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अणुओगदाराइ ५३५. से कि तं तीयकालगहणं? तीय- अथ किं तद् अतीतकालग्रहणम् ? ५३५. वह अतीत काल ग्रहण क्या है?
कालगहणं नित्तिणाई वणाई अतीतकालग्रहणम् -निस्तृणानि वनानि ___ अतीत काल ग्रहण .. घास रहित वन, अनिष्फण्णसस्सं वा मेइणि, अनिष्पन्नशस्यां वा मेदिनी, शुष्काणि अनिष्पन्न धान्य वाली पृथ्वी, सूखे हुए कुण्ड, सुक्काणि य कुंड-सर-नदि-दह-तला- च कुण्ड-सरः-नदी-द्रह-तडागानि सरोवर, नदी, द्रह और तालाब को देखकर गाई पासित्ता तेणं साहिज्जइ, दृष्ट्वा तेन साध्यते, यथा --- जैसे कोई कहता है वर्षा अच्छी नहीं हुई जहा कवटी आसी। से तं तीय- कुवृष्टिः आसीत् । तदेतद् अतीतकाल- थी। वह अतीत काल ग्रहण है। कालहणं ॥
ग्रहणम् । ५३६. से कि तं पड़प्पण्णकालगहण? अथ किं तत् प्रत्युत्पन्नकालग्रहणम्? ५३६. वह वर्तमान काल ग्रहण क्या है ?
पडप्पण्णकालगहणं-साहुं गोयर- प्रत्युत्पन्नकालग्रहणम्-साधु गोचराग्र- वर्तमान काल ग्रहण --गोचरी के लिए गए ग्गगयं भिक्खं अलभमाणं पासित्ता गतं भिक्षा अलभमानं दृष्ट्वा तेन हुए साधु को भिक्षा की प्राप्ति न होते हुए तेणं साहिज्जइ, जहा-दुभिक्खे साध्यते, यथा- दुर्भिक्षं वर्तते । तदेतत् देखकर जैसे कोई कहता है दुष्काल है। वट्टइ । से तं पडुप्पण्णकालगहणं ॥ प्रत्युत्पन्नकालग्रहणम् ।
वह वर्तमान काल ग्रहण है।
५३७. से कि तं अणागयकालगहण ? अथ किं तत् अनागतकालग्रहणम् ?
अणागयकालगहणं-अग्गेयं वा अनागतकालग्रहणम् -आग्नेयं वा वायव्वं वा अण्णयरं वा अप्पसत्थं वायव्यं वा अन्यतरद् वा अप्रशस्तम् उप्पायं पासित्ता तेणं साहिज्जइ, उत्पातं दृष्ट्वा तेन साध्यते, यथाजहा-कुवटी भविस्सइ। से तं कृवृष्टि: भविष्यति । तदेतद् अनागतअणागयकालगहणं । से तं अणु- कालग्रहणम् । तदेतद् अनुमानम् ।
५३७. वह अनागत काल ग्रहण क्या है ?
अनागत काल ग्रहण-आग्नेय, वायव्य या अन्य किसी अप्रशस्त उत्पात को देखकर जैसे कोई कहता है वर्षा अच्छी नहीं होगी। वह अनागत काल ग्रहण है । वह अनुमान है।
५३८. से कि तं ओवम्मे? ओवम्म अथ किं तद् औपम्यम् ? औपम्यं ५३८. वह उपमान क्या है ? विहे पण्णत्ते, तं जहा-साहम्मो- द्विविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा-साधम्र्यो
उपमान के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे -- वणीए य वेहम्मोवणीए य॥ पनीतञ्च वैधोपनीतञ्च ।
साधोपनीत और वधोपनीत । ५३६. से कि तं साहम्मोवणीए?
अथ कि तत् साधोपनीतम? ५३९. वह साधोपनीत क्या है ? साहम्मोवणीए तिविहे पण्णत्त, तं साधोपनीतं त्रिविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा
साधोपनीत के तीन प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जहा-किचिसाहम्मे पायसाहम्मे -किञ्चित्साधयं प्रायःसाधर्म्य
जैसे-किञ्चित् साधर्म्य, प्रायः साधर्म्य और सव्वसाहम्मे ॥ सर्वसाधर्म्यम् ।
सर्व साधर्म्य । ५४०. से कि तं किचिसाहम्मे ? किचि- अथ किं तत किञ्चित्साधर्म्यम? ५४०. वह किञ्चित् साधर्म्य क्या है ?
साहम्मे जहा मंदरो तहा सरि- किञ्चित्साधर्म्यम् - यथा मन्दरस्तथा किञ्चित् साधर्म्य जैसा मेरू है वैसा सवो, जहा सरिसवो तहा मंदरो। सर्षपः, यथा सर्षपस्तथा मन्दरः । सर्षप है, जैसा सर्षप है वैसा मेरू है। जैसा जहा समुद्दो तहा गोप्पयं, जहा यथा समुद्रस्तथा गोष्पदं, यथा गोष्पदं समुद्र है वैसा गोष्पद है, जैसा गोष्पद है वैसा गोप्पयं तहा समुद्दो। जहा आइ- तथा समुद्रः। यथा आदित्यस्तथा समुद्र है। जैसा सूर्य है वैसा जुगनू है, जैसा च्चो तहा खज्जोतो, जहा खज्जोतो खद्योतः, यथा खद्योतस्तथा आदित्यः । जुगनू है वैसा सूर्य है। जैसा चन्द्रमा है वैसा तहा आइच्चो। जहा चंदो तहा यथा चन्द्रस्तथा कुन्दः, यथा कुन्द- कुन्द है, जैसा कुन्द है वैसा चन्द्रमा है। वह कंदो, जहा कंदो तहा चंदो। से तं स्तथा चन्द्रः। तदेतत् किञ्चित किञ्चित् साधर्म्य है। किचिसाहम्मे ॥
साधर्म्यम् । ५४१. से कि तं पायसाहम्मे ? पाय- अथ किं तत् प्रायःसाधर्म्यम् ? ५४१. वह प्रायः साधर्म्य क्या है ?
साहम्मे-जहा गो तहा गवओ, प्रायःसाधर्म्यम्-यथा गौस्तथा गवयः, प्रायः साधर्म्य -- जैसी गाय है वैसा गवय जहा गवओ तहा गो। से तं पाय- यथा गवयस्तथा गौः। तदेतद् प्राय:- है, जैसा गवय है वैसी गाय है। वह प्रायः साहम्मे ॥ साधर्म्यम्।
साधर्म्य है।
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