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________________ ३०४ एवं वर्षतं स संपद समभिरूडो भणति जं भणसि धम्मे पएसे से पसे नोखंधे, तं न भवइ । " कम्हा ? एत्थ दो समासा भवंति तं जहा तप्पुरिसे य कम्मधारए य । तं न नज्जइ । कपरेणं समासेणं भणसि ? कि तप्पुरिसेणं ? कि कम्मधारएण जई तप्पुरिसेणं भणसि तो मा एवं भणाहि अह कम्मधारएणं भणसि तो विसेसओ भणाहि धम्मे य से पए से य सेसे पएसे धम्मे, अधम्मे य से पए से य सेसे पएसे अधम्मे, आगासे य से पएसे य सेसे पएसे आगासे, जीवेय से एसे य सेसे पसे नोजीवे, खंधे य से पसे य सेसे पसे नोखंधे । एवं वयंतं समभिरुडं संपइ एवंभूज भणति -जं जं भगसि तं तं सव्वं कसिणं पडिपुण्णं निरवसेसं एगग्गहण - यं । देवि मे अवत्थू, पएसे वि मे अवत्थू । से तं पएसदिट्ठतेणं से तं नयप्यमाणेणं ॥ । ५५८. से कि तं संखप्यमाणे ? संखप्प माणे अडविहे पण्णसे, तं जहा १. नामसंखा २ वा ३ दव्वसंखा ४. ओवम्मसंखा ५. परिमाणसंखा ६. जाणणासंखा ७. गणनासंखा ८. भावला ॥ Jain Education International धर्मः यावत् स्कन्धः प्रदेश: स प्रदेश: नोस्कन्धः, तन्न भवति । " कस्मात् ? अत्र द्वौ समासौ भवतः, तद्यया तत्पुरुषश्च कर्मधारयश्च । तन्न ज्ञायते कतरेण समासेन भयसि ? कि तत्पुरुषेण ? कि कर्मधारयेण ? यदि तत्पुरुषे भगसि कर्मवं भण, अप कर्मधारयेण भणसि, ततः विशेषतः भण - धर्मश्च स प्रदेशश्य स एव प्रदेशः धर्मः अधर्मश्व स प्रदेशश्च स एष प्रदेशः अधर्मः, आकाशरच स प्रदेशश्च स एष प्रदेश: आकाश:, जीवश्च स प्रदेशश्च स एष प्रदेशः नोजीव:, स्कन्धश्च स प्रदेशश्च स एष प्रदेश: नोस्कन्धः । एवं वदन्तं समभिरूढं सम्प्रति एवम्भूतः भणति यद् यद् भणसि तत्तत् सर्वं कृत्स्नं प्रतिपूर्ण निरवशेष एकग्रहणगृहीतम् । देशोऽपि मे अवस्तु, प्रदेशोऽपि मे अवस्तु । तदेतत् प्रदेशदृष्टान्तेन । तदेतद् नयप्रमाणेन । + अथ किं तत् संख्याप्रमाणम् ? संख्याप्रमाणम् अष्टवि प्रज्ञप्तं, तद्यथा-- १. नामसंख्या २. स्थापनासंख्या ३. द्रव्यसंख्या ४. औपम्यसंख्या ५. परिमाणसंख्या ६. ज्ञानसंख्या ७. गणनासंख्या ८. भावसंख्या । For Private & Personal Use Only अणुओगदारा धर्मात्मक प्रदेश है वह प्रदेश धर्म है। जो अधर्मात्मक प्रदेश है वह प्रदेश अधर्म है। जो आकाशात्मक प्रदेश है वह प्रदेश आकाश है । जो जीवात्मक प्रदेश है वह प्रदेश नो जीव है । जो स्कन्धात्मक प्रदेश है वह प्रदेश नोस्कन्ध है । शब्दtय के ऐसा कहने पर सम्प्रति समभिरूढ़नय कहता है-तुम जो कहते हो, जो धर्मात्मक प्रदेश है वह प्रदेश धर्म है यावत् जो स्कन्धात्मक प्रदेश है वह प्रदेश नोस्कन्ध है, वह उचित नहीं है। किसलिए ? यहां दो समास होते हैं, जैसे-- तत्पुरुष और कर्मधारय । अतः यह नहीं जाना जाता कि किस समास से कहते हो ? क्या तत्पुरुष समास से कहते हो ? क्या कर्मधारय समास से कहते हो ? यदि तत्पुरुष समास से कहते हो तो यह मत कहो । यदि कर्मधारय समास से कहते हो तो विशेषण सहित कहो प्रदेश जो धर्म [ धर्मात्मक] है वह प्रदेश धर्म है । प्रदेश जो अधर्म [अ] अधर्म है। प्रदेश जो [आकाशात्मक] है वह प्रदेश आकाश है। प्रदेश जो जीव [जीवात्मक] है वह नोप्रदेश जीव है। प्रदेश जो स्कन्ध [ स्कन्धात्मक ] है वह नोप्रदेश स्कन्ध है । समभिरूढ़ के ऐसा कहने पर सम्प्रति एवंभूतनय कहता है-जिस धर्मास्तिकाय आदि के सम्बन्ध में तुम जो कहते हो वह सब कृत्स्न, प्रतिपूर्ण, निरवयव और एक शब्द के द्वारा अभिधेय है क्योंकि मेरी दृष्टि में देश भी वास्तविक नहीं है और प्रदेश भी वास्तविक नहीं है। वह प्रदेश दृष्टान्त के द्वारा प्रतिपादनीय नय प्रमाण है । वह नयप्रमाण है । ५५८. वह संख्या प्रमाण क्या है ? संख्या प्रमाण के आठ प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे—१. नाम संख्या, २. स्थापना संख्या, ३. द्रव्य संख्या, ४. औपम्य संख्या, ५. परिमाण संख्या, ६. ज्ञान संख्या, ७. गणना संख्या, ८. भाव संख्या ।" www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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