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________________ ग्यारहवां प्रकरण : सूत्र ५५८-५६४ ३०५ ५५६. से कि तं नामसंखा ? नामसंखा अथ कि सा नामसंख्या? नाम-५५९. वह नाम संख्या क्या है ? -जस्स णं जीवस्स वा अजीवस्स संख्या-यस्य जीवस्य वा अजीवस्य ___ नाम संख्या-जिस जीव या अजीव का, वा जीवाण वा अजीवाण वा तदु- वा जीवानां वा अजीवानां वा तदु- जिन जीवों या अजीवों का, जिस जीव अजीब भयस्स वा तदुभयाण वा संखा ति भयस्स वा तदुभयेषां वा संख्या इति दोनों का, जिन जीवों और अजीवों दोनों का, नाम कज्जइ । से तं नामसंखा ॥ नाम क्रियते । सा एषा नामसंख्या। संख्या यह नाम किया जाता है। वह नाम संख्या है। ५६०. से कि तं ठवणसंखा? ठवण- अथ किं सा स्थापनासंख्या ? ५६०. वह स्थापना संख्या क्या है? संखा-जण्णं कट्टकम्मे वा चित्त- स्थापनासंख्या यत् काष्ठकर्मणि वा स्थापना संख्या-काष्ठाकृति चित्राकृति, कम्मे वा पोत्थकम्मे वा लेप्पकम्मे चित्रकर्मणि वा पुस्तकर्मणि वा लेप्य- वस्त्राकृति या लेप्याकृति में गूंथकर, वेष्टितवा गंथिमे वा वेढिमे वा पूरिमे वा कर्मणि वा ग्रन्थिमे वा वेष्टिमे वा कर, भरकर या जोड़कर बनाई हुई पुतली में संघाइमे वा अक्खे वा वराडए वा पूरिमे वा संघातिमे वा अक्षे वा बरा- अक्ष या कौड़ी में एक या अनेक सद्भावएगो वा अणेगा वा सब्भावठवणाए टके वा एको वा अनेके वा सद्भाव- स्थापना या असद्भाव-स्थापना के द्वारा वा असम्भावठवणाए वा संखा ति स्थापनया वा असद्भावस्थापनया वा संख्या का रूपांकन या कल्पना की जाती है। ठवणा ठविज्जइ। से गं ठवण- संख्या इति स्थापना स्थाप्यते। सा वह स्थापना संख्या है। संखा॥ एषा स्थापनासंख्या। ५६१. नाम-दृवणाणं को पइविसेसो ? नामस्थापनयोः कः प्रतिविशेषः? ५६१. नाम और स्थापना में क्या अन्तर है ? नामं आवकहियं, ठवणा इत्तरिया नाम यावत्कथिफम्, स्थापना इत्व- नाम यावज्जीवन होता है तथा स्थापना वा होज्जा आवकहिया वा॥ रिका वा भवेत् यावत्कथिका वा। स्वल्पकालिक भी होती है और यावज्जीवन भी। ५६२. से कि तं दव्वसंखा? दव्वसंखा अथ किं सा द्रव्यसंख्या ? द्रव्य- ५६२. वह द्रव्य संख्या क्या है ? दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-आग- संख्या द्विविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा द्रव्य संख्या के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसेमओ य नोआगमओ य॥ आगमतश्च नोआगमतश्च । आगमत: और नोआगमतः । ५६३. से कि तं आगमओ दव्वसंखा? अथ कि सा आगमतो द्रव्य- ५६३. वह आगमतः द्रव्य संख्या क्या है ? आगमओ दव्वसंखा-जस्स णं संख्या ? आगमतो द्रव्यसंख्या -यस्य आगमतः द्रव्य संख्या--जिसने संख्या यह संखा ति पदं सिक्खियं ठियं जियं संख्या इति पदं शिक्षितं स्थितं चितं पद सीख लिया, स्थिर कर लिया, चित कर मियं परिजियं नामसमं घोससमं मितं परिचितं नामसमं घोषसमम् लिया, मित कर लिया, परिचित कर लिया, अहीणक्खरं अणच्चक्खरं अव्वा- अहीनाक्षरम् अनत्यक्षरम् अव्याविद्धा- नामसम कर लिया, घोषसम कर लिया, इद्धक्खरं अक्खलियं अमिलियं क्षरम् अस्खलितम् अमीलितम् अव्य- जिसे वह हीन, अधिक या विपर्यस्त-अक्षर अवच्चामेलियं पडिपुण्णं पडिपुण्ण- त्यानेडितं प्रतिपूर्ण प्रतिपूर्णघोष रहित, अस्खलित, अन्य वर्गों से अमिश्रित, बोसं कंठो?विप्पमुक्कं गुरुवायणो- कठौष्ठविप्रमुक्तं गुरुवाचनोपगतं सा अन्य ग्रन्थ-वाक्यों से अमिश्रित, प्रतिपूर्ण, वगयं, से णं तत्थ वायणाए पुच्छ- तत्र वाचनया प्रच्छनया परिवर्तनया प्रतिपूर्ण घोषयुक्त, कण्ठ और होठ से निकला णाए परियट्टणाए धम्मकहाए, नो धर्मकथया, नो अनुप्रेक्षया । कस्मात् ? हुआ तथा गुरु की वाचना से प्राप्त है। वह अणुप्पेहाए। कम्हा? अणुवओगो अनुपयोगो द्रव्यमिति कृत्वा । उस (संख्या शब्द) के अध्यापन, प्रश्न, परादब्वमिति कटु ॥ वर्तन और धर्मकथा में प्रवृत्त होता है तब आगमतः द्रव्य संख्या है। वह अनुप्रेक्षा में प्रवृत्त नहीं होता क्योंकि द्रव्य निक्षेप अनुपयोग (चित्त की प्रवृत्ति से शून्य) होता है । ५६४. नेगमस्स एगो अणुवउत्तो आग- नैगमस्य एकः अनुपयुक्तः आग- ५६४. नैगमनय की अपेक्षा एक अनुपयुक्त व्यक्ति मओ एगा दव्वसंखा, दोणि अणु- मत: एका द्रव्यसंख्या, द्वौ अनुपयुक्तौ आगमतः एक द्रव्य संख्या है, दो अनुपयु अ www.jainelibrary.org Jain Education International lain Education Intemational For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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