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वउत्ता आगमओ दोण्णीओ दव्वसंखाओ, तिष्णि अणुवत्ता आगओ तिणीओ दव्वसंखाओ, एवं जावइया अणुवउत्ता तावइयाओ ताओ नेगमस्स आगमओ दव्वसंखाओ। एवमेव वबहारस्स वि। संगहस्स एगो वा अणेगा वा अणुवउत्तो वा अणुवत्ता वा आगमओ दवा वा दव्यसंखाओ वा सा एगा दव्वसंखा । उज्जुसुयस्स एगो अणुवत्तो आगमओ एगा दव्वसंखा, पुहत्तं नेच्छइ । तिन्हं सद्दन याणं जाणए अणुवत्ते अवत्थू कम्हा? ? जइ जाणए अणुवउत्ते न भवइ । से तं आगमओ दव्यसंखा ॥
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५६५. से कि तं नोआगमओ दय्यसंखा ? नोआगमओ दव्वसंखा तिविहा पण्णत्ता तं जहा जाणव सरीरदव्वसंखा भवियसरीरदव्व संखा जाणगसरीर-भवियसरीर बतिरिता दध्वसंखा ॥ ५६६. से कि तं जाणगसरीरव्यसंखा ? जाणगसरीरदन्यसंखासंखा ति पयत्वाहिगारणाणगरस जं सरीरयं ववगय-चुय चाविय चत्तदेहं जीवविप्पजढं सेज्जागयं वा संथारगयं वा निसीहियागयं वा सिद्ध सिलातलगयं वा पासित्ता गं कोइ वएज्जा - अहो णं इमेणं सरीरसमुस्सएर्ण जिणदिट्ठेणं भावेणं संखा ति पयं आघवियं पण्णवियं परुवियं खियं नियंसि उवदंतियं जहा को दितो ? अयं महकमे आसी, अयं धपकने आसी । से तं जाणगसरीरदव्वसंखा ।।
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आगमतो द्वे द्रव्यसंख्ये, त्रयः अनुपयुक्ताः आगमतः तिस्रः द्रव्यसंख्या:, एवं यावन्तः अनुपयुक्ताः तावत्यः ताः नैगमस्य आगमतो द्रव्यसंख्याः । एवमेय व्यवहारस्यापि संग्रहस्य एको वा अनेके वा अनुपयुक्तो वा अनुप युक्ताः वा आगमतो द्रव्यसंख्या वा द्रव्यसंख्याः वा सा एका द्रव्यसंख्या । ऋजुसूत्रस्य एकः अनुपयुक्त: आगमतः एका द्रव्यसंख्या, पृथक्त्वं नेच्छति । त्रयाणां शब्दनयानां ज्ञ. अनुपयुक्त: अवस्तु । कस्मात् ? यदि ज्ञः अनुपयुक्तो न भवति । सा एषा आगमतो
द्रव्यसंख्या
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अथ कि सा नोआगमतो द्रव्यसंख्या ? नोआगमतो द्रव्यसंख्या त्रिविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा ज्ञशरीरद्रव्यसंख्या भव्यशरीरद्रव्यसंख्या ज्ञशरीर भव्यशरीर-व्यतिरिक्ता द्रव्यसंख्या ।
अथ कि सा ज्ञशरीरद्रव्यसंख्या ? गरीयसंख्या संख्या इति पदार्थाधिकारज्ञस्य यत् शरीरकं व्यपगत च्युत-च्यावित त्यक्तदेहं जीवविप्रहीणं शय्यागतं वा संस्तारगतं वा frutधिकागतं वा सिद्धशिलातलगतं वा दुवा]] कोऽपि वदेत् अहो अनेन शरीरसमुच्छ्रयेण जिनदिष्टेन भावेन संख्या इति पदम् आख्यातं प्रज्ञापितं प्ररूपितं दर्शितं निर्देशितम् उपशितम् । यथा कः दृष्टान्त ? अयं मधुकुनः आसीत्, अयं घृतकुम्भः आसीत् । सा एषा ज्ञशरीरद्रव्यसंख्या ।
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अणुओगदाराई
व्यक्ति आगमतः दो द्रव्य संख्या है। तीन अनुपयुक्त व्यक्ति आगमतः तीन द्रव्य संख्या हैं इस प्रकार जितने अनुपयुक्त व्यक्ति हैं नैगमनय की अपेक्षा उतनी ही आगमतः द्रव्य संख्या हैं ।
इसी प्रकार व्यवहारनय की अपेक्षा भी जितने अनुपयुक्त व्यक्ति हैं उतनी ही आगमतः द्रव्य संख्या हैं ।
संग्रहनय की अपेक्षा एक अनुपयुक्त व्यक्ति है अथवा अनेक अनुपयुक्त व्यक्ति हैं, आगमतः एक द्रव्य संख्या है अथवा अनेक द्रव्य संख्या हैं, वह एक द्रव्य संख्या है।
ऋजुसूत्रनय की अपेक्षा एक अनुपयुक्त व्यक्ति आगमतः एक द्रव्य संख्या है। भिन्नता उसे इष्ट नहीं है ।
तीन शब्द न शब्द समभि एवंभूत] की अपेक्षा अनुपयुक्त ज्ञाता अवस्तु है, क्योंकि यदि कोई ज्ञाता है तो वह अनुपयुक्त नहीं होता । वह आगमतः द्रव्य संख्या है ।
५६५. वह नोआगमतः द्रव्य संख्या क्या है ?
नोआगमतः द्रव्य संख्या के तीन प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे ज्ञशरीर द्रव्य संख्या, भव्यशरीर द्रव्य संख्या, ज्ञशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्य संख्या ।
५६६. वह ज्ञशरीर द्रव्य संख्या क्या है ?
ज्ञशरीर द्रव्य संख्या -- संख्या इस पद के अर्थाधिकार को जानने वाले व्यक्ति का जो शरीर अचेतन, प्राण से च्युत, किसी निमित्त से प्राण च्युत किया हुआ, उपचय रहित, जीव विप्रमुक्त है उसे शय्या, बिछौने, श्मशानभूमि या सिद्धशिलातल पर देखकर कोई कहे आश्चर्य है ! इस पौद्गलिक शरीर ने जिन द्वारा उपदिष्ट भाव के अनुसार संख्या इस पद का आख्यान, प्रज्ञापन, प्ररूपण, दर्शन, निदर्शन और उपदर्शन किया है । जैसे कोई दृष्टान्त है ? [आचार्य ने कहा—इसका दृष्टान्त यह है ] यह मधुघट था, यह घृतघट था । वह ज्ञशरीर द्रव्य संख्या है।
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