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अभागो तत्थ णं जेते मुक्केल्लया ते णं अनंता, अणताहि उस्सप्पिणी ओस्सप्पिणीहि अवही रंति कालओ, सेसं जहा ओरा लियस्स सुक्केल्लया तहा एए वि भाणि ॥
४५६. केवइया गं भंते ! सरीरा पण्णत्ता ?
आहारगगोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा बद्धल्लया य मुक्केल्लया व । तत्थ णं जेते बद्धल्लया ते णं सिय अत्थि सिय नत्थि, जइ अत्थि जहणणेणं एगो वा दो वा तिष्णि वा, उक्कोसेणं सहस्सपुहत्तं । नुक्केल्लया जहा ओरोलिय सरीरस्स भाणिया ||
तहा
४६०. केवइया णं भंते! तेयगसरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुबिहा पण्णत्ता, तं जहां बद्धेल्लया य मुक्केल्लया । तत्थ णं जेते बल्लया ते णं अनंता अनंताह उत्सपिणी ओसपिणीहि अवही रंति कालओ, खेत्तओ अनंता लोगा बय सिद्धेहि अनंतगुणः सजीवाणं अनंतभागुणा । तत्य णं जेते मुक्केल्लया ते ण अनंता, अनंताहि उस्सप्पिणी ओसप्पि - णीहि अहीरंति कालओ, खेत्तओ अनंता लोगा, दव्वओ सव्वजीवह अनंतगुणा जीववग्गस्स अनंत भागो ||
४६१. वाणं भंते! कम्मगसरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा बल्लया य मुक्केल्लया व जहा तेवगतरी तहा कम्मगसरोरा वि भाणि
यध्वा ||
४६२. मेरा भंते! केवइया ओरालियसरीरा पण्णत्ता ? गोयमा !
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पानि तानि मुनिनानि अनन्ताभिः उत्सर्पिण्यवसर्पिणीभि: अपह्रियन्ते कालतः, शेषं यथा औदारिकस्य मुक्तानि तथा एतानि अपि भणितव्यानि ।
तद्यथा
कियन्ति भदन्त ! शरीराणि प्रज्ञप्तानि ? द्विविधानि प्रज्ञप्तानि बद्धानि च मुक्तानि च । तत्र यानि एतानि बद्धानि तानि स्याद् अस्ति स्यात् नास्ति, यदि अस्ति जघन्येन एकं वा द्वे वा त्रीणि वा, उत्कर्षेण सहस्त्रपृथक्त्वम् । मुक्तानि यथा औदारिकशरीरस्य तथा नि
आहारकगौतम !
कियन्ति भदन्त ! तैजसशरीराणि प्रज्ञप्तानि ? गौतम डिवि धानि प्रज्ञप्तानि तद्यथा - बद्धानि च मुक्तानि च । तत्र यानि एतानि बद्धान तानि अनन्तानि, अनन्ताभिः उत्ससिपिजी अपयन्ते कालतः, क्षेत्रतः अनन्ता: लोकाः, प्रयतः सिद्धेभ्यः नगुमान सर्वजीवानाम् अनन्त मागोनाः । तत्र यानि एतानि कानि तानि अनन्तानि अनन्ताभिः उत्सर्पिण्यवसर्पिणीभिः अपहियते कालतः, क्षेत्र अन लोका:, द्रव्यतः सर्वजीवेभ्यः अनन्तगुणानि जीववर्गस्य अनन्तभागः ।
कियन्ति भदन्त ! कर्मकशरीराणि प्रज्ञप्तानि ? गौतम ! द्विविधानि प्रज्ञप्तानि तद्यथा-बद्धानि च मुक्तानि च । यथा तेजसशरीराणि तथा कर्मकशरीराणि अपि भणितव्यानि ।
नैरयिकाणां भवन्त ! कियन्ति औदारिकशरीराणि प्रज्ञप्तानि ?
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अणुओदाराई
उनमें जो मुक्त हैं वे अनन्त हैं, काल की दृष्टि से अनन्त उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी में उनका अपहार होता है । शेष औदारिक मुक्त शरीरों की भांति ये भी प्रतिपादनीय हैं ।
४५९. भन्ते ! आहारक शरीर कितने प्रज्ञप्त हैं ? गौतम! आहारक शरीर के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे- बद्ध और मुक्त ।
उनमें जो बद्ध हैं वे कभी होते हैं और कभी नहीं होते । यदि होते हैं तो जघन्यतः एक दो अथवा तीन और उत्कृष्टतः दो हजार से नौ हजार तक होते हैं ।
मुक्त शरीर औदारिक शरीर की भांति प्रतिपादनीय हैं।"
४६० भन्ते ! तेजस शरीर कितने प्रज्ञप्त हैं ?
गौतम ! तेजस शरीर के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे--बद्ध और मुक्त ।
उनमें जो बद्ध हैं वे अनन्त हैं। काल की दृष्टि से अनन्त उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी में उनका अपहार होता है। क्षेत्र की दृष्टि से वे अनन्त लोक जितने हैं द्रव्य की दृष्टि से सिद्धों से अनन्तगुना अधिक और सब जीवों से अनन्त भाग कम हैं ।
उनमें जो मुक्त हैं वे अनन्त हैं, काल की दृष्टि से अनन्त उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी में उनका अपहार होता है । क्षेत्र की दृष्टि से वे अनन्त लोक जितने हैं । द्रव्य की दृष्टि से सब जीवों से अनन्त गुना अधिक और जीव वर्ग के अनन्तवें भाग जितने हैं ।
४६१. भन्ते ! कार्मण शरीर कितने प्रज्ञप्त हैं ?
गौतम ! कार्मण शरीर के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे -बद्ध और मुक्त कार्मण शरीर तेजस शरीर की भांति ही प्रतिपादनीय हैं।
४६२. भन्ते ! नैरयिक जीवों के औदारिक शरीर कितने प्रज्ञप्त हैं ?
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