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________________ २६३ प्रत्यक्ष है। वह प्रत्यक्ष है। ग्यारहवां प्रकरण : सूत्र ५१२-५२४ पच्चक्खे । से तं नोइंदियपच्चक्खे। नोइन्द्रियप्रत्यक्षम् । तदेतत् प्रत्यक्षम् । से तं पच्चक्खे ॥ ५१६. से कि तं अणमाणे? अणुमाणे अथ किं तद् अनुमानम् ? अनुमानं तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-पुत्ववं त्रिविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा-पूर्ववत् शेषसेसवं दिटुसाहम्मवं॥ वत् दृष्टसाधर्म्यवत् । ५१९. वह अनुमान क्या है ? अनुमान के तीन प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसेपूर्ववत्, शेषवत् और दृष्टसाधर्म्यवत् । ५२०. से कि तं पुत्ववं? पुन्ववं अथ किं तत् पूर्ववत् ? पूर्ववत् - गाहा-- गाथा -- माता पुत्तं जहा नळं, माता पुत्रं यथा नष्टं, जुवाणं पुणरागतं। युवान पुनरागतम् । काई पच्चभिजाणेज्जा, काचित् प्रत्यभिजानीयात्, पुलिंगेण केणई ॥१॥ पूर्वलिङ्गेन केनचित् ॥१॥ तं जहा- खतेण वा वणेण वा तद्यथा-क्षतेन वा व्रणेन वा लंछणण वा मसेण वा तिलएण लाञ्छनेन वा मशेन वा तिलकेन वा । वा । से तं पुव्ववं ॥ तदेतत् पूर्ववत् । ५२१. से कि तं सेसवं ? सेसवं पंचविहं अथ कि तत् शेषवत् । शेषवत् पण्णत्तं, तं जहा-कज्जेणं कार- पञ्चविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा-कार्येण णणं गुणणं अवयवेणं आसएणं ।। कारणेन गुणेन अवयवेन आश्रयेण । ५२०. वह पूर्ववत् क्या है ? पूर्ववत् यह है कोई माता अपने खोए हुए पुत्र को युवावस्था में वापिस लौटा हुआ देखकर किसी पूर्व लिंग से पहचान लेती है मेरा पुत्र है, यह अनुमान कर लेती है, जैसे-क्षत से, व्रण से, चिह्न से, मष से अथवा तिल से । वह पूर्ववत् है। ५२१. वह शेषवत् क्या है ? शेषवत् के पांच प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसेकार्य से, कारण से, गुण से, अवयव से और आश्रय से। ५२२. से कि तं कज्जेणं? कज्जेणं- अथ कि तत् कार्येण? कार्येण - संखं सद्देणं, भेरि तालिएणं, वसभं शङ्ख शब्देन, भेरी ताडितेन, वृषभ ढिकिएणं, मोरं केकाइएणं, हयं ढिकिएणं', मयूरं केकायितेन, हेयं हेसिएणं, हत्थि गुलगुलाइएणं, रहं हेषितेन, हस्तिनं गुलगुलायितेन, रथं घणघणाइएणं । से तं कज्जेणं ॥ घनघनायितेन । तदेतत् कार्येण । ५२२. वह कार्य से शेषवत् क्या है ? कार्य से शेषवत्-शब्द से शंख का, ताड़ना से भेरी का, रंभाने से वृषभ का, केका से मोर का, हिनहिनाहट से घोड़े का, चिंघाड़ने से हाथी का और झंकार से रथ का अनुमान किया जाता है। वह कार्य से शेषवत् [अनुमान] ५२३. से कितं कारणेणं? कारणेणं अथ कि तत् कारणेन ? कारणेन -तंतवो पडस्स कारणं न पडो --तन्तवः पटस्य कारणं न पट: तन्तुतंतुकारणं, वीरणा कडस्स कारणं कारणं, वीरणं कटस्य कारणं न कट: न कडो वीरणकारणं, मप्पिडो वीरणकारणं, मृत्पिण्डः घटस्य कारणं घडस्स कारणं न घडो मप्पिड- न घटः मृत्पिण्डकारणम् । तदेतत् कारणं । से तं कारणेणं॥ कारणेन । ५२३. वह कारण से शेषवत् क्या है ? कारण से शेषवत्-तन्तु वस्त्र के कारण हैं, वस्त्र तन्तुओं का कारण नहीं होता। वीरण (कुश आदि के तृण) चटाई का कारण है, चटाई वीरण का कारण नहीं होती। मृत्पिण्ड घट का कारण है, घट मृत्पिण्ड का कारण नहीं होता। वह कारण से शेषवत् ५२४. से कि तं गुणणं? गुणेणं- सुवणं निकसेणं, पुप्फ गंधेणं, लवणं रसेणं, मइरं आसाएणं, वत्थं फासेणं । से तं गुणेणं ।। अथ किं तद् गुणेन ? गुणेन--- सुवर्ण निकषेण, पुष्पं गन्धेन, लवणं रसेन, मदिराम आस्वादेन, वस्त्रं स्पर्शेन । तदेतद् गुणेन। ५२४. वह गुण से शेषवत् क्या है ? गुण से शेषवत्-निकष से सुवर्ण , गन्ध से पुष्प, रस से लवण, आस्वाद से मदिरा और स्पर्श से वस्त्र का अनुमान किया जाता है। वह गुण से शेषवत् है। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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