________________
२७०
अणुओगदाराई ४६६. असुरकुमाराणं भंते ! केवइया
असुरकुमाराणां भदन्त ! कियन्ति ४६६. भन्ते ! असुरकुमार देवों के औदारिक ओरालियसरीरा पण्णता? औदारिकशरीराणि प्रज्ञप्तानि ? शरीर कितने प्रज्ञप्त हैं ? गोयमा ! जहा नेरइयाण ओरा- गौतम ! यथा नैरयिकाणाम् औदा- गौतम! नरयिक जीवों के औदारिक लियसरीरा तहा भाणियव्वा ॥ रिकशरीराणि तथा भणितव्यानि । शरीर की भांति प्रतिपादनीय हैं। [देखें सू.
४६२] ।
४६७. असुरकुमाराणं भंते ! केवइया
असुरकुमाराणां भदन्त ! कियन्ति वेउब्वियसरीरा पण्णत्ता? वैक्रियशरीराणि प्रज्ञप्तानि ? गोयमा! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा गौतम! द्विविधानि प्रज्ञप्तानि,
-बधेल्लया य मुक्केल्लया य। तद्यथा-बद्धानि च मुक्तानि च । तत्र तत्थ णं जेते बद्धल्लया ते णं अस- यानि एतानि बद्धानि तानि असंख्येखेज्जा, असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणी- यानि, असंख्येयाभिः उत्सपिण्यवसपिओसप्पिणीहि अवहीरंति कालओ, णीभिः अपहियन्ते कालत:. क्षेत्रतः खेत्तओ असंखेज्जाओ सेढीओ असंख्ययाः श्रेण्यः प्रतरस्य असंख्येयपयरस्स असंखेज्जइभागो। तासि तमभागः। तासां श्रेणीनां विष्कम्भणं सेढोणं विक्खंभसूई अंगुलपढम- सूचिः अंगुलप्रथमवर्गमूलस्य असंख्येयवग्गमूलस्स असंखेज्जइभागो। तमभागः । मुक्तानि यथा औधिकानि मुक्केल्लया जहा ओहिया ओरा- औदारिकशरीराणि तथा भणिलियसरीरा तहा भाणियव्वा ॥ तव्यानि ।
४६७. भन्ते ! असुरकुमार देवों के वैक्रिय शरीर
कितने प्रज्ञप्त हैं ? ___ गौतम ! बक्रिय शरीर के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे-बद्ध और मुक्त। उनमें जो बद्ध हैं वे असंख्येय हैं, काल की दृष्टि से असंख्येय उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी में उनका अपहार होता है । क्षेत्र की दृष्टि से वे प्रतर के असंख्येय भाग में होने वाली असंख्येय श्रेणियों के आकाश प्रदेश जितने होते हैं। उन श्रेणियों की विष्कम्भसूची–अंगुल प्रमाण प्रतर क्षेत्र में होने वाली श्रेणी के असंख्येय वर्गमूल होते हैं। उनके प्रथम वर्गमूल का असंख्यातवां भाग। मुक्त शरीर औधिक औदारिक शरीर की भांति प्रतिपादनीय हैं।' [देखें सू. ४५७] ।
४६८. असुरकुमाराणं भंते ! केवइया असुरकुमाराणां भदन्त ! कियन्ति ४६८. भन्ते ! असुरकुमार देवों के अहारक शरीर
आहारगसरीरा पण्णत्ता? आहारकशरीराणि प्रज्ञप्तानि ? कितने प्रज्ञप्त हैं ? गोयमा! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा गौतम ! द्विविधानि प्रज्ञप्तानि, ___ गौतम ! उनके आहारक शरीर के दो -बद्धल्लया य मुक्केल्लया य। तद्यथा--बद्धानि च मुक्तानि च । प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे- बद्ध और मुक्त। वे जहा एएसि चेव ओरालियसरीरा
यथा एतेषां चैव औदारिकशरीराणि इन्हीं के औदारिक शरीर की भांति प्रतिपादतहा भाणियव्वा ॥ तथा भणितव्यानि ।
नीय हैं । [देखें सू. ४६६] ।
४६६. तेयग-कम्मगसरीरा जहा एएसि तेजस-कर्मकशरीराणि यथा
चेव वेउब्वियसरीरा तहा भाणि- एतेषां चैव वैक्रियशरीराणि तथा यव्वा ॥
भणितव्यानि ।
४६९. असुरकुमार देवों के तैजस और कार्मण
शरीर इन्हीं के वैक्रिय शरीर की भांति प्रतिपादनीय हैं। [देखें सू. ४६७] ।
४७०. जहा असुरकुमाराणं तहा जाव यथा असुरकुमाराणं तथा यावत्
थणियकूमाराणं ताव भाणियव्वं ।। स्तनितकमाराणां तावद् भणितव्यम्।
४७०. स्तनितकुमार पर्यन्त देवों के शरीर असुर
कुमार देवों की भांति प्रतिपादनीय हैं। [देखें सू. ४६६ से ४६९] ।
४७१. पुढविकाइयाणं भंते ! केवइया
पृथिवीकायिकानां भवन्त! ओरालियसरीरा पण्णत्ता? कियन्ति औदारिकशरीराणि प्रज्ञगोयमा! दुविहा पण्णता, तं जहा प्तानि ? गौतम ! द्विविधानि प्रज्ञ--बद्धेल्लया य मुक्केल्लया य। प्तानि, तद्यथा-बद्धानि च मुक्तानि एवं जहा ओहिया ओरालियसरीरा च । एवं यथा औधिकानि औदारिकतहा भाणियव्वा॥
शरीराणि तथा भणितव्यानि ।
४७१. भन्ते ! पृथ्वीकायिक जीवों के औदारिक शरीर कितने प्रज्ञप्त हैं ?
गौतम ! औदारिक शरीर के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे-बद्ध और मुक्त। वे औधिक
औदारिक शरीर की भांति प्रतिपादनीय हैं। [देखें सू. ४५७] ।
Jain Education Intemational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org