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टिप्पण
सूत्र ४१६ १. (सूत्र ४१६)
समय काल की सबसे छोटी इकाई है। जैसे परमाणु अविभाज्य है वैसे ही समय भी अविभाज्य है इसलिए समय को कालाणु कहा गया है । समय की सूक्ष्मता को प्रदर्शित करने के लिए सूत्रकार ने कुशल जुलाहे का निदर्शन दिया है। शब्द विमर्श
युगवान् युग का अर्थ है सुषमा दुःषमा आदि कालखण्ड । जो स्वस्थ कालखण्ड में उत्पन्न होता है उसे युगवान् कहते हैं।' पृष्ठ्यन्तर-पसलियां। ऊरु-सक्थि (साथल)। परिष-अर्गला। चर्मेष्टक-चमड़े से वेष्टित व्यायाम करने का उपकरण । लंघन--long jumpe प्लवन--High jump | जवण-धावन (Running or galloping)। छेक ----प्रयोग को जानने वाला।' दक्ष- शीघ्र कार्य करने वाला। प्राप्तार्थ अधिकृत विषय में पूर्णता प्राप्त । कुछ विद्वान् इसका अर्थ प्राज्ञ भी करते हैं।' कुशल-चिन्तन पूर्वक कार्य करने वाला । आलोचना पूर्वक काम करने वाला। मेधावी ---एक बार श्रुत या दृष्ट कार्य को निष्पन्न करने की कला को जानने वाला ।' निपुण -उपाय पूर्वक क्रिया का प्रारम्भ करने वाला। निपुणशिल्पोपगत सूक्ष्म शिल्प को जानने वाला। पट शाटिका --साधारण सूती-वस्त्र । पट्ट शाटिका रेशमी-वस्त्र ।
सूत्र ४१७ २. (सूत्र ४१७)
प्रस्तुत सूत्र में निरूपित संख्या गणित के क्षेत्र में बहुत बड़ी संख्या है। पूर्वश्रुत के पारगामी मुनि इसका विभिन्न प्रयोजनों से उपयोग करते थे। १. (क) अहाव. पृ. ८२ : युगः --सुषमवुःषमादिकाल: सोऽस्य
(ख) अमवृ. प. १६३ । भावेन न कालदोषतयाऽस्यास्तीति युगवान् ।
६. (क) अहावृ. पृ. ८३ : मेधावी-सकृत्भुतदृष्टकर्मज्ञः । (ख) अमवृ. प. १६३।
(ख) अमवृ. प. १६३ । २. (क) अहावृ. पृ. ८३: छेकः प्रयोगज्ञः।
७. (क) अहावृ. पृ. ८३ : निपुणः-उपायारम्भकः । (ख) अम. प. १६३ ।
(ख) अमवृ. प. १६३ । ३. (क) अहाव. पृ.८३ : दक्षः शीघ्रकारी।
८. (क) अहाव. पृ. ८३ : निपुणशिल्पोपगतः-सूक्ष्मशिल्प(ख) अमवृ. प. १६३ ।
समन्वितः। ४. (क) अहावृ. पृ.८३ प्राप्तार्थ-अधिगतकर्मनिष्ठां गतः ।
(ख) अमवृ. प. १६३ । (ख) अमवृ. प. १६३।
९. अचू. पृ. ५७॥ ५. (क) अहावृ. पृ.८३ : कुशलः-आलोचितकारी।
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