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________________ ग्यारहवां प्रकरण सूत्र ५६०-६०० ठाणाई जाव उक्कोस असंखेज्जासंजय न पावइ ॥ ५६५. उक्कोसयं असंखेज्जासंखेज्जयं केत्तियं होइ ? जहणणयं असंतेजा संखेज्जयं जहणय असंवेज्जासंस्थेव संखेज्जयमेत्ताणं रासीणं अण्ण मण्णभासो रूवणो उक्कोसयं असंखेज्जासंखेज्जयं होइ । जहवा जहणयं परितानंतयं रूवणं उक्कोस असंखेज्जासंखे जयं होइ ॥ ५६. जण परित्ताणंतयं केलियं होइ ? जहष्णवं असंखेज्जासंखे ज्जयं जहण्णय असंवेज्जासंसेजयमेतानं रामीण अण्णमण्णाभासो पडिपुण्णो जहण्णयं परित्ताणंतयं होइ । अहवा उक्कोसए असंखेज्जासंबेज्जए जए एवं पक्तिं जहणयं परि ताणंतयं होइ ॥ ५६७ तेण परं अजहणमणुक्कोसयाई ठाणाई जाव उनकोसवं परित्ताणं तयं न पावइ ॥ ५६८. उक्कोसयं परित्ताणंतयं केत्तियं होइ ? जहणयपरित्ताणंतयमेताणं रासीर्ण अण्णमण्णश्मासो हवणो उक्कोसयं परित्ताणंत होइ । अहवा जहण्णयं जुत्तातयं स्वणं उनकोसयं परितार्णतयं होई ॥ तातयं केत्तियं होइ ? जहणणयं परितातयं जहष्णवपरितार्णतयमेत्ताणं रासीणं अण्णमण्णमासो परिपुष्णो जह पण तातयं होइ। अहवा उक्कोसए परित्ताणंतए रूवं पक्खित्तं जहण्णयं जुत्ताणंतयं होइ । अभवसिद्धिया वि तलिया चैव ॥ ५८. जहणयं स्थानानि यावद् उत्कर्षकम् असंख्येयासंख्येयकं न प्राप्नोति । Jain Education International उत्कर्षकम् असंख्येये कियद् भवति ? अन्यकम् असंख्येयाजघन्यकासंख्येया संख्येयकमात्राणां राशीनाम् अन्योन्याभ्यासः रूपोन: उत्कर्षकम् असंख्येयासंख्येयकं भवति । अथवा जघन्यकं परीतानन्तकं रूयोनम् उत्कर्षकम् असंध्येयासंख्येयकं भवति । जघन्यकं परीतानन्तर्क कियद् भवति ? जघन्यकम् असंख्येयासंख्येयकं जयकासंख्येयासंख्येयकमात्राणां राशीनाम अन्योन्याभ्यासः प्रतिपूर्णः जघन्यकं परीतानन्तक भवति । अथवा उत्कर्ष के असंख्येयासंख्येयके रूपे प्रक्षिप्ते जयपरीतानन्तकं भवति । ततः परम् अजघन्योत्कर्षकाणि स्वानानि यावद् उत्कर्षकं परीतानन्तकं न प्राप्नोति । उत्कर्षकं परीतानन्तर्क कियद् भवति ? जघन्यकं परीतानन्तकं जयन्यरूपरीतानन्तरमात्राणां राशीनाम् अन्योन्याभ्यासः रूपोनः उत्कर्ष कं परीतानन्तकं भवति । अथवा जघन्यकं युतानन्तकं रूपोनम् उत्कर्षक परीतानन्तकं भवति । जघन्यकं तकिय भवति ? जघन्यकं परीतानन्तकं जयम्यकपरीतानन्तकमात्राणां राशीनाम् अन्योन्याभ्यासः प्रतिपूर्ण : जघन्यकं युक्तानन्तकं भवति । अथवा उत्कर्ष के परीतानन्तके रूपे प्रक्षिप्ते जघन्यकं युक्तानन्तकं भवति । अथवसिद्धिकाः अपि तावन्तः चैव । For Private & Personal Use Only ३१३ असंख्येय असंख्येय से पूर्व बीच के सभी स्थान अजघन्य -- अनुत्कृष्ट असंख्येय असंख्येय होते हैं । ५९५. उत्कृष्ट असंख्येय- असंख्येय कितना होता है ? जघन्य असंख्येय असंख्येय और जघन्य असंख्येय असंख्येय प्रमाण राशियों को परस्पर गुणित करने पर जो राशि आती है, उससे एक कम उत्कृष्ट असंख्येय असंख्येय होता है । अथवा एक कम जघन्य परीत-अनन्त उत्कृष्ट असंख्येय असंख्येय होता है।" ५९६. जघन्य परीत-अनन्त कितना होता है ? जघन्य असंख्येय असंख्येय और जघन्य असंख्येय असंख्येय प्रमाण मात्र राशियों को परस्पर गुणित करने पर जो राशि आती है, यह प्रतिपूर्ण राशि जपन्यपरीत अनन्त होती है । अथवा उत्कृष्ट असंख्येय असंख्येय में एक का प्रक्षेप करने पर जघन्य परीत- अनन्त होता है। ५९७. जघन्य परीत-अनन्त से आगे उत्कृष्ट परीतअनन्त से पूर्व बीच के सभी स्थान अजघन्यअनुत्कृष्ट परीत- अनन्त होते हैं । ५९८. उत्कृष्ट परीत- अनन्त कितना होता है ? जघन्य परीत- अनन्त और जघन्य परीतअनन्त प्रमाण राशियों को परस्पर गुणित करने पर जो संख्या आती है, उससे एक कम उत्कृष्ट परीत- अनन्त होता है । अथवा एक कम जघन्य युक्त-अनन्त उत्कृष्ट परीत अनन्त होता है । ५९९. जघन्य युक्त अनन्त कितना होता है ? जघन्य परीत - अनन्त और जघन्य परीतअनन्त प्रमाण राशियों को परस्पर गुणित करने पर जो राशि आती है वह प्रतिपूर्ण राि जघन्य युक्त-अनन्त होती है । अथवा उत्कृष्ट परीत- अनन्त में एक का प्रक्षेप करने पर जघन्य युक्त-अनन्त होता है । अभयसिद्धिक जीव भी उतने ही होते हैं। www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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