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________________ अणुओगदाराई संखेज्जयं जहण्णयपरित्तासंखे- जघन्यकपरीतासंख्येयकमात्राणां राशी- असंख्येय प्रमाण राशियों को परम्पर गुणित ज्जयमेत्ताणं रासीणं अण्णमण्ण- नाम् अन्योन्याभ्यास: रूपोन: उत्कर्षक करने पर जो राशि आती है, उससे एक कम भासो रूवणो उक्कोसयं परित्ता- परीतासंख्येयकं भवति । उत्कृष्ट परीत-असंख्येय होता है। संखेज्जयं होइ। अहवा जहएणयं जुत्तासंखेज्जयं अथवा जघन्यकं युक्तासंख्येयक अथवा एक कम जघन्य युक्त-असंख्येय रूवणं उक्कोसयं परित्तासंखेज्जयं ____ रूपोनम् उत्कर्षकं परीतासंख्येयकं उत्कृष्ट परीत- असंख्येय होता है। होइ॥ भवति । ५६०. जहण्णयं जुत्तासंखेज्जयं केत्तियं जघन्यकं युक्तासंख्येयकं कियद् ५९०. जघन्य युक्त-असंख्येय कितना होता है? होइ? जहण्णयं परित्तासंखेज्जयं भवति ? जघन्यकं परीतासंख्येयक जघन्य परीत-असंख्येय और जघन्य परीतजहण्णपरित्ता संखेज्जयमेत्ताणं जघन्यकपरीतासंख्येयकमात्राणां राशी- असंख्येय प्रमाण राशियों को परस्पर गुणित रासीणं अण्णमणभासो पडिपुण्णो नाम् अन्योन्याभ्यास: प्रतिपूर्ण करने पर जो राशि आती है, वह प्रतिपूर्ण जहण्णयं जुत्तासंखेज्जयं होइ। जघन्यकं युक्तासंख्येयकं भवति । राशि जघन्य युक्त-असंख्येय होता है। अहवा उक्कोसए परित्तासंखेज्जए अथवा उत्कर्षके परीतासंख्येयके अथवा उत्कृष्ट परीत-असंख्येय में एक का रूवं पक्खित्तं जहण्णयं जुत्तासंखे- रूपे प्रक्षिप्ते जघन्यकं युक्तासंख्येयक प्रक्षेप करने पर जघन्य युक्त-असंख्येय होता ज्जयं होइ । आवलिया वि तत्तिया भवति । आवलिकाः अपि तावन्त्यः है। एक आवलिका की समय-राशि भी चेव ॥ चैव । उतनी होती है। ५६१. तेण परं अजहण्णमणक्कोसयाई ततः परम् अजघन्योत्कर्षकाणि ५९१. जघन्य युक्त-असंख्येय से आगे उत्कृष्ट युक्त ठाणाई जाव उक्कोसयं जुत्तासंखे- स्थानानि यावद् उत्कर्षकं युक्ता- असंख्येय से पूर्व बीच के सभी स्थान अजघन्यज्जयं न पावइ॥ संख्येयकं न प्राप्नोति । अनुत्कृष्ट युक्त असंख्येय होते हैं । ५६२. उक्कोसयं जुत्तासंखेज्जयं केत्तियं उत्कर्षकं युक्तासंख्येयकं कियद् ५९२. उत्कृष्ट युक्त-असंख्येय कितना होता है ? होइ ? जहण्णएणं जुत्तासंखेज्जएणं भवति ? जघन्यकेन युक्तासंख्येयकेन जघन्य युक्त-असंख्येय को आवलिका से आवलिया गुणिया अण्णमण्ण- आवलिका गुणिता अन्योन्याभ्यास: गुणित करने पर अथवा जघन्य युक्त-असंख्येय सभासो रूवणो उक्कोसयं जुत्ता- रूपोनः उत्कर्षकं युक्तासंख्येयक और जघन्य युक्त-असंख्येय प्रमाण राशियों को संखेज्जयं होइ। भवति। परस्पर गुणित करने पर जो राशि आती है, उससे एक कम उत्कृष्ट युक्त-असंख्येय होता है। अहवा जहण्णयं असंखेज्जासंखेज्जयं अथवा जघन्यकम् असंख्येया- अथवा एक कम जघन्य असंख्येय-असंख्येय रूवणं उस्कोसयं जुत्तासंखेज्जयं संख्येयक रूपोनम् उत्कर्षकं युक्ता- उत्कृष्ट युक्त-असंख्येय होता है। होइ॥ संख्येयकं भवति । ५६३. जहण्णयं असंखेज्जासंखेज्जयं जघन्यकम् असंख्येयासंख्येयकं ५९३. जघन्य असंख्येय-असंख्येय कितना होता है ? केत्तियं होइ? जहण्णएणं जुत्ता- कियद् भवति ? जघन्यकेन युक्ता. जघन्य युक्त-असंख्येय को आवलिका से संखेज्जएणं आवलिया गुणिया संख्येयकेन आवलिका गुणिता अन्यो- गुणित करने पर अथवा जघन्य युक्त-असंख्येय अण्णमण्णब्भासो पडिपुण्णो न्याभ्यास: प्रतिपूर्णः जघन्यकम् और जघन्य युक्त-असंख्येय प्रमाण राशियों को जण्णयं असंखेज्जासंखेज्जयं होइ। असंख्येयासंख्येयकं भवति । परस्पर गुणित करने पर जो राशि आती है वह प्रतिपूर्ण राशि जघन्य असंख्येय-असंख्येय होती है। अहवा उक्कोसए जुत्तासंखेज्जए अथवा उत्कर्षके युक्तासंख्येयके अथवा उत्कृष्ट युक्त-असंख्येय में एक का रूवं पक्खितं जहण्णयं असंखेज्जा- रूपे प्रक्षिप्ते जघन्यकम् असंख्येया- प्रक्षेप करने पर जघन्य असंख्येय-असंख्येय संखेज्जयं होइ॥ संख्येयकं भवति । होता है। ५६४. तेण परं अजहण्णमणुक्कोसयाई ततः परम् अजघन्योत्कर्षकाणि ५९४. जघन्य असंख्येय-असंख्येय से आगे उत्कृष्ट Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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