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दसवां प्रकरण : सूत्र ४४६-४५८
२६७ चत्तारि सरीरा पण्णत्ता, तं जहा चत्वारि शरीराणि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा गौतम ! उनके चार शरीर प्रज्ञप्त हैं, जैसे -ओरालिए वेउन्विए तेयए -औदारिकं वैक्रियं तैजसं कर्मकम् । -औदारिक, वैक्रिय, तेजस और कार्मण ।
कम्मए॥ ४५३. बेइंदिय-तेइंदिय-चरिदियाणं द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रियाणां ४५३ द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों के जहा पुढविकाइयाणं॥ यथा पृथिवीकायिकानाम् ।
शरीर पृथ्वीकायिक जीवों की भांति प्रतिपादनीय हैं।
४५४. पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां यथा ४५४. पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिक जीवों के शरीर जहा वाउकाइयाणं॥ वायुकायिकानाम् ।
वायुकायिक जीवों की भांति प्रतिपादनीय हैं। ४५५. मणस्साणं भंते ! कइ सरोरा मनुष्याणां भदन्त ! कति शरी- ४५५. भन्ते ! मनुष्य के कितने शरीर प्रज्ञप्त हैं ?
पण्णत्ता ? गोयमा ! पंच सरीरा राणि प्रज्ञप्तानि ? गौतम! पंच गौतम ! उनके पांच शरीर प्रज्ञप्त हैं, जैसे पपणत्ता, तं जहा--ओरालिए शरीराणि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा- --औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तेजस और वेउविए आहारए तेयए कम्मए । औदारिकं वैक्रियम् आहारकं तेजसं
कार्मण । कर्मकम् ।
४५६. वाणमंतराणं जोइसियाणं वेमाणियाणं जहा नेरइयाणं ॥
वानमन्त राणां ज्योतिषिकाणां ४५६. वानमंतर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के वैमानिकानां यथा नरयिकाणाम् । शरीर नैरयिक जीवों की भांति प्रतिपादनीय
४५७. भन्ते ! औदारिक शरीर कितने प्रज्ञप्त
४५७. केवइया णं भंते ! ओरालिय- कियन्ति भदन्त ! औदारिक-
सरीरा पण्णत्ता? गोयमा! शरीराणि प्रज्ञप्तानि ? गौतम ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-बद्ध- द्विविधानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा -- ल्लया य मुक्केल्लया य । तत्थ णं बद्धानि च मुक्तानि च। तत्र यानि जेते बद्धेल्लया ते णं असंखेज्जा,
एतानि बद्धानि तानि असंख्येयानि, असंखेज्जाहि उस्सप्पिणी-ओसप्पि- असंख्येयाभिः उत्सपिण्यवसर्पिणीभिः णोहि अवहोरंति कालओ, खेत्तओ अपहियन्ते कालतः, क्षेत्रतः असंख्येयाः असंखेज्जा लोगा। तत्थ णं जेते लोकाः । तत्र यानि एतानि मुक्तानि मुक्केल्लया ते णं अणंता, अणंताहि
तानि अनन्तानि, अनन्ताभि: उत्सपिउस्सप्पिणी-ओसप्पिणीहि अवही- ण्यवसर्पिणीभिः अपह्रियन्ते कालतः, रंति कालओ. खेत्तओ अणंता क्षेत्रतः अनन्ता: लोकाः, द्रव्यतः लोगा, दब्बओ अभवसिद्धिएहि अभव्यसिद्धिकः अनन्तगुणानि सिद्धाअणंतगुणा सिद्धाणं अणंतभागो॥ नाम् अनन्तभागः ।
__मौतम ! औदारिक शरीर के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे-बद्ध और मुक्त।
उनमें जो बद्ध हैं वे असंख्येय हैं । काल की दृष्टि से असंख्येय उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी में उनका अपहार होता है । क्षेत्र की दृष्टि से वे असंख्येय लोक जितने हैं।
उनमें जो मुक्त हैं वे अनन्त हैं। काल की दृष्टि से अनन्त उत्सपिणी और अवसर्पिणी में उनका अपहार होता है । क्षेत्र की दृष्टि से वे अनन्त लोक जितने हैं। द्रव्य की दृष्टि से अभवसिद्धिक जीवों से अनन्तगुना अधिक और सिद्धों के अनन्तवें भाग में हैं।
४५८. केवइया णं भंते ! वेउविय- कियन्ति भदन्त ! वैक्रियशरी- ४५८. भन्ते ! वैक्रिय शरीर कितने प्रज्ञप्त हैं ?
सरीरा पण्णता? गोयमा! राणि प्रज्ञप्तानि ? गौतम ! द्विवि- गौतम! वैक्रिय शरीर के दो प्रकार दुविहा पण्णत्ता, तं जहा--बद्ध- धानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा-बद्धानि च प्रज्ञप्त हैं, जैसे-बद्ध और मुक्त । ल्लया य मुक्केल्लया य । तत्थ णं मुक्तानि च। तत्र यानि एतानि उनमें जो बद्ध हैं वे असंख्येय हैं, काल की जेते बद्धेल्लया ते णं असंखेज्जा, बद्धानि तानि असंख्येयानि, असंख्ये- दृष्टि से असंख्येय उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणी-ओसप्पि- याभिः उत्सपिण्यवसर्पिणीभिः अप- में उनका अपहार होता है । क्षेत्र की दृष्टि से णोहि अवहीरंति कालओ, खेत्तओ ह्रियन्ते कालतः, क्षेत्रतः असंख्ययाः वे प्रतर के असंख्येय भाग में होनेवाली असंख्येय असंखेज्जाओ सेढीओ पयरस्स श्रेण्यः प्रतरस्य असंख्येयतमभागः । तत्र श्रेणियों के आकाशप्रदेश जितने होते हैं।
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