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________________ प्र० ११ सू० ५५७-५६८, टि० ४-६ ३२५ सूत्रकार ने तीन दृष्टान्तों को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया है। इस प्रकार के अनेक दृष्टांत प्रस्तुत किए जा सकते हैं। विभिन्न दार्शनिकों के अभ्युपगमों को समझने के लिए यह विधा बहुत उपयोगी है। यदि नय पद्धति से दार्शनिक अध्ययन की परम्परा रहे तो खण्डन मण्डन की विधि अपने आप समाप्त हो सकती है । शब्द विमर्श- कृत्स्न- देश, प्रदेश की कल्पना से रहित । प्रतिपूर्ण - आत्मस्वरूप की दृष्टि से अविकल । निरवशेष - अवयव रहित । एकग्रहणगृहीत - एक शब्द के द्वारा वाच्य । ५. (सूत्र ५५८ ) जिससे वस्तु का परिच्छेद और निर्णय होता है उसे संख्या कहा जाता है। इसका प्रयोग व्यापक अर्थ में हुआ है। गणना संख्या का एक प्रकार है। वैशेषिक जाती है उसका नाम है संख्या । प्राकृत 'संखा' शब्द से संस्कृत में संख्या और बहुवचनान्त शंख दोनों शब्दों का बोध होता है। संखा प्रमाण की चर्चा में यथासंभव दोनों अर्थ घटित हो सकते हैं। कहां 'संख्या' शब्द की संगति है और कहां 'शंख' शब्द की यह प्रकरण के अनुसार ज्ञातव्य है । 2 सूत्र ५५८ ६. ( सूत्र ५६८ ) औपम्य संख्या - उपमा के माध्यम से वस्तु-बोध होता है इसलिए उसका नाम औपम्य संख्या है । द्रष्टव्य सूत्र ५६९ । परिमाण संख्या -- इससे आगम का ग्रन्थाग्र ( ग्रंथ परिमाण) जाना जाता है । द्रष्टव्य सूत्र ५७०-५७२ । ज्ञान संख्या इससे विषय-वस्तु के ज्ञान के आधार पर जानने वाले का बोध होता है । द्रष्टव्य सूत्र ५७३ । गणना संख्या - गिनती करना। द्रष्टव्य सूत्र ५७४-६०३ । भाव शंख - तिर्यञ्च गति, द्वीन्द्रिय जाति, औदारिक शरीर आदि शंख गति नाम गोत्र का विपाकतः वेदन करने वाले जीव भाव शंख हैं । द्रष्टव्य सूत्र ६०४ । सूत्र ५६८ तद्व्यतिरिक्त द्रव्यशंख के तीन प्रकार माने गए हैं। वे इस प्रकार हैं १. एकमविक जो जीव वर्तमान जीवन पूरा कर अगले भव में शंख रूप में उत्पन्न होगा, वह शंखत्व का आयुष्य न बंधने पर भी एकभविक शंख कहलाता है। शंख भव की प्राप्ति के बीच में एक वर्तमान भव है इस अपेक्षा से उसे एकभविक कहा गया है। Jain Education International संख्या शब्द गणना का पर्यायवाची नहीं है । दर्शन के अनुसार जिसके आधार पर गणना की पातञ्जल योग भाष्य में भी एकभविक का उल्लेख मिलता है । भाष्यकार के अनुसार कर्माशय एकभविक है । वह प्रधानतः एक जन्म में संचित होता है। वर्तमान जन्म का कर्माशय है, वह प्रधानतः पूर्ववर्ती जन्म में संचित होता है । वह कर्माशय एक भव में संचित होता है इसलिए इसे एकभविक कहा जाता है ।' जो जीव पृथ्वी आदि के भव में अन्तर्मुहूर्त्त जीकर अनन्तर भव में शंख बनता है, वह अन्तर्मुहूर्त की स्थिति वाला एकभविक शंख होता है जो जीव मत्स्य आदि किसी भव में पूर्वकोटि जीकर फिर शंख के रूप में उत्पन्न होता है वह पूर्वकोटि की आयुवाला एकभविक शंख है । १. नसुअ. ५७४ । २. भादप. २, पृ. ६६ : गणव्यवहारे तु हेतुः संख्याभिधीयते । ३. पायो. ३०१३ का भाष्य तस्माज्जन्म प्रायणान्तरे कृतः पुण्यापुण्यकर्माशयप्रयो विचित्र: प्रधानोपसर्जन मावेनावस्थित प्रायेणाभिव्यक्त एक प्रघट्टकेन मिलित्वा मरणं प्रसाध्य संमूच्छित एकमेव जन्म करोति । तच्च जन्म तेनैव कर्मणा लग्या भवति तस्मिन्नाधितेय कर्मणा भोग: सम्पद्यत इति । असी कर्माशयो कमयुगात् त्रिविपाकोऽभिधीयत इति । अत एकभविकः कर्माशयः उक्त इति । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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