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अणुओगदाराई शीर्षप्रहेलिका से आगे भी संख्येय काल होता है किन्तु उसका उपयोग अतिशयज्ञानी ही कर सकता है, अनतिशयज्ञानी के लिए वह व्यवहार्य नहीं, इसलिए उसका औपम्य काल में समावेश किया गया है और इसीलिए शीर्षप्रहेलिका के पश्चात् पल्योपम का उपन्यास किया गया है। चूर्णिकार ने पाठ रचना को ध्यान में रखकर शीर्षप्रहेलिका से आगे के संख्येय काल को औपम्य काल में प्रक्षिप्त बतलाया है।'
___ अनुयोगद्वार सूत्र के सूत्र ५७५, ५८४-५८६ में जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट संख्येय काल का वर्णन मिलता है अतः औपम्य काल में इनका प्रक्षेप अनिवार्य नहीं है ।
इस संव्यवहार काल से प्रथम पृथ्वी के नैरयिकों, भवनपतियों, व्यंतरों, भरत तथा ऐरवत के सुषमदुःषमा काल के पश्चिम भाग के मनुष्यों और तिर्यञ्चों के आयुष्य का माप किया जाता है।'
चूणि की यह व्याख्या औपनिधिकी कालानुपूर्वी (सू. २१९) के सन्दर्भ में प्राप्त है। कालप्रमाण के प्रकरण में चूर्णिकार ने इस विषय पर और प्रकाश डाला है।
अन्तर्महुर्त से पूर्व कोटि तक की संख्या का उपयोग मनुष्यों और तिर्यचों के धर्माचरण काल के सन्दर्भ में आयुष्य परिमाण के लिए किया जाता था । किसी मनुष्य का जीवनकाल करोड़ पूर्व का हो और वह नौ वर्ष की अवस्था में मुनि बने तो वह कुछ न्यून करोड़ पूर्व तक धर्म की आराधना करता है।
त्रुटित से लेकर शीर्षप्रहेलिका तक की संख्या का उपयोग नरक, भवनपति और व्यन्तर देवों का आयुष्य-परिमाण जानने के लिए किया जाता था। इनका उपयोग पूर्वगत यविकों में आयुष्य श्रेणी के लिए किया जाता था। अन्यत्र भी इच्छानुसार इसका उपयोग किया जाता था। चूर्णिकार ने यह भी बतलाया है कि जहां तक अंक स्थान स्थापित किए जा सकते थे वहां तक गणित के ज्ञान का निरूपण किया गया है।
वल्लभी बाचना में शीर्षप्रहेलिका के अंकों की संख्या २५० है । अनुयोगद्वार माथुरी वाचना का आगम है उसमें शीर्षप्रहेलिका के अंकों की संख्या १९४ है । देखें ठाणं २।३८७-३८९ तथा समवाओ ८४११५ के टिप्पण। १. आवलिका-असंख्य समय।
२. आन-संख्येय आवलिका का एक उच्छवास अथवा एक नि:श्वास । ३. प्राण-एक उच्छ्वास निःश्वास ।
४. स्तोक = सात प्राण। ५. लव-सात स्तोक ।
६. मुहूर्त सतहत्तर लव या ४८ मिनट । ७. अहोरात्र=३० मुहूर्त ।
८. पक्ष-१५ दिन । ९. मास-२ पक्ष ।
१०. ऋतु=२ मास । ११. अयन-तीन ऋतुएं या ६ मास ।
१२. संवत्सर-२ अयन या १२ मास: १३. युग-५ संवत्सर।
१४. सौ वर्ष=२० युग। १५. पूर्वांग-८४ लाख वर्ष । १६. पूर्व-पूर्वांग x पूर्वांग= सत्तर लाख करोड़, छप्पन हजार करोड़ वर्ष (७०५६००००००००००)। १७. त्रुटितांग पूर्व x पूर्वांग अर्थात् पूर्व को ८४ लाख वर्षों से गुणा करने पर जितनी संख्या प्राप्त हो उतने वर्ष ।
त्रुटितांग से आगे शीर्षप्रहेलिका तक जितनी संख्या है वह उत्तरोत्तर चौरासी लाख से गुणित होने पर होती है । इस प्रकार शीर्षप्रहेलिका तक अंकों की संख्या होगी-७५८२६३२५३०७३०१०२४११५७९७३५६९९७५६९६४०६२१८९६६८४८०८०१८३२९६ इस संख्या के आगे १४० शून्य होते हैं । यह पूरी संख्या १९४ अंकों की है. इसमें ५४ अंक और उसके ऊपर १४० शून्य हैं।'
१. अचू. पृ. ४० : किं च सीसपहेलियाए य परतो अस्थि संखेज्जो कालो सो य अणतिसईणं अववहारिउत्तिकाउं, ओवम्मि पक्खितो, तेण सीसपहेलियाए परतो पलितोवमादि उवण्णत्था । २. वही, पढमपुढविणेरइयाणं भवणवंतराणं भरहेरवतेसु य
सुसमवूसमाए पच्छिमे भागे णरतिरियाणं आऊ उवमिज्जंति ।
३. वही, पृ. ५७ : यदृच्छातः एतावताव गणियं अंकट्टवआए। ४. अमव. प. ९१ : चतुरशीति लक्षस्वरूपेण गुणाकारेण यथोत्तरं वृद्धा द्रष्टव्यास्तावद्यावदिदमेव शीर्षप्रहेलिकांगं चतुरषीत्यालक्षर्गुणितं-शीर्षप्रहेलिका भवति -अस्याः स्वरूपमंकतोऽपि दर्श्यते ७५८२६३२५३०७३०१०२४११५७ ९७३५६९९७५६९६४०६२१८९६६८४८०८०१८३२९६ अग्रे च चत्वारिंशत् शून्यशतं १४०।
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