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________________ दसवां प्रकरण : सूत्र ४६६-४७६ ४७२. पुढविकाइयाणं भंते! केवइया वेव्विवसरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - बद्धेल्लया य मुक्केल्लया य । तत्व णं जैसे बलया से णं नत्थि मुक्केल्लया जहा ओहिया ओरालियसरीरा तहा भाणि यव्वा || ४७२. आहारगसरीरा वि एवं चेय भाणिया || ४७४. य-कम्मगसरीरा जहा एएसि चैब ओरालियरीश तहा भाणि यव्वा || ४७५. जहा पुढविकाइयाणं एवं आउ काइयाणं तेउकाइयाण य सव्वसरीरा भाणियव्वा ॥ ४७६. बाउकाइयाणं भंते! केवइया ओरालिसरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - बद्धेल्लया य मुक्केल्लया य । जहा पुढविकाइयाणं ओरालियसरीरा तहा भाणियव्वा || ४७७. बाउकाइयाणं भंते ! केवइया aroorसरोरा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - बल्लया य मुक्केल्लया य । तत्थ णं जेते बद्धेल्लया ते णं असंखेन्जा, समए- समए अवहीर माणा अवहीरमाणा पलिओवमस्स असंखेज्जभागमेत्तणं फालेणं अबहोरंति नो वेब णं अवहिया सिया मुक्केल्लया जहा ओहिया ओरा लियसरीरय मुक्केल्लया ॥ ४७८. आहारगसरीरा जहा पुढविक। इयाणं वेडव्विसरोरा तहा भाणि यव्वा ॥ ४७६. ते कम्मगसरीरा जहा पुढवि काइयाणं तहा भाणियन्या ॥ Jain Education International पृथिवीकायिकानां भदन्त ! कियन्ति वैक्रियशरीराणि प्रज्ञप्तानि ? गौतम ! द्विविधानि प्रज्ञतानि, तद्यथा बद्धानि च मुक्तानि च । तत्र यानि एतानि बद्धानि तानि नास्ति मुक्तानि यथा अधिकानि औदारिकशरीराणि तथा तव्यानि । भणि आहारकशरीराणि अपि एवं व भणितव्यानि । यथा जस-कर्मशरीराणि एतेषां चे औदारिकशरीराणि तथा भणितव्यानि । पया पृथिवीकायिकानाम् एवम् अकायिकानां तेजस्कायिकानां च सर्वशरीराणि भणितव्यानि । बायकानां भवन्त किति औदारिकशरीराणि प्रज्ञप्तानि ? गौतम ! गौतम ! द्विविधानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा - बद्धानि च मुक्तानि च । यथा पृथिवीकायिकानाम् औदारिकशरीराणि तथा भणितव्यानि । वायुकायिकानां मदन्त ! कियन्ति वैक्रियशरीराणि प्रज्ञप्तानि ? गौतम! द्विविधानि प्रज्ञप्तानि तद्यथा बद्धानि च मुक्तानि च । तत्र यानि एतानि बद्धानि तानि असंख्येयानि, समय-समये अहियमाणानि अपय माणानि पत्योपमस्य असंख्येयतम भागमात्रेण कालेन अपनी अपहृताः स्यात् । मुक्तानि यथा औधिकानि औदारिकशरीरकमुक्तानि । आहारकशरीराणि यथा पृथिवीकायिकानां व क्रियशरीराणि भणितव्यानि । तथा यथा तेजस - कर्मकशरीराणि पृथिवीकायिकानां तथा । For Private & Personal Use Only २७१ ४७२. भन्ते ! पृथ्वीकायिक जीवों के वैक्रिय शरीर कितने प्रज्ञप्त हैं ? गौतम ! वैक्रिय शरीर के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे—बद्ध और मुक्त । पृथ्वीकायिक जीवों के बद्ध वैक्रिय शरीर नहीं होते। मुक्त वैक्रिय शरीर औधिक औदारिक शरीर की भांति प्रतिपादनीय है। [देखें ४५७]। ४७३. आहारक शरीर भी इसी प्रकार प्रतिपादनीय हैं। ४७४. पृथ्वीकायिक जीवों के तेजस और कार्मण शरीर भी इन्हीं के औदारिक शरीर की भांति प्रतिपादनीय हैं । [ देखें सू. ४७१] । ४७५ अप्कायिक और तेजस्कायिक जीवों के सब शरीर पृथ्वीकायिक जीवों की भांति प्रतिपादनीय हैं । [ देखें सू. ४७१-४७४]। ४७६. भन्ते ! वायुकायिक जीवों के औदारिक शरीर कितने प्रज्ञप्त हैं ? गौतम ! औदारिक शरीर के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं जैसे- बद्ध और मुक्त | उनके औदारिक शरीर पृथ्वीकायिक जीवों की भांति प्रतिपादनीय हैं । [ देखें सू. ४७१] । ४७७ भन्ते ! वायुकायिक जीवों के वैक्रिय शरीर कितने प्रज्ञप्त हैं ? गौतम ! वैक्रिय शरीर के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे- बद्ध और मुक्त | उनमें जो बद्ध हैं, वे असंख्येय हैं, प्रति समय अपहृत करने पर पल्योपम के असंख्येय भाग मात्र काल में अपहृत होते हैं। [यह असत् कल्पना है । ] उनका अपहार किया नहीं गया । मुक्त वैक्रिय शरीर मुक्त औधिक औदारिक शरीर की भांति प्रतिपादनीय हैं। [ देखें सू. ४५७] । ४७८. वायुकायिक जीवों के आहारक शरीर पृथ्वीकायिक जीवों के वैक्रिय शरीर की भांति प्रतिपादनीय है। [देखें सू. ४७२] । ४७९. तेजस और कार्मण शरीर भी पृथ्वीकायिक जीवों की भांति प्रतिपादनीय हैं। www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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