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________________ २६५ ग्यारहवां प्रकरण : सूत्र ५२५-५३४ परिसं पच्चभिजाणेज्जा-अयं से पुर्वदृष्टं पुरुषं प्रत्यभिजानीयात्पुरिसे, बहणं वा करिसावणाणं मज्झे अयं स पुरुषः, बहूनां वा कार्षापणानां पुव्वदिष्ठं करिसावणं पच्चभिजा- मध्ये पूर्वदृष्टं कार्षापणं प्रत्यभिजानी ज्जा-अयं से करिसावणे । से तं यात्-अयं स कार्षापणः। तदेतद् विसेसदिळं। से तं दिवसाह- विशेषदृष्टम् । तदेतद् दृष्टसाधर्म्य वत् । लेता है-'यह वह पुरुष है' । अनेक कार्षापणों के बीच में रखे हुए किसी पूर्वदृष्ट कार्षापण को पहचान लेता है-'यह वह कार्षापण है'। वह विशेषदृष्ट है । वह दृष्टसाधर्म्यवत् है। ५३०. तस्स समासओ तिविहं गहणं तस्य समासत: त्रिविधं ग्रहणं भवइ, तं जहा-तोयकालगहणं भवति, तद्यथा-अतीतकालग्रहणं पडुप्पण्णकालगहणं अणागयकाल- प्रत्युत्पन्नकालग्रहणम् अनागतकालगहणं॥ ग्रहणम् । ५३०. (काल की दृष्टि से) अनुमान का ग्रहण तीन प्रकार से होता है, जैसे-अतीत काल ग्रहण, वर्तमान काल ग्रहण और अनागत काल ग्रहण । ५३१. से कि तंतीयकालगहणं? तोय- अथ किं तद् अतीतकालग्रहणम् ? कालगहणं-उत्तिणाणि वणाणि अतीतकालग्रहणम् -उत्तणानि वनानि निप्फण्णसस्सं वा मेइणि, पुण्णाणि निष्पन्नशस्यां वा मेदिनी, पूर्णानि च य कुंड-सर-नदि-दह-तलागाणि कुण्ड-सरः-नदी-द्रह-तडागानि दृष्ट्वा पासित्ता तेणं साहिज्जइ, जहा- तेन साध्यते, यथा --सुवृष्टिः आसीत्। सुवट्ठी आसी। से तं तोयकाल- तदेतद् अतीतकालग्रहणम् । गहणं ॥ ५३१. वह अतीत काल ग्रहण क्या है ? ___ अतीत काल ग्रहण-उगे हुए घास वाले वन को, पके हुए धान्य वाली पृथ्वी को, तथा कुण्ड, सरोवर, नदी, द्रह और जल से भरे हुए तालाब को देखकर जैसे कोई कहता हैअच्छी वर्षा हुई थी। वह अतीत काल ग्रहण ५३२. से कि तं पड़प्पण्णकालगहणं? अथ किं तत् प्रत्युत्पन्नकालग्रहणम्। ५३२. वह वर्तमान काल ग्रहण क्या है ? पडुप्पण्णकालगहणं साहुं गोयर प्रत्युत्पन्नकालग्रहणम् -साधं गोचराग्र- वर्तमान काल ग्रहण-गोचरी के लिए गए ग्गगयं विच्छड्डियपउरभत्तपाणं गतं विच्छदितप्रचुरभक्तपानं दृष्ट्वा हुए साधु के पास गृहस्थों द्वारा प्रदत्त प्रचुर पासित्ता तेणं साहिज्जइ, जहा- तेन साध्यते, यथा-सुभिक्षं वर्तते। भक्तपान को देखकर जैसे कोई कहता हैसुभिक्खे वट्टइ। से तं पडुप्पण्ण- तदेतत् प्रत्युत्पन्न कालग्रहणम् । सुकाल है। वह वर्तमान काल ग्रहण है। कालगहणं॥ ५३३. से कि तं अणागयकालगहणं? अथ किं तद् अनागतकालग्रहणम् ? अणागयकालगणं-- अनागतकालग्रहणम् - गाहा--- गाथाअब्भस्स निम्मलत्तं, अभ्रस्य निर्मलत्वं, कसिणा य गिरी सविज्जया मेहा। कृष्णाश्च गिरयः सविद्युताः मेघाः । थणियं वाउब्भामो, स्तनितं वातोभ्रामेण, संझा निद्धा य रत्ता य ॥१॥ सन्ध्या स्निग्धा च रक्ता च ।।१।। वारुणं वा माहिदं वा अण्णयरं वा वारुणं वा माहेन्द्रं वा अन्यतरद् वा पसत्थं उप्पायं पासित्ता तेणं साहि- प्रशस्तम् उत्पातं दृष्ट्वा तेन साध्यते, ज्जइ, जहा-सुवट्ठो भविस्सइ। से यथा -सुवृष्टिः भविष्यति। तदेतद् तं अणागयकालगहणं ॥ अनागतकालग्रहणम् । ५३३. वह अनागत काल ग्रहण क्या है ? अनागत काल ग्रहण यह हैगाथा-- आकाश की निर्मलता पर्वतों की कालिमा, सविद्युत् मेघ, गर्जन, वायु की प्रदक्षिणा, स्निग्ध और रक्त संध्या । वरुण-उत्पात, माहेन्द्र-उत्पात या किसी अन्य प्रशस्त उत्पात [उल्कापात, दिग्दाह आदि] को देखकर जैसे कोई कहता है-सुवृष्टि होगी। वह अनागत काल ग्रहण है। ५३४. एएसि चेव विवज्जासे तिविह एतेषां चैव व्यत्यासे त्रिविधं गहणं भवइ, तं जहा-तीयकाल- ग्रहणं भवति, तद्यथा – अतीतकालगहणं पडुप्पण्णकालगहणं अणागय- ग्रहणं प्रत्युत्पन्नकालग्रहणम् अनागतकालगहणं॥ कालग्रहणम् । ५३४. इन उक्त उदाहरणों के विपर्यास में अनुमान का ग्रहण तीन प्रकार से होता है, जैसेअतीत काल ग्रहण, वर्तमान काल ग्रहण और अनागत काल ग्रहण । Jain Education Intemational For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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