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________________ अणुओगदाराई २. मध्यम परीत-असंख्यात-जघन्य परीत और उत्कृष्ट परीत के बीच की सारी संख्याएं मध्यम परीत-असंख्यात की संख्याएं हैं। (जघन्य परीत-असंख्यात+१) 5 (मध्यम परीत-असंख्यात) [(उत्कृष्ट परीत-असंख्यात)-१] ३. उत्कृष्ट परीत-असंख्यात -जघन्य युक्त-असंख्यात से एक कम उत्कृष्ट परीत-असंख्यात होती है। उत्कृष्ट परीत-असंख्यात-[(जघन्य युक्त-असंख्यात)-१] ४. जघन्य युक्त-असंख्यात -जघन्य परीत-असंख्यात को जघन्य परीत-असंख्यात से अभ्यसित (गुणा) करने से जघन्य युक्तअसंख्यात की संख्या आती है। अभ्यसित (गुणा) का अर्थ है-जिस संख्या को अभ्यास-गुणित करना हो, उस संख्या को उतनी ही बार स्थापित करके परस्पर गुणन करने पर उसकी 'अभ्यास-गुणित' संख्या प्राप्त होती है।' गणित की भाषा में उस संख्या की घात करना। जघन्य युक्त-असंख्यात (जघन्य परीत-असंख्यात) (जघन्य परीत-असंख्यात) तात्पर्य यह हुआ कि जघन्य परीत-असंख्यात को जघन्य परीत-असंख्यात से जघन्य परीत-असंख्यात में से एक कम करने पर जो संख्या आवे, उतनी बार गुणन करना । उदाहरण के लिए मानले जघन्य परीत असंख्यात ५ है-५४५४५४५४५-३१२५ जघन्य युक्त-असंख्यात होगा। (जघन्य परीत-असंख्यात) जघन्य युक्त-असंख्यात= (जघन्य परीत-असंख्यात)" जघन्य युक्त-असंख्यात ही एक आवलिका के समयों का परिमाण है। ५. मध्यम युक्त-असंख्यात-जघन्य युक्त-असंख्यात और उत्कृष्ट युक्त असंख्यात के बीच की सारी संख्याएं मध्यम युक्तअसंख्यात की संख्याएं होती हैं। [(जघन्य युक्त असंख्यात)+१]८ मध्यम युक्त-असंख्यात [(उत्कृष्ट युक्त-असंख्यात)-१] ६. उत्कृष्ट युक्त-असंख्यात-जघन्य असंख्यात-असंख्यात से एक कम संख्या उत्कृष्ट युक्त-असंख्यात होती है। उत्कृष्ट युक्त असंख्यात-[(जघन्य असंख्यात असंख्यात) १] ७. जघन्य असंख्यात-असंख्यात -जवन्य युक्त-असंख्यात को जघन्य युक्त-असंख्यात से अभ्यसित (गुणा) करने पर जघन्य असंख्यात-असंख्यात की संख्या आती है । अथवा उत्कृष्ट युक्त-असंख्यात में एक जोड़ने पर जघन्य असंख्यात-असंख्यात की संख्या होती है। (जघन्य युक्त-असंख्यात) जघन्य असंख्यात-असंख्यात-(जघन्य युक्त-असंख्यात) लोकप्रकाश में इसकी दूसरी परिभाषा मिलती है'-- जघन्य युक्त-असंख्यात का वर्ग करने से जघन्य असंख्यात-असंख्यात का मान प्राप्त होता है । अर्थात् ---- (जघन्य असंख्यात-असंख्यात)=(जघन्य युक्त-असंख्यात) ८ मध्यम असंख्यात-असंख्यात - जघन्य असंख्यात-असंख्यात और उत्कृष्ट असंख्यात-असंख्यात के बीच की सारी संख्याएं मध्यम असंख्यात-असंख्यात की संख्याएं होती है। [(जघन्य असंख्यात-असंख्यात)+१]८मध्यम असंख्यात-असंख्यातर[(उत्कृष्ट असंख्यात-असंख्यात)-१] ९. उत्कृष्ट असंख्यात-असंख्यात-इसकी परिभाषा चार प्रकार से मिलती है १. जघन्य असंख्यात-असंख्यात को अभ्यसित (गुणा) करके एक कम करने पर उत्कृष्ट असंख्यात-असंख्यात की संख्या का १. लोप्र. ११६५ : ३. (क) लोप्र. ११८६-१८७ । यावत् प्रमाणो यो राशिर्भवेत् स्वरूपसंख्यया । जघन्ययुक्तासंख्यातं वगितं रूपजितम् । सन्न्यस्य तावतो वारान् गुणितोऽभ्यास उच्यते । उत्कृष्टयुक्तसंख्यातं प्राप्तरूपैः प्ररूपितम् ॥ उद्धृत -विश्वप्रहेलिका, पृ. २७९ । एकरूपेण युक्तं तदसंख्यासंख्यक लघु । २. कनं. ४. गा. ७८ : (यह अभिप्राय मूलतः कर्मग्रन्थ का है) रूवजयं तु परित्ता-संखं लहु अस्स रासि अब्भासे । (ख) कग्रं. ४. गा. ८० जुत्तासंखिज्जं लहु आवलिया समयपरिमाणं ॥ इय सुत्तत्तं अन्ने वग्गियमिक्कसि चउत्थयमसंखं । होइ असंखासंखं लह, रूपं जुयं तु तं ममं ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ducation Intemational For Private & Personal Use Only
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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