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ग्यारहवां प्रकरण : सूत्र ४३५-५४८
२६७ ५४२. से कि तं सव्वसाहम्मे ? सव्व- अथ कि तत् सर्वसाधर्म्यम् ? सर्व- ५४२. वह सर्व साधर्म्य क्या है ?
साहम्मे ओवम्म नत्थि, तहा वि साधर्म्य औपम्यं नास्ति, तथापि तस्य सर्व साधर्म्य--सर्व साधर्म्य में उपमा नहीं तस्स तेणेव ओवम्म कीरइ, जहा- तेनैव औपम्यं क्रियते, यथा-अर्हद्भिः होती फिर भी उस उपमेय को उसी उपमान अरहंतेहि अरहंतसरिसं कयं, चक्क- अर्हत्सदृशं कृतम्, चक्रवतिना चक्र- के द्वारा उपमित किया जाता है, जैसे-अर्हत् वट्रिणा चक्कवट्टिसरिसं कयं, बल- तिसदृशं कृतम्, बलदेवेन बलदेव- ने अर्हत् जैसा कार्य किया। चक्रवर्ती ने देवेण बलदेवसरिसं कयं, वासुदेवेण सदृशं कृतम्, वासुदेवेन वासुदेवसदृशं चक्रवर्ती जैसा कार्य किया। बलदेव ने बलदेव वासुदेवसरिसं कयं, साहुणा साहु- कृतम, साधुना साधुसदृशं कृतम् । जैसा कार्य किया। वासुदेव ने वासुदेव जैसा सरिसं कयं। से तं सव्वसाहम्मे। तदेतत् सर्वसाधर्म्यम् । तदेतत् साधो- कार्य किया। मुनि ने मुनि जैसा कार्य किया। से तं साहम्मोवणीए॥ पनीतम् ।
वह सर्व साधर्म्य है। वह साधोपनीत है। ५४३. से कि त वेहम्मोवणीए? बेह- अथ किं तद् वैधोपनीतम् ? ५४३. वह वैधोपनीत क्या है ?
म्मोवणीए तिबिहे पण्णत्ते, तं जहा वैधोपनीतं त्रिविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा वैधोपनीत के तीन प्रकार प्रज्ञप्त हैं, -किचिवेहम्मे पायवेहम्मे सव्व- किञ्चिद्वधर्म्य प्राय:वैधयं सर्व- जैसे-किञ्चित् वैधर्म्य, प्रायः वैधर्म्य और वेहम्मे ॥ वैधय॑म् ।
सर्व वैधर्म्य । ५४४. से कि तं किचिवेहम्मे ? किंचि- अथ किं तत् किञ्चिदवैधय॑म् ? ५४४. वह किञ्चित् वैधर्म्य क्या है ?
वेहम्मे जहा सामलेरो न तहा किञ्चिद्वधर्म्यम् यथा शाबलेयः न किञ्चित् वैधयं जैसा शाबलेय [चितबाहुलेरो, जहा बाहुलेरो न तहा तथा बाहुलेयः, यथा बाहुलेयः न कबरा] है वैसा बाहुलेय [काला] नहीं है, सामलेरो। से तं किचिवेहम्मे ॥ तथा शाबलेयः। तदेतत किञ्चिद्- जैसा बाहुलेय है वैसा शाबलेय नहीं है। वह वैधर्म्यम् ।
किञ्चित् वैधर्म्य है। ५४५. से कि तं पायवेहम्मे ? पाय- अथ कि तत् प्राय:वैधर्म्यम् ? ५४५. वह प्रायः वैधयं क्या है ?
वेहम्मे---जहा वायसो न तहा प्राय:वैधय॑म् -यथा वायसः न तथा प्रायः वैधर्म्य जैसा वायस [कौवा] है पायसो, जहा पायसो न तहा पायसः, यथा पायसः न तया वायसः। वैसा पायस [खीर] नहीं है, जैसा पायस है वायसो। से तं पायवेहम्मे ॥ तदेतत् प्राय:वैधय॑म् ।
वैसा वायस नहीं है। वह प्रायः वैधर्म्य है। ५४६. से कि तं सव्ववेहम्मे ? सव्व- अथ कि तत् सर्ववैधर्म्यम् ? सर्व- ५४६. वह सर्व वैधयं क्या है?
वेहम्मे ओवम्म नत्थि, तहा वि वैधयें औपम्यं नास्ति, तथापि सर्व वैधर्म्य सर्व वैधर्म्य में उपमा नहीं तस्स तेणेव ओवम्मं कोरइ, जहा- तस्य तेनैव औपम्यं क्रियते, यथा-- होती फिर भी उस उपमेय को उसी उपमान नीचेण नीचसरिसं कयं, काकेण नीचेन नीचसदृशं कृतम्, काकेन काक- के द्वारा उपमित किया जाता है, जैसे - नीच कागसरिसं कयं, साणेण साण- सदृशं कृतम्, शुना श्वसदृशं कृतम् । ने नीच जैसा कार्य किया, कौवे ने कौवे जैसा सरिसं कयं । से तं सव्ववेहम्मे । से तदेतत् सर्ववैधर्म्यम् । तदेतद् वैधयो- कार्य किया । कुत्ते ने कुत्ते जैसा कार्य किया । तं वेहम्मोवणीए । सेतं ओवम्मे ॥ पनीतम् । तदेतद् औपम्यम् ।
वह सर्व वैधर्म्य है। वह वैधोपनीत है।
वह उपमान है। ५४७. से कि तं आगमे ? आगमे दुविहे अथ किं स आगम: ? आगमः ५४७. वह आगम क्या है ? पण्णते, तं जहा-लोइए लोगृत्त- द्विविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-लोकिकः
आगम के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे --- रिए य॥ लोकोत्तरिकश्च ।
लौकिक और लोकोत्तरिक । ५४८. से कि तं लोइए आगमे ? लोइए अथ किस लौकिकः आगमः ? ५४८. वह लौकिक आगम क्या है ?
आगमे--जण्णं इमं अण्णाणिएहि लौकिक: आगमः यः अयम् अज्ञा- __ लौकिक आगम-अज्ञानी, मिथ्यादृष्टि मिच्छदिट्टीहि सच्छंदबुद्धि-मइ- निकैः मिथ्यादृष्टिभिः स्वच्छन्दबुद्धि- और स्वच्छन्द बुद्धि तथा मति द्वारा विरचित विगप्पियं, तं जहा-१. भारहं २. मति-विकल्पितः, तद्यथा-१. भारत आगम लौकिक हैं, जैसे-- १. भारत, २. रामायणं ३,४. हंभीमासुरुत्तं ५. २. रामायणं ३,४. भंभी आसुरोक्तं रामायण, ३. भंभी, ४. आसुरोक्त, ५. कौटकोडिल्लयं ६.घोडमुहं ७. सग- ५. कौटिल्यकं ६. घोटमुखं ७. शक- लीय अर्थशास्त्र, ६. घोटमुख, ७. शकभद्रिका,
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