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५२५. से किं तं अवयवेणं ? अवयवेणं
-महिसं सिगेणं, कुक्कुडं सिहाए, हस्थि विसाणेणं, वराहं दाढाए, मोरं पिछेणं, आसं सरेणं वग्यं नहेणं, चमर वालछेणं, दुपयं मणुस्सयादि चउप्पयं गवमादि, बहुपये गोहियादि वानरं नंगुलेणं, सोहं केसरेणं, वसहं ककुहेणं, महिलं वलयबाहाए ।
गाहा
परिवरबंधेण भर्द
जाणेज्जा महिलियं निवसणेणं । सित्येन दोणपा
कवि च एगाए गाहाए ॥१॥ - से तं अवयवेणं ॥
५२६. से किं तं आसएणं ? आसएणं -अग्ग धूमेणं सलिलं बलागाहि वृद्धि अम्मविकारेणं, कुलपुतं सोलसमायारेणं ।
इङ्गिताकारः क्रियाभिर्भाषितेन च । नेत्र-वक्त्रविकारश्च,
गृह्यतेऽन्तर्गतं मनः ॥ १॥ सेतं आसए से तं सेसवं ॥
५२७. से किं तं दिट्ठसाहम्मवं ? दिट्ठसाहम्मवं दुविहं पण्णत्तं तं जहा सामझवि च विसेसदि
-
च ॥
५२८. से कि ते सामन्नदिट्ठ ? सामन्नविट्ठे जहा एगो पुरिसो तहा बहवे पुरिसा, जहा बहवे पुरिसा तहा एगो पुरिसो । जहा एगो करिसावणो तहा बहवे करिसावना, जहा बहवे करिसायणा से तं तहा एगो करिसावणो । सामन्नदिट्ठ ||
५२६. से कि तं विसेसदि ? विसेसदिट्ठे से जहानामए के पुरिसे बहूणं पुरिसाणं मज्भे पुण्वदिट्ठ
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अथ किं तद् अवयवेन ? अवयवेन महिषं व गेण कुक्कुटं शिखया, हस्तिनं विषाणेन, वराहं दंष्ट्रया, मयूरं पिच्छे अश्यं परेण ध्यानं नचेन, चमरी बालगुच्छेन मनुष्यादि चतुष्पदं गवादि, बहुपय 'योम्हियादि वानरं लाड पुलेन, सिंहं केसरेण, वृषभं ककुदेन, महिलां
वलयबाहुना ।
गाथा
परिकर भ
जानीयात् महिला दिवस | सिक्थेन पार्क,
कवि च एकया गाथया ॥१॥ - तदेतद् अवयवेन ।
अथ किं तद् आश्रयेण ? आश्रयेण मग्निं धूमेन सलिल बलाकाभि:, वृष्टिम् अविकारेण कुलपुत्रं शीखसमाचारेण ।
"
इङ्गिताकारितैज्ञेय:, क्रियाभिर्भाषितेन च । नेत्र-वत्रविकारश्च
तं मनः ॥ १ तदेतद्येण
तदेतत् शेषवत् ।
अथ कि तद् दृष्टा? दृष्टसाधम्यंवत् द्विविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा सामान्यदृष्टविशेष
।
?
अथ किं तत् सामान्यदृष्टम् सामान्यदृष्टम् - यथा एकः पुरुषः तथा बहवः पुरुषाः, यथा बहवः
पुरुषाः तथा एकः पुरुषः । यथा एक: कार्षापणाः तथा बहवः कार्षापणाः, यथा बहवः कार्षापणाः तथा एक: कार्षापणः । तदेतत् सामान्यदृष्टम ।
अथ कि तद् विशेषदृष्टम् ? विशेषदृष्टम् तद् यथानाम कश्चित्पुरुष: बहूनां पुरुषाणां मध्ये
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अणुओगदराई
५२५. वह अवयव से शेषवत् क्या है ?
अवयव से शेषवत् सींग से भैंसा, शिखा से कुकुट, विषाण से हाथी से राह पिच्छ से मोर, खुर से घोड़ा, नख से व्याघ्र, बाल-गुच्छ से चमरी गाय, द्विपद से मनुष्य आदि, चतुष्पद से गाय आदि, बहुपद से कनखजूरा आदि, पूंछ से बन्दर, अयाल से सिंह मूह से बैन और बल वाली भुजा से महिला का अनुमान किया जाता है ।
गाथा-
कवच आदि हथियारों के बन्धन से योद्धा, घघरी से विवाहित स्त्री, एक चावल सिक्थ से द्रोण-पाक और एक गाथा से कवि जाना जाता है । वह अवयव से शेषवत् है ।
५२६. वह आश्रय से शेषवत् क्या है ?
आश्रय से शेषवत् - धूम से अग्नि, बलाका से पानी, अभ्रविकार से वर्षा और शील समाचरण से कुल पुत्र का अनुमान किया जाता है ।
इंगित और आकार - रूप, ज्ञेय, क्रिया वचन, नेत्र और मुख के विकार से अन्तर्गत मन का ग्रहण किया जाता है । वह आश्रय से शेषवत् है । वह शेषवत् है ।
५२७. वह दृष्टसाधर्म्यवत् क्या है ?
दृष्टसाधर्म्यवत् के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे- सामान्यदृष्ट और विशेषदृष्ट
५२७. वह सामान्यदृष्ट क्या है ?
सामान्यदृष्ट— जैसे एक पुरुष है वैसे अनेक पुरुष हैं, जैसे अनेक पुरुष हैं जैसे एक पुरुष हैं। जैसे एक कार्यापण है वैसे अनेक कारण है, जैसे अनेक कार्यापण पैसे एक कार्षापण है । वह सामान्यदृष्ट है ।
५२९. वह विशेषदृष्ट क्या है ?
विशेषदृष्ट— जैसे कोई पुरुष अनेक पुरुषों के बीच उपस्थित पूर्वदृष्ट पुरुष को पहचान
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