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अणुओगदाराई
सूत्र ५७५-५८६
१०. (सूत्र ५७५-५८६)
संख्यात
संख्यात
जघन्य
अजघन्य अनुत्कृष्ट (मध्यम) उत्कृष्ट जघन्य-संख्यात- दो की संख्या जघन्य संख्यात है। अजघन्य अनुत्कृष्ट (मध्यम) संख्यात-तीन से लेकर उत्कृष्ट संख्यात से एक कम । उत्कृष्ट संख्यात-असत् कल्पना से उत्कृष्ट संख्यात का स्वरूप इस प्रकार हैचार पल्यों (कुण्डों) की कल्पना की गई है--(१) अनवस्थित (२) शलाका (३) प्रति शलाका (४) महाशलाका ।
२ अनवशलाका प्रति
महास्थित
| शलाका
| शलाका प्रारंभ में अनवस्थित पल्य जंबूद्वीप प्रमाण १ लाख योजन लंबा और चौड़ा है। गहराई में रत्नप्रभा पृथ्वी के रत्नकांड से भी नीचे स्थित वज्रकाण्ड पर्यन्त एक हजार योजन और ऊंचाई में पद्मवरवेदिका जितना साढे आठ योजन है। अर्थात् तल से शिखा तक ऊंचाई/गहराई १००८ योजन है।
शलाका पल्य, प्रतिशलाका पल्य और महाशलाका पल्य-ये तीनों लंबाई और चौडाई में १ लाख योजन तथा गहराई और ऊंचाई में १००८३ योजन है।
अनवस्थित कुंड को सर्षप के दानों से भरा गया (शिखा सहित), इतना भरा कि उसमें एक दाना भी और न समा सके । फिर देवों के द्वारा एक-एक दाना क्रमशः द्वीप और समुद्र में डाला गया। पहला दाना जंबूद्वीप में, दूसरा दाना लवण समुद्र में, तीसरा धातकीखण्ड में-इस क्रम से द्वीप और समुद्र में डालकर अनवस्थित पल्य को खाली किया। एक बार भरकर खाली करने पर १ दाना शलाका पल्य में डाला गया। अंतिम दाना जिस समुद्र या द्वीप में डाला गया, उसकी लंबाई और चौडाई जितना दूसरी बार अनवस्थित पल्य बनाया गया। उसे भरा गया, फिर खाली किया गया। पहली बार जिस समुद्र या द्वीप में गिराया गया था उससे आगे के द्वीप-समुद्र में क्रमशः एक-एक दाना डालकर खालो किया गया। भरने और खाली करने की प्रक्रिया चलती रहती है। दाना डालने की प्रक्रिया भी क्रमशः आगे-आगे के द्वीप-समुद्रों में होती है। खाली करने पर अंतिम दाना जिस जिस समुद्र या द्वीप में गिराया जाता है । उसी प्रमाण का अगली बार अनवस्थित पल्य बनाया जाता है।
स्थापना
अनवस्थित पल्य एक बार खाली करने पर १ दाना शलाका पल्य में डालने की प्रक्रिया से शलाका पल्य को भरा जाता है। उस (शलाका पल्य) को शिखा सहित पूर्ण भर कर आगे के द्वीप-समुद्रों में दाना डालकर खाली किया जाता है। परिणाम स्वरूप १ दाना तीसरे प्रतिशलाका पल्य में डाला जाता है। नया अनवस्थित पल्य अन्तिम द्वीप-समुद्र के लम्बाई चौड़ाई के परिमाण वाला बनाकर भरा जाता है । जब शलाका पल्य खाली किया जाता है तब अनवस्थित पल्य भरा रहता है। शलाका पल्य खाली करने के बाद अनवस्थित पल्य को खाली किया जाता है। फिर पूर्व क्रम से पुनः शलाका पल्य को भरा जाता।
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