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६००. तेण परं अजहण्णमणुक्कोसयाई ठाणाई जाव उक्कोसयं जुत्ताणंतयं
न पावइ ||
६०१. उक्कोसयं जुत्ताणंतयं केत्तियं होइ ? जहण्णएणं जुत्ताणंतपणं अभवसिद्धिया गुणिया अण्णमण्णभासो रुवणो उक्कोस जुत्ताणंतयं होइ ।
अहवा जहणयं अनंताणंतयं स्वर्ण उनकोसयं जुत्ताणंतयं होइ ॥
६०२. जहुरणयं अनंतानंतयं केलियं होइ ? जहणयं जुत्ताणंतएणं अमवसिद्धिया गुणिया अण्णमण्णभासो पsिपुण्णो जहण्णयं अणंताणंतयं होइ ।
अहवा उक्कोसए जुत्ताणंतए रूवं पखितं जहणणयं अनंताणंत होइ ॥
६०३. ते परं अजहरणमगुक्कोसयाई ठाणाई से तं गणणाखा ॥
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६०४. से कि तं भावसंखा ? भावसंखा
-जे इमे जोवा संखगइनामगोत्ताइं कम्माई वेदेति । से तं भावसंखा । से सं संयम से तं भावप्य माणे से तं पमाणे ॥
( पमाणे ति पर्व समतं ) ॥
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ततः परम् अजघन्योत्कर्षकाणि स्थानानि यावद् उत्कर्षकं युक्तानन्तकं न प्राप्नोति ।
उत्कर्ष युस्कानन्तर्क कियद भवति ? जघन्यकेन युक्तानन्तकेन अवसिद्धिका गुणिताः अन्योन्याभ्यासः रूपोन: उत्कर्षकं युक्तानन्तकं भवति ।
अथवा जघन्यकम् अनन्तानन्तकं रूपोनम् उत्कर्ष कं युक्तानन्तकं भवति ।
जयपथम् अनन्तानन्तर्क भवति ? जयम्यकेन युक्तान्तकेन अभवसिद्धिकाः गुणिताः अन्योन्याभ्यासः प्रतिपूर्ण : जघन्यकम् अनन्तानन्तकं भवति ।
अथवा उत्कर्ष युक्तान् रूपे प्रक्षिप्ते जधन्यकम् अनन्तानन्तकं भवति ।
ततः परम् अजघन्योत्कर्षकाणि स्थानानि । सा एषा गणनासंख्या ।
अथ किं ते भावशंखा: ? भावशंखाः ये इमे जीवाः शंखगतिनामगोत्राणि कर्माणि वेदयन्ति । ते एते भावाः। तदेतत संख्यामाम् । तदेतद् भावप्रमाणम् । तदेतत् प्रमाणम् ।
(प्रमाणमिति परं समाप्तम्) ।
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अणुओगदाराई
६००. जघन्य युक्त अनन्त से आगे उत्कृष्ट युक्त-अनन्त से पूर्व बीच के सभी स्थान अजघन्यअनुत्कृष्ट युक्त होते हैं।
६०१. उत्कृष्ट युक्त-अनन्त कितना होता है ?
जघन्य युक्त-अनन्त को अभवसिद्धिक जीवों की संख्या से गुणित करने पर अथवा जघन्य युक्त - अनन्त और जघन्य युक्त-अनन्त प्रमाण राशियों को परस्पर गुणित करने पर जो संख्या आती है, उससे एक कम उत्कृष्ट युक्त-अनन्त होता है ।
अथवा एक कम जघन्य अनन्त - अनन्त उत्कृष्ट युक्त-अनन्त होता है ।
६०२. जघन्य अनन्त-अनन्त कितना होता है ?
जघन्य युक्त-अनन्त से अभवसिद्धिक जीवों को गुणित करने पर अथवा जघन्य युक्त-अनन्त और जघन्य युक्त-अनन्त प्रमाण राशियों को परस्पर गुणित करने पर जो राशि आती है वह प्रतिपूर्ण राशि जघन्य अनन्त - अनन्त होती है।
अथवा उत्कृष्ट युक्त-अनन्त में एक का प्रक्षेप करने पर जघन्य अनन्त अनन्त होता है।
६०३. जघन्य अनन्त अनन्त से आगे सभी स्थान अजघन्य - अनुत्कृष्ट अनन्त अनन्त होते हैं । वह गणना संख्या है।"
६०४. वह भाव शंख क्या हैं ?
जो जीव शंख गति नाम गोत्र कर्म का वेदन करते हैं। वह भाव शंख हैं। वह संख्या प्रमाण है । वह भाव प्रमाण है । वह प्रमाण है ।
( प्रमाण-पद समाप्त) ।
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