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________________ गाथा --- ३०८ अणुओगदाराई ५६६. से कि तं ओवम्मसंखा? ओव- अथ कि सा औपम्यसंख्या? ५६९. वह औपम्यसंख्या क्या है ? म्मसंखा चउब्विहा पण्णता, तं औपम्यसंख्या चतुविधा प्रज्ञप्ता, औपम्य संख्या के चार प्रकार प्रज्ञप्त है, जहा-१. अस्थि संतयं संतएणं तद्यथा--१. अस्ति सत्कं सत्केन जैसे-१. सत् को सत् से उपमित किया उवमिज्जइ २. अत्थि संतयं असंत- उपमीयते २. अस्ति सत्कम् असत्केन जाता है, २. सत् को असत् से उपमित किया एणं उवमिज्जइ ३. अस्थि असंतयं उपमीयते । ३. अस्ति असत्कं सत्केन जाता है, ३. असत् को सत् से उपमित किया संतएणं उवमिज्जइ ४. अस्थि उपमीयते ४. अस्ति असत्कम् असत्केन जाता है, ४. असत् को असत् से उपमित असंतयं असंतएणं उवमिज्जइ। उपमीयते। किया जाता है। तत्थ १. संतयं संतएणं उवमिज्जइ, तत्र १. सत्कं सत्केन उपमीयते, १ इनमें सत् सत् से उपमित किया जाता जहा संता अरहंता संतएहि यथा--सन्तः अर्हन्त: सत्कः पुरवरः, है, जैसे -सत् अर्हत् का वक्ष सत् पुरवर के पुरवरेहि, संतएहि कवा.हिं संतएहि सत्क: कपाटः सत्क: वक्षोभिः उपमी- कपाट के द्वारा उपमित किया जाता है, वच्छेहि उवमिज्जंति, जहा--- यन्ते, यथा-- जैसे -- गाहा गाथा - पुरवर-कवाड-वच्छा, पुरवर-कपाट-वक्षाः, १. सभी चौबीस तीर्थकर पुरवर-कपाट के फलिहभुया दुंदुहि-त्थणियघोसा। परिघभुजाः दुन्दुभि-स्तनितघोषाः । समान वक्ष, परिघ के समान भुजा और दुन्दुभि सिरिवच्छंकियवच्छा, श्रीवत्साङ्कितवक्षस:, एवं मेघगर्जन के समान घोषवाले तथा श्रीवत्स सब्वे वि जिणा चउव्वीसं ॥१॥ सर्वेऽपि जिना: चतुर्विशतिः ॥१॥ से अंकित वक्ष वाले होते हैं। २. संतयं असंतएणं उवमिज्जइ, २. सत्कम् असत्केन उपमीयते, २. सत् असत् से उपमित किया जाता है, जहा संताई नेरइय-तिरिक्ख- यथा सत्कानि नैरयिक-तिर्यग जैसे --- सत् नैरयिक, तिर्यग्योनिक, मनुष्य जोणिय-मणुस्स-देवाणं आउयाई योनिक-मनुष्य-देवानां आयूंषि और देवों का आयुष्य असत् पल्योपम और असंतएहि पलिओवम-सागरोवमेहि असत्केत पल्योपम-सागरोपमैः उप- सागरोपम से उपमित किया जाता है। उवमिज्जति । मीयन्ते। ३. असंतयं संतएणं उवमिज्जइ, ३. असत्कं सत्केन उपमीयते, ३. असत् सत् से उपमित किया जाता है, जहायथा जैसे--- गाहागाथा --- गाथापरिजरियपेरंतं, परिजोर्णपर्यन्तं, २. जिसका पर्यन्त भाग जीर्ण और वन्त चलंतबेट पडतनिच्छोरं। चलद्वन्तं पतनिःक्षीरम् । विचलित हो गया है, जो वृक्ष से गिरने वाला पत्तं वसणप्पत्त, पत्रं व्यसनप्राप्तं, है, जिसका दूध सूख गया है वह कष्ट में पड़ा कालप्पत्तं भणइ गाहं ॥२॥ कालप्राप्त भणति गाथाम् ॥२॥ हुआ पक्का पत्ता [किशलयों से निम्न निर्दिष्ट] गाथा कहता है---- जह तुब्भे तह अम्हे, यथा यूयं तथा वयं, ३. जैसे तुम हो वैसे ही हम थे, जैसे हम तुम्हे वि य होहिहा जहा अम्हे । यूयमपि च भविष्यथ यथा वयम् । हैं वैसे ही तुम हो जाओगे। यह बात गिरता अप्पाहेइ पडतं, कथयति पतत्, हुआ पीला पत्ता किशलयों से कहता है । पंडयपत्तं किसलयाणं ॥३॥ पाण्डुपत्रं किशलयेभ्यः ॥३॥ नवि अस्थि न वि य होही, नाऽपि अस्ति नापि च भविष्यति, ४. किशलयों और पीले पत्तों में न कभी उल्लावो किसल-पंडुपत्ताणं । उल्लापः किशलय-पाण्डुपत्रयोः । वार्तालाप हुआ और न होगा। भव्य-जनों को उवमा खलु एस कया, उपमा खलु एषा कृता, बोध देने के लिए यह उपमा की गई है। भवियजण-विबोहणढाए॥४॥ भव्यजन-विबोधनार्थम् ॥४॥ ४. असंतयं असंतएणं उवमिज्जइ ४. असत्कम् असत्केन उपमीयते ४ असत् असत् से उपमित किया जाता --जहा खरविसाणं तहा ससवि- -यथा खरविषाणं तथा शशविषा है-जैसे गधे का सींग वैसे खरगोश का साणं । से तं ओवम्मसंखा॥ णम् । सा एषा औपम्पसंख्या । सींग। वह औपम्य संख्या है। ५७०. से कि तं परिमाणसंखा? परि- अथ कि सा परिमाणसंख्या ? ५७०. वह परिमाण संख्या क्या है ? माणसंखा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा परिमाणसंख्या द्विविधा प्रज्ञप्ता, परिमाण संख्या के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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