्थिति बंध के अध्यवसाय स्थान | ३. अनुभाग बंध के अध्यवसाय स्थान | ४. मन, वचन व काययोग के उत्कृष्ट अविभागी प्रतिच्छेद । इससे जो राशि प्राप्त हो उसको पुनः तीन बार वर्गित संवर्गित करना चाहिए। इस प्रकार प्राप्त हुई राशि में से एक घटाने पर उत्कृष्ट असंख्यात असंख्यात का मान होता है। गणित की प्रक्रिया के लिए द्रष्टव्य - विश्व प्रहेलिका, पृष्ठ २८४, २८५ ॥ १. (क) अमवृ. प. २२१ (ख) लोप्र. १।१७५ : जघन्या संख्यासंख्यातं भवेदभ्यासताडितम् । एकरूपो नितं ज्येष्ठासंख्या संख्यातकं स्फुटम् ॥ २. किसी संख्या के तीन बार वर्ग करने की विधि - सर्वप्रथम उस संख्या का वर्ग करना। फिर वर्गजन्य संख्या का वर्ग करना, फिर वर्गजन्य संख्या का वर्ग करना । उदाहरणार्थ ---४ संख्या है । ४x४ = १६ वर्गजन्यसंख्या, फिर १६x १६ = २४६ वर्गजन्य संख्या, फिर २५६४२५६= ६५५३६ । ३. षखं. ३ । प्रस्तावना पृ. ३३ । Jain Education International ४. किसी भी राशि को एक बार वर्गित संवर्गित करने का अर्थ है- उस राशि को एक बार स्वधातित करना। दो बार वर्गित संवगत करने का अर्थ है—एक बार वर्गितसंवर्गित करने से प्राप्तराशि को स्वधातित करना। तीन बार वर्गित संगित करने का अर्थ है दो बार वर्गितसंर्वागत करने से प्राप्त राशि को स्वघातित करना । उदाहरणार्थ- कोई राशि २ है । २=२x२=४ एक बार वर्गित राशि हुई । ४*= (४४)=४×४×४×४= २५६= दो बार वगत संवर्गित राशि हुई । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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