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प्र० ११, सू० ५५४-५५७, टि०४
३२३ शब्दनयत्रयी के अभिप्राय की बौद्धों के विज्ञानाद्वैत और वेदान्त के ब्रह्माद्वैतवाद और प्रत्ययवाद की अवधारणा से तुलना की जा सकती है। वसति दृष्टान्तनैगमनय
वसति के प्रसंग में नैगमनय के आठ विकल्प प्रस्तुत किए गए हैं । १. मैं लोक में रहता हूं। यह वक्तव्यता सत्य है क्योंकि उत्तरदाता का निवास स्थान लोक में ही है किन्तु यह दृष्टिकोण ___ वास्तविक वसति से बहुत दूर है इसलिए यह अविशुद्ध दृष्टिकोण है । २. मैं तिर्यग्लोक में रहता हूं। यह वास्तविक वसति से कुछ निकट है इसलिए यह विशुद्ध दृष्टिकोण है। ३. मैं जम्बूद्वीप में रहता हूं। यह वास्तविक वसति से और अधिक निकटतर है इसलिए यह विशुद्धतर दृष्टिकोण है।
इसी प्रकार भारतवर्ष, दक्षिणार्ध-भरत, पाटलिपुत्र, देवदत्तगृह और गर्भगृह में क्रमशः वास्तविक वसति की निकटता बढ़ती जाती है और उत्तरोत्तर विशुद्धतरता भी बढ़ती जाती है । व्यवहारनय
व्यवहारनय की वक्तव्यता भी नैगमनय के समान है। संग्रहनय
संग्रहनय निर्विकल्प होता है इसलिए उसके दृष्टिकोण से उत्तरदाता कहता है मैं बिछौने पर रहता हूं। ऋजुसूत्रनय
___मैं जिन आकाश प्रदेशों में अवगाढ हूं वहां रहता हूं यह ऋजुसूत्रनय का दृष्टिकोण है । शब्दनयत्रयी
मैं आत्म-स्वरूप में रहता हूं। वास्तव में प्रत्येक द्रव्य अपने स्वरूप में ही रहता है। इसलिए शब्दनयत्रयी का दृष्टिकोण वास्तविक वसति का दृष्टिकोण है।' प्रदेश दृष्टान्त
प्रकृष्ट देश का नाम प्रदेश है । निरंश देश, निविभागी भाग, अविभागी परिच्छेद ये प्रदेश के पर्यायवाची शब्द हैं।
धर्म, अधर्म, आकाश और एक जीव ये अखण्ड द्रव्य हैं । देश उसका कल्पित भाग है तथा प्रदेश उसका परमाणु जितना भाग है। नंगमनय
नैगमनय सामान्य और विशेष दोनों को मान्य करता है। इसलिए धर्म आदि छहों के प्रदेश को स्वीकृत करता है। संग्रहनय
संग्रहनय के अनुसार देश कोई स्वतन्त्र द्रव्य नहीं है इसलिए वह 'देश का प्रदेश' इस विकल्प को स्वीकार नहीं करता। धर्मास्तिकाय आदि द्रव्यों से सम्बन्धित देश का जो प्रदेश है वह उन द्रव्यों का ही प्रदेश है क्योंकि वह देश उससे भिन्न नहीं है। इसलिए छहों का प्रदेश नहीं होता। पांचों का होता है । 'पांचों का प्रदेश' यह संग्रहनय की स्वीकृति है। व्यवहारनय
__व्यवहारनय कहता है-एक ही प्रदेश पांचों द्रव्यों से सम्बन्धित हो तब यह कथन उचित हो सकता है। जैसे पांच भाइयों का सोना, घर, बगीचा आदि । यहां पांचों द्रव्यों के प्रदेश भिन्न-भिन्न हैं इसलिए द्रव्य और लक्षण की संख्या के आधार पर यह कहा जा सकता है कि प्रदेश पांच प्रकार का होता है। ऋजुसूत्रनय
व्यवहारनय के अभिमत से अपनी असहमति व्यक्त करता हुआ ऋजुसूत्रनय कहता है--पांच प्रकार का प्रदेश मानने से १. (क) अहावृ. पृ. १०६ ।
(ख) अमव. प. २०८।
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