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________________ ग्यारहवां प्रकरण : सूत्र ५६५-५६८ ५६७. से किं तं भवियसरीरदव्वसंखा ? भवियसरीरदव्वसंखा जे जीवे जोणिजम्मणनिक्खते इमेणं चेव आदत्तएणं सरीरसमुस्सएणं जिण बिट्ठेणं भावेणं संखा ति पयं सेय काले सिक्खिस्सइ, न ताव सिक्खड़ । जहा को वितो? अयं महकमे भविस्स, अयं धयकुंभे भविस्स । से तं भवियसरीरला ॥ ५६८. से कि तं जाणगसरीर भविय सरीर तिरिता व्यसंखा ? जाणगसरीर भविय सरीर वतिरिता दयातिविहा पण्णत्ता, तं जहा - एगर्भाविए बद्धाउए अभिमुनामगोते य । एगमविए णं भंते ! एगभविए ति कालओ केवच्चिरं होइ ? जहणणं तोह उनकोसेणं पुव्यकोडी | बढाउए णं भंते ! बढाउए सि कालओ केवच्चिरं होइ ? जहणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडीतिभागं । अभिमुनामगोते णं भंते! अभिमुनामगोते ति कालओ केवच्चिरं होइ ? जहणंग एक्कं समयं उक्कोसेणं अंतोमुहतं । इयाणि को नओ कं संखं नेगम-संग्रह-ववहारा इच्च ? तिविहं सं इच्छंति, तं जहा एमनविय बढाउ अभिमुनाम गोत्तं च । उज्जुसुओ दुविहं संखं इच्छा, तं जहा -- बद्धाउयं च अभिमुहनाम गोतं च । तिणि सहनया अभिमुहनामगोलं इच्छति से तं जाणन संखं । सरीर-भवियसरीर वतिरित्ता दव्वसंखा से तं नोआगमओ दखसंख्या से तं दवा ॥ Jain Education International अथ कि सा भव्यशरीरद्रव्यसंख्या ? भव्यसरीरद्रव्यसंख्या- - यः जीवः योनिजन्मनिष्क्रान्तः अनेन चैव आदत्तकेन शरीरसमुच्छ्रयेण जिनदिष्टेन भावेन संख्या इति पदम् एष्यत्काले शिक्षिष्यते, न तावत् शिक्षते । यथा कः मुष्टान्त ? अयं मधुम्म भविष्यति, अयं तमः भविष्यति । सा एषा भव्यशरीरद्रव्यसंख्या । अथ कि सा ज्ञशरीर भव्य शरीरव्यतिरिक्ता द्रव्यसंख्या ? ज्ञशरीरभव्यशरीर व्यतिरिक्ता: उपसंचा त्रिविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-एकभविकः बद्धायुष्कः afts: aayee अभिमुखनामगोत्रश्च । एकमविक: भदन्त ! एकभविक: इति कालतः कियच्चिरं भवति ? जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम् उत्कण पूर्वकोटि: eator : मदन्त ! बद्धायुष्कः इति कालतः किञ्चिरं भवति ? जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कर्षेण पूर्वकोटि-भागम् । अभिमुखनामदोत्र: भदन्त ! नामगोत्रः इति कालतः पिश्विरं भवति ? जघन्येन एवं समयम्, उत्कर्षेण अन्तर्मुहूर्तम् । इदानीं कः नयः कं शंखम् नैगम-संग्रह-व्यवहारा: पति? त्रिविधं शंखम् इच्छन्ति, तद्यथा-एकमविषं बायुम् अभिमुखनाम गोत्रञ्च । सूत्र: द्विविधं शंखइति तद्यथा - बद्धायुष्कञ्च अभिमुखनामगोत्रञ्च । त्रयः शब्दनयाः अभिमुखनामगोत्रं शंखम् इच्छन्ति सा एषा शरीर। भव्यशरीर-व्यतिरिक्ता द्रव्यसंख्या । सा एषा नोआगमतो द्रव्यसंख्या । सा एषा द्रव्यसंख्या । For Private & Personal Use Only ३०७ ५६७. वह भव्य शरीर द्रव्य संख्या क्या है ? भव्य शरीर द्रव्य संख्या - गर्भ की पूर्णावधि से निकला हुआ जो जीव इस प्राप्त पौगलिक शरीर से संख्या इस पद को जिन द्वारा उपदिष्ट भाव के अनुसार भविष्य में सीखेगा, वर्तमान में नहीं सीखता है तब तक वह भव्य शरीर द्रव्य संख्या है जैसे कोई दुष्टान् है ? [आचार्य ने कहा - इसका दृष्टान्त यह है ] यह मधुघट होगा, यह घृतघट होगा । वह भव्यशरीर द्रव्य संख्या है । ५६८. वह ज्ञशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्य शंख क्या है ? ज्ञशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्यशंख के तीन प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे एकभविक, वावुक और अभिमुखनामगोत्र । भन्ते । एकभविक कितने काल तक एकभविक रहता है ? जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्टतः करोड़ पूर्व भन्ते ! बद्धायुष्क कितने समय तक बद्धायुष्क रहता है ? जघन्यतः अन्तर्मुहुर्त और उत्कृष्टतः करोड़ पूर्व का तिहाई भाग । भन्ते । अभिमुखनामगोत्र वाला कितने समय तक अभिमुखनामगोत्र वाला रहता है ? जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः अन्तर्मुहूर्त्त । अब यह प्रस्तुत है कि किस नय को कौनसा शंख इष्ट हैं ? नैगम, संग्रह और व्यवहार को त्रिविध शंख इष्ट हैं। जैसे एकभविक Paror और अभिमुखनामगोत्र वाला । ऋजुसूत्र को द्विविध शंख इष्ट है, जैसे बद्धायुष्क और अभिमुखनामगोत्र वाला । तीन नयों को अभिमुखनामी वाला शंख इष्ट है। वह ज्ञशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्य शंख है । वह नोआगमतः द्रव्यसंख्या है ।" वह द्रव्य संख्या है। パ www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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