SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 353
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१६ प्राचीन न्याय | निर्विकल्प नव्य न्याय लौकिक I इन्द्रिय प्रत्यक्ष प्रत्यक्ष 1 पूर्ववत् श्रोत्रेन्द्रिय प्र चक्षुरिन्द्रियप्र. घ्राणेन्द्रिय प्र. रसनेन्द्रिय प्र. स्पर्शनेन्द्रिय प्र. प्रत्यक्ष 1 Jain Education International सामान्य लक्षण सविकल्प कार्येण I अलौकिक I ज्ञान लक्षण नोइन्द्रिय प्रत्यक्ष कारणेन गुणेन I साधर्म्यापनीत 1 किञ्चित् साधयपनीत प्रायः साधर्म्यापनीत न्यायदर्शनीय प्रमाण व्यवस्था शेषवत् अवधिज्ञान मनः पर्यवज्ञान केवलज्ञान 1 अनुमान प्रमाण 1 पूर्ववत् I अवयवेन अनुमान योगज अनुयोगद्वारगत प्रमाण व्यवस्था शेषवत् प्रमाण दृष्टार्थं शब्द आश्रयेण | शब्द 1 For Private & Personal Use Only 1 औपम्य 1 लौकिक अणुओगवाराई उपमान सामान्यदृष्ट सामान्यतोदृष्ट T अदृष्टार्थशब्द आगम 1 | दृष्टसाधर्म्यवत् 1 लोकोत्तर | विशेषदृष्ट | वैधर्म्यापनीत I 1 | सर्व साधर्म्यपनीत किञ्चित् वैधर्म्यापनीत प्रायः वैधर्म्यापनीत सर्व वैधम्र्योपनीत www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy